एमपी: सावरकर के फ़ोटो लगे रजिस्टर बाँटने पर प्रिंसिपल सस्पेंड
सावरकर को लेकर मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार और बीजेपी एक बार फिर आमने-सामने हैं। एक एनजीओ द्वारा रतलाम ज़िले के सरकारी हाईस्कूल में सावरकर की तसवीर वाले और उनकी जीवनी लिखे रजिस्टर बच्चों के बीच बाँटे जाने को लेकर स्कूल के प्रिंसिपल को सस्पेंड करना बीजेपी को बेहद नागवार गुज़रा है। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान समेत अनेक बीजेपी नेताओं ने मुख्यमंत्री कमलनाथ और उनकी सरकार के ख़िलाफ़ ‘मोर्चा’ खोल दिया है।
मामला रतलाम ज़िले के मलवासा हाईस्कूल का है। दिलचस्प तथ्य यह है कि स्कूल में एक एनजीओ ने ग़रीब बच्चों को परीक्षा की तैयारियों में मदद के नाम पर बीते चार नवंबर को रजिस्टर बाँटे थे। इन रजिस्टरों (नोटबुक्स) पर सावरकर के चित्र और उनकी जीवनी भी अंतिम पृष्ठों पर अंकित थी।
सावरकर के फ़ोटो और जीवनी वाले रजिस्टर बाँटे जाने की भनक लगने के बाद मसले पर राजनीति शुरू हो गई थी। रतलाम के ज़िला शिक्षा अधिकारी समेत आला अफ़सरों को पूरे मसले की शिकायत की गई। जाँच बैठाई गई। जाँच रिपोर्ट मिलने के बाद उज्जैन कमिश्नर (रतलाम ज़िला इसी संभाग के अधीन आता है) ने प्रिंसिपल आर.एन. केरावत को दोषी मानते हुए गत दिवस सस्पेंड करने का फ़रमान सुना दिया।
मलवासा हाईस्कूल के प्राचार्य केरावत राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त टीचर हैं। शिक्षा के स्तर में सुधार और गुणवत्ता बनाए रखने के लिए अनेक तरह के प्रयोग करने को लेकर वे मध्य प्रदेश में पहचाने जाते हैं। वे जिस भी स्कूल में रहे वहाँ 100 प्रतिशत रिजल्ट देने को लेकर तत्पर रहे। मलवासा स्कूल भी 100 प्रतिशत परीक्षा परिणाम देने के लिए ज़िले और मध्य प्रदेश में विशेष पहचान रखता है। हाईस्कूल का परीक्षा परिणाम इस स्कूल में पिछले सालों से शत-प्रतिशत आ रहा है।
कांग्रेस पर शिवराज सिंह का हमला
बहरहाल, केरावत को निलंबित किए जाने के बाद मध्य प्रदेश में राजनीति गरमा गई है। पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता शिवराज सिंह चौहान ने केरावत को सस्पेंड किए जाने को दुर्भाग्यपूर्ण क़रार दिया है। उन्होंने बुधवार को भोपाल में मीडिया से चर्चा में कहा, प्रिंसिपल पर कार्रवाई देश की महान विभूतियों का अपमान है। शिवराज ने प्रिंसिपल का निलंबन वापस लेने, और उन्हें निलंबित करने वाले उज्जैन कमिश्नर के ख़िलाफ़ एक्शन की माँग प्रदेश सरकार से की है।
पूर्व मंत्री और बीजेपी के अन्य वरिष्ठ नेता नरोत्तम मिश्रा भी सरकार पर जमकर बरसे हैं। उन्होंने एक बयान में कहा है, ‘मध्य प्रदेश में क्रांतिकारियों का अपमान आम बात हो गई है। वीर सावरकर से जुड़ा साहित्य वितरित किया जाना किसी भी सूरत में अनुचित नहीं है।’
“
ग़ैर-सरकारी स्वयंसेवी संस्था प्राचार्य की मौजूदगी में इस तरह का साहित्य वितरित नहीं कर सकती, लेकिन मलवासा में एनजीओ ने साहित्य बाँटा। नियमों के अनुसार यह ग़लत था। इसी वजह से प्रिंसिपल पर एक्शन हुआ है।
प्रभुराम चौधरी, मध्य प्रदेश के शिक्षा मंत्री
उधर प्राचार्य केरावत ने कहा है, ‘जनसहयोग से मैंने स्कूल में कई काम करवाए हैं। लायंस-रोटरी क्लब सहित कई क्लब शिक्षण सामग्री बाँटने के लिए आते हैं। वीर सावरकर एनजीओ के सदस्य हमारे पास आए थे और बोले रजिस्टर बाँटना है। चूँकि छात्र हित में काम था। इसलिए रजिस्टर बँटवा दिए।’
तो एनजीओ करेगा आंदोलन
वीर सावरकर एनजीओ के सचिव मधु शिरोडकर ने कहा है, ‘सरकार बच्चों को किताबें बाँट रही है। हमने परीक्षा की तैयारी के लिए बच्चों को नि:शुल्क रजिस्टर बाँटे। स्कूल में नि:शुल्क रजिस्टर बाँटना क्या गुनाह है? यदि गुनाह है तो इसकी सज़ा हमें दी जाए, स्कूल के प्राचार्य को नहीं। एनजीओ ने कहा है यदि सात दिनों में प्रिंसिपल का निलंबन वापस नहीं लिया गया तो प्रदेश भर में आंदोलन किया जायेगा।
सेवादल की बैठक में साहित्य बाँटने का विवाद
सेवादल की बैठक में साहित्य वितरण मसला अभी ठंडा नहीं हुआ है। मध्य प्रदेश में सावरकर को लेकर कमलनाथ सरकार और बीजेपी-संघ के बीच पहले से ही ठनी हुई है। सेवादल का राष्ट्रीय शिविर इसी महीने भोपाल में आयोजित किया गया था। दस दिन चले इस शिविर में सेवादल ने सावरकर को लेकर जमकर साहित्य बाँटा। साहित्य में सावरकर की वीरता को लेकर अनेक सवाल खड़े किए गए। साहित्य में सावरकर के ख़िलाफ़ अनेक विवादास्पद बातें लिखी गईं। सबसे ज़्यादा विवाद सावरकर और गोडसे के बीच ‘समलैंगिक संबंध’ होने वाले अंशों पर मचा। अभी यह मसला पूरी तरह से ठंडा नहीं हुआ है। सेवादल के शिविर में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया समेत कांग्रेस के अनेक राष्ट्रीय नेताओं ने न केवल शिरकत की, बल्कि सावरकर वाले विवाद को तूल देने में ज़्यादातर नेताओं ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी।