भगवान कृष्ण ने हरियाणा में लट्ठ क्यों बजाया ?
"भगवान कृष्ण ने वृंदावन और मथुरा में रास रचाया और प्रेम करना सिखाया। वहां से सुदूर द्वारका पहुंचे तो राजकाज करना सिखाया। लेकिन जब कुरुक्षेत्र पहुंचे तो लट्ठ बजाना सिखाया"। ये संवाद है कुरुक्षेत्र में कृष्ण के गीता के उपदेश पर आधारित एक बेज़ोर प्रस्तुति का।
महान ग्रंथ गीता के गंभीर उपदेश में भी हास्य पैदा करने की क्षमता सिर्फ़ हरियाणा के कलाकारों में ही हो सकती है। महाभारत के युद्ध से पहले कृष्ण ने अर्जुन को युद्ध के लिए तैयार करने के लिए उपदेश दिया था, जिन्हें गीता का उपदेश कहा जाता है।
कृष्ण और अर्जुन के बीच इसी संवाद पर हरियाणा की लोक शैली "स्वांग" में एक नाटक भारत रंग महोत्सव में पेश किया गया। नाटक के निर्देशक और प्रमुख कलाकार सतीश ज़र्जी कश्यप ने हरियानवी हास्य के पुट से इस स्वांग को दिलचस्प बना दिया। नाटक का मूल विषय कृष्ण और अर्जुन के बीच संवाद था,जिसमें दुविधा से भरे अर्जुन को कृष्ण युद्ध करने के लिए तैयार करते हैं।
कृष्ण की भूमिका में सतीश कश्यप, गीता के श्लोकों का पाठ करते हैं, हिंदी में उसका मतलब बताते हैं। इसी क्रम में हरियाणा के मर्यादित हास्य को पिरोना नहीं भूलते हैं। स्वांग हरियाणा की लोक नाटक शैली है, सैकड़ों वर्षों से लोक कलाकार इन नाटकों के ज़रिए मनोरंजन के साथ साथ सामयिक और सामाजिक विषयों पर टीका टिप्पणी भी करते हैं।
वैसे तो इस नाटक में संगत और संगीत के लिए दस से ज़्यादा कलाकार थे लेकिन मुख्य भूमिका कृष्ण और अर्जुन की ही थी। दोनों पात्रों ने अपने दमदार अभिनय से दर्शकों को बांधे रखा और बार बार ठहाका लगाने पर मजबूर कर दिया।
"पंडवानी" में दिखाया गया स्त्री के अंतर्द्वंद को
महाभारत की एक अन्य प्रमुख पात्र द्रौपदी के स्वयंवर के माध्यम से स्त्री के अंतर्द्वंद को छत्तीसगढ़ की पंडवानी लोक नाटक शैली में रंग महोत्सव के पहले दिन प्रस्तुत किया गया। पंडवानी में मुख्य भूमिका एक कलाकार की ही होती है लेकिन संगीत और संगत के लिए कई अन्य कलाकार भी होते हैं।पंडवानी असल में पांडव वाणी का लोक रूप या अपभ्रंश है। इसमें पांडवों से जुड़ी कथायें सुनाई जाती हैं। यह छत्तीसगढ़ की "परधान" और " देवार" जातियों की गायन परंपरा है। परधान गोंड की उप जाति और देवार एक घूमंतु जाति है। तीज़न बाई ने इस शैली को अंतर राष्ट्रीय मंच तक पहुंचा दिया।
समप्रिया पूजा निषाद ने अपने ओजपूर्ण गायन और अभिनय से इस लोक शैली को एक नयी उंचाई तक पहुंचा दिया। इसकी एक प्रमुख विशेषता ये भी है कि एक ही कलाकार कई पात्रों की भूमिका को सहज ढंग से निभाता है। पूजा निषाद ने इसे आज की परिस्थितियों से जोड़ने की कोशिश भी की।
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय द्वारा आयोजित रंग महोत्सव कार्यक्रम 2 फ़रवरी को शुरू हुआ और 21 फ़रवरी तक चलेगा। इस समारोह में कई विदेशी नाटक भी शामिल हैं। इस बार यह उत्सव देश के दस से ज़्यादा शहरों में हो रहा है।