बलात्कार की ख़बर समाज को झकझोरती क्यों नहीं?
जॉर्जटाउन इंस्टिट्यूट फॉर पीस, वीमेन एंड सिक्योरिटी द्वारा जारी किये जाने वाले 'शांति, महिला व सुरक्षा सूचकांक में भारत को 170 देशों में 148वाँ स्थान मिला है। ऐसा ही कुछ हाल विश्व आर्थिक मंच द्वारा जारी किये जाने वाले वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट 2021 में भी था, जहाँ भारत को 156 देशों में 140वां स्थान प्राप्त हुआ था। वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट 2021 में भारत 2020 के मुक़ाबले एक साल में ही 28 स्थान नीचे खिसक गया था। लेकिन इन दिनों भारत में मनमाफिक न आए सूचकांकों को नकारने का चलन न सिर्फ सरकार के स्तर पर चलाया जा रहा है बल्कि नकारने के इस जुनून में भारत के तमाम नए पुराने सेफोलॉजिस्ट भी शामिल हो चुके हैं।
‘डेली ट्रैकर’ के नाम पर भारत को समझने का दावा करने वाले आंकड़ा विज्ञानियों की इस फौज ने हाल ही में आए प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक, 2022 में भारत के 150वें स्थान को मानने से इनकार कर दिया था। हर दिन भारत में मीडिया को मरते देखने के बावजूद इस फौज का विवेक किसी ट्रैकर के भरोसे ही काम करता दिख रहा है।
- ‘ओडिशा में एक तांत्रिक 79 दिनों तक एक महिला के साथ एक कमरे में बलात्कार करता रहा, यह सब उस महिला के छोटे बच्चे के सामने होता रहा (7 मई, ओडिशा);
- झालावार जिले में एक 25 वर्षीय आदिवासी महिला के साथ असिस्टेंट सब-इन्स्पेक्टर ने बलात्कार किया जबकि यह पुलिसवाला महिला द्वारा की गई एक शिकायत का जांच अधिकारी था (6 मई, राजस्थान);
- ललितपुर में एक महिला सब-इन्स्पेक्टर ने चोरी के शक में एक घर में काम करने वाली एक महिला जो कि पहले से अस्वस्थ थी, की निर्वस्त्र करके पिटाई की (यूपी,6 मई);
- नरसिंहपुर में एक शादी समारोह से एक नाबालिग बच्ची का पहले अपहरण किया गया फिर बलात्कार के बाद उसकी हत्या करके जमीन में दफ़न कर दिया (5 मई, मध्य प्रदेश);
- शाहजहांपुर में 70 वर्षीय एक मानसिक रूप से बीमार महिला का गाँव के ही एक आदमी ने बलात्कार किया (5 मई, यूपी);
- फतेहपुर में 15 वर्षीय एक दलित किशोरी ने बलात्कार के एक दिन बाद जहर खाकर आत्महत्या कर ली (5 मई, यूपी);
- जयपुर में एक दिव्यांग महिला के साथ उसको जानने वाले एक आदमी ने महीनों तक बलात्कार किया (4 मई, राजस्थान);
- गुरुग्राम में 24 साल की एक महिला के साथ पहले दो लोगों ने बलात्कार किया फिर उसे चाकू मारकर हत्या की कोशिश की (4 मई, हरियाणा);
- गोंडा में अपनी आंटी के साथ ऑटो में जा रही एक लड़की को कुछ लड़कों ने ऑटो से बाहर खींचकर बलात्कार की कोशिश की (4 मई, यूपी);
- ललितपुर जिले में सामूहिक गैंगरेप की शिकायत करने पहुँची एक नाबालिग से थाने में भी एसएचओ द्वारा बलात्कार किया गया (4 मई, यूपी);
- ठाणे में 52 साल का आदमी अपने 25 वर्षीय बेटे के साथ अपनी दिव्यांग बेटी का 2017 से बलात्कार कर रहे थे, 10 साल की सजा मिली (3 मई, महाराष्ट्र);
- होशियारपुर में 10-11 साल के 4 लड़के एक साल तक 6 साल की लड़की का बलात्कार करते रहे (2 मई, पंजाब);
- बपातला जिले में रेपल्ले रेलवे स्टेशन के बाहर, परिवार के सामने कुछ लोगों ने एक गर्भवती महिला का अपहरण करके गैंगरेप किया (2 मई, आंध्र प्रदेश);
- शाहजहांपुर में 5 आदमियों ने एक महिला को अगवा करके उसके साथ गैंगरेप किया और अपने इस कुकृत्य की वीडियो रिकॉर्डिंग भी की जिसे बाद में सोशल मीडिया में डाल दिया गया (1 मई, यूपी);
- खजुराहो के पास चलती ट्रेन में बलात्कार की कोशिश का विरोध करने पर एक महिला को ट्रेन से बाहर फेंक दिया गया (30 अप्रैल, मध्य प्रदेश);
- समयपुर बादली में 14 साल की दिव्यांग नाबालिग और उसकी 6 महीने की बहन के साथ दो लोगों ने बलात्कार किया (1 मई, दिल्ली)।
ऊपर दिए गए ये वो मामले हैं जो पिछले सात दिनों में किसी न किसी अख़बार में अपनी जगह बना सके। ये वो मामले हैं जिनपर मीडिया की नज़र पड़ सकी, ये वो मामले हैं जो पुलिस के पास शिकायत के रूप में पहुँच सके। इसी एक सप्ताह में देश के दूरदराज इलाकों में ऐसे सैकड़ों अन्य मामले भी हो सकते हैं जो किसी की नजर में न आ सके हों और जो अखबारों में अपनी जगह नहीं बना सके हों।
ऊपर जितने भी मामले दिए गए हैं वो लगभग पूरे देश से हैं लेकिन यह भी सच है कि उनमें से ज्यादातर उत्तर प्रदेश के हैं जहां कानून व्यवस्था के नाम पर योगी आदित्यनाथ फिर से सत्ता में आए हैं।
मुख्यमंत्री होने के नाते हम योगी के मुँह से ‘ठोको’, ‘बुलडोजर’ ‘माफियाराज’ और ‘अब्बा जान’ जैसे शब्द तो सुनते रहे हैं लेकिन शायद ही कभी महिलाओं के साथ बढ़ रहे अपराधों के बारे में कुछ सुना हो।
यूपी के मुख्यमंत्री ही क्यों, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान व ओडिशा के भी मुख्यमंत्री भी शायद ही ऐसे मामलों में कठोर संदेश देते दिखे हों। हमेशा पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को मौन मोहन सिंह कहने वाले देश के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कभी कुछ ऐसा कहते नहीं सुना जिसको सुनने के बाद महिलाओं में आत्मविश्वास और सुरक्षा का भाव उत्पन्न हो। सारी मजबूती, सारा नेतृत्व महिलाओं के साथ हो रहे यौन अपराधों के मामलों में जमीन में मृत सांप की तरह पड़ा मिलता है।
पुरुषों से भरे इस भारतीय सामाजिक स्पेस में बलात्कार मात्र एक घटना है, पार्टियों के प्रवक्ताओं के लिए यह एक आंकड़ा है और पुलिस व जजों के लिए यह सिर्फ किसी कानून की ‘धारा’ मात्र है। असंवेदनशीलता के उच्चतम शिखर पर बैठा भारतीय समाज अपनी इज्जत वेद, पुराण और रामायण, महाभारत में खोजता है, पर हर दिन लुट रही महिलाओं की इज्जत में उसे कुछ भी भयावह नहीं दिखता।
अगर मैं यह कहूँ कि यह मीडिया जिसमें बैठा बुद्धिजीवी ‘निष्पक्षता’ के नशे से बाहर ही नहीं निकलना चाहता तो यह गलत नहीं होगा। मेरा मानना है कि अगर ‘निष्पक्षता’ लग्जरी बन गई है तो यह अपराध है। आंध्र प्रदेश की महिला गृहमंत्री तनीति वनिता ने रेपल्ले रेलवे स्टेशन में एक मई को 25 वर्षीय गर्भवती महिला के साथ सामूहिक बलात्कार के बारे में कहा कि आरोपियों का “ऐसा इरादा नहीं था, लेकिन अप्रत्याशित परिस्थितियों में ऐसा हुआ”।
विपक्षी दलों ने इस बयान पर आपत्ति जताई है। वास्तव में गृहमंत्री का यह बयान घिनौना है। एक गर्भवती महिला का बलात्कार हुआ, वो किस दर्द से गुजरी होगी इसे समझने के लिए आपको अपनी माँ, पत्नी या बहन से बात करनी चाहिए। इतने जघन्य अपराध के लिए सिर्फ आपत्ति! यह विपक्ष की राजनीति का निम्नतम बिन्दु है। क्या यदि तेलगु देशम पार्टी के मुखिया चंद्रबाबू नायडू को पुलिस घसीटते हुए ले जाती तब भी विपक्ष सिर्फ आपत्ति जताता? शायद नहीं! वो राज्य बंद का आह्वान करता। तो फिर इस मामले में इतनी शालीनता क्यों बरती गई? अगर किसी प्रदेश की गृहमंत्री, जिन पर क़ानून व्यवस्था की जिम्मेदारी है, वह इतना घिनौना बयान दें तो उन्हें पद पर नहीं रहने देना चाहिए।
महिलाओं के ख़िलाफ़ यौन अपराधों के मामलों में विभिन्न राज्यों की पुलिस की उदासीनता डराती है। देश के लगभग हर जिले में प्रमुख पदों पर संघ लोकसेवा आयोग की परीक्षा पास करके पहुंचे आईएएस और आईपीएस अधिकारी कुर्सियों पर बैठे हैं। ADG और DGP जैसे पदों पर भी निःसंदेह यही आईपीएस अधिकारी हैं। इनसे आशा की जाती है कि महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों को सिर्फ किसी ‘धारा’ को पढ़कर न समझें, यह वास्तव में देश और समाज की सबसे सुभेद्य 50% आबादी की सुरक्षा और स्वाभिमान का मामला है।
ललितपुर में एसएचओ द्वारा बलात्कार पीड़िता का थाने में रेप करना देश के सिर्फ कानूनी ढांचे को नहीं तोड़ता बल्कि यह करोड़ों महिलाओं और कानून के बीच के विश्वास को हमेशा छिन्न-भिन्न कर देता है। जब भी और जहां भी यह होता है, यह छोटी घटना नहीं है, देश की अखंडता को बाधित करने वाली घटना होती है। इस समय पुलिस के उच्चतम नेतृत्व को प्रदेश के सभी थानों और बड़े अधिकारियों को ऐसा संदेश देना चाहिए जिसे वो कभी भूल न सकें। लेकिन ऐसा नहीं होता। ललितपुर बलात्कार मामले में भी ऐसा नहीं हुआ। आईपीएस अधिकारी ने एक अपराध के रूप में इसकी उदासीन व्याख्या करते हुए मामला दर्ज कर लिया। कठोर संदेश न देने का असर 2 दिन बाद ललितपुर में ही तब नज़र आया जब एक महिला असिस्टेंट सब-इन्स्पेक्टर ने एक पुलिस वाले के घर में काम करने वाली एक महिला को थाने में निर्वस्त्र करके रातभर पीटा। क्योंकि पुलिसवाले को एक तांत्रिक ने बताया था कि इसी महिला ने चोरी की है। इस बार फिर आईपीएस महोदय आए और महिला पुलिसकर्मी को बर्खास्त कर दिया। उनके लिए यह रूटीन काम होगा लेकिन वास्तव में महिलाओं के खिलाफ थानों में अपराध इस ‘रूटीन एटिट्यूड’ की वजह से सच में रूटीन हो गया है।
वास्तव में एक महिला का बलात्कार कानून और प्रशासन में युद्धक परिस्थितियों के रूप में लिया जाना चाहिए जिसमें तत्काल और सख्त से सख्त कदम उठाए जाएँ।
न्यायपालिका का जो हिस्सा ‘हँसकर’ किए गए अपराधों को अपराध नहीं समझता उससे महिलाओं के मुद्दे पर बहुत संवेदनशीलता की आशा नहीं की जा सकती। जो न्याय प्रणाली हजारों लाखों महिलाओं के सामूहिक बलात्कार की धमकी और आह्वान करने वाले नव-बाबाओं को कुछ महीने जेल में नहीं रख सकता उनसे यह आशा तो बिल्कुल नहीं की जा सकती कि वो ऐसे अपराधियों को कानून के हाथों से कानूनी तरीकों से खींचकर सीखचों के अंदर अनंत काल के लिए बिठा दे ताकि एक ऐसा संदेश जा सके जिससे देश की करोड़ों महिलायें 1947 में मिली स्वतंत्रता को कम से कम आज 2022 में तो महसूस कर सकें।
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश जस्टिस एन वी रमना ने कम से कम एक पहल तो की जिसका स्वागत किया जाना चाहिए। जस्टिस रमना ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के छात्र विंग, ABVP, के नेता शुभांग गोनतिया जो कि एक महिला के साथ बलात्कार के आरोप के बाद जमानत पर रिहा हुए थे, की जमानत को रद्द कर दिया। क्योंकि न्यायालय के पास पीड़ित लड़की अपनी सुरक्षा की फ़रियाद लेकर पहुंची थी। ABVP नेता को जमानत मिलने के बाद उसके शहर आगमन पर जो पोस्टर लगाए गए थे उनमें लिखा था- ‘भैया इज बैक’। न्यायालय ने इसे अनुचित और पीड़ित की सुरक्षा पर खतरा माना। यह इतना कठोर संदेश है कि अब कोई बलात्कार का आरोपी जमानत मिलने पर इतनी खुशियां नहीं मना सकेगा।
कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी यूपी विधानसभा चुनावों के दौरान एक आशा की किरण के रूप में ‘शक्ति विधान घोषणा पत्र’ लेकर आई थीं, अगर ऐसी चीजें जमीन पर उतर पातीं तो शायद कुछ सकारात्मक हो पाता। परंतु कांग्रेस की हार से रुकाइया सखावत हुसैन की 1908 में छपी कहानी ‘सुल्तानाज ड्रीम’ की तरह उत्तर प्रदेश में महिलाओं के लिए ‘लेडीलैंड’ बनते बनते रह गया। जिस समय विधानमंडलों में 40% महिला जनप्रतिनिधि होंगे उस समय न थानों में बलात्कार होंगे और न ही कोई नव-बाबा सड़क में महिलाओं के सामूहिक बलात्कार का आह्वान कर पाएगा। पर नहीं पता ऐसा कब तक हो पाएगा?