सावरकर से नहीं, स्वामी विवेकानंद से प्रेरित थे बोस: नेताजी बोस के रिश्तेदार
नेताजी सुभाष चंद्र बोस के पोते चंद्र कुमार बोस ने अभिनेता रणदीप हुड्डा के इस दावे को खारिज कर दिया है कि भगत सिंह और खुदीराम बोस के साथ स्वतंत्रता सेनानी विनायक दामोदर सावरकर से प्रेरित थे। चंद्र कुमार बोस ने दावा किया है कि नेताजी बोस केवल स्वामी विवेकानंद और स्वतंत्रता सेनानी देशबंधु चितरंजन दास से प्रेरित थे।
चंद्र बोस की यह प्रतिक्रिया तब आई है जब अभिनेता रणदीप हुड्डा ने अपनी आगामी फिल्म 'स्वातंत्र्य वीर सावरकर' को लेकर कुछ दावे किये हैं। हाल ही में टीज़र लॉन्च करते हुए रणदीप ने ट्वीट किया था, 'अंग्रेजों द्वारा सबसे वांछित भारतीय। नेताजी सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह और खुदीराम बोस जैसे क्रांतिकारियों के लिए प्रेरणा। कौन थे वीर सावरकर? उनकी सच्ची कहानी सामने देखें!'
The most wanted Indian by the British. The inspiration behind revolutionaries like - Netaji Subhash Chandra Bose, Bhagat Singh & Khudiram Bose.
— Randeep Hooda (@RandeepHooda) May 28, 2023
Who was #VeerSavarkar? Watch his true story unfold!
Presenting @RandeepHooda in & as #SwantantryaVeerSavarkar In Cinemas 2023… pic.twitter.com/u0AaoQIbWt
हुड्डा के दावे पर प्रतिक्रिया देते हुए चंद्र कुमार बोस ने कहा कि नेताजी केवल दो लोगों से प्रेरित थे। इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार चंद्र बोस ने कहा, 'नेताजी सुभाष चंद्र बोस केवल दो महान व्यक्तित्वों से प्रेरित थे। एक हैं स्वामी विवेकानंद, जो उनके आध्यात्मिक गुरु थे, और दूसरे व्यक्ति स्वतंत्रता सेनानी देशबंधु चितरंजन दास थे, जो उनके राजनीतिक गुरु थे। इन दो लोगों के अलावा, मुझे नहीं लगता कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस किसी अन्य स्वतंत्रता सेनानी से प्रेरित थे।'
चंद्र बोस ने तो यहाँ तक कह दिया कि नेताजी बोस तो सावरकर का विरोध करते थे। एचटी ने इंडिया टुडे के हवाले से रिपोर्ट दी है कि चंद्र बोस ने कहा, 'सावरकर एक महान व्यक्तित्व थे, एक स्वतंत्रता सेनानी थे, लेकिन सावरकर की विचारधारा और नेताजी की विचारधारा बिल्कुल विपरीत थी। इसलिए, मुझे कोई कारण नहीं दिखता कि नेताजी सावरकर के सिद्धांतों और विचारधारा का पालन क्यों करेंगे। उन्होंने वास्तव में सावरकर का विरोध किया था।'
चंद्र बोस ने यह भी कहा कि नेताजी ने अपने लेखन में स्पष्ट रूप से कहा है कि वे ब्रिटिश साम्राज्यवादी सत्ता के खिलाफ स्वतंत्रता आंदोलन में सावरकर और मुहम्मद अली जिन्ना से कुछ भी उम्मीद नहीं कर सकते।
रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा, 'उन्होंने (बोस ने) यह भी कहा कि भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में हिंदू महासभा और मुहम्मद अली जिन्ना से कुछ भी उम्मीद नहीं की जा सकती। नेताजी एक बहुत ही धर्मनिरपेक्ष नेता थे। उन्होंने उन लोगों का विरोध किया जो सांप्रदायिक थे। शरद चंद्र बोस और नेताजी सुभाष चंद्र बोस- दोनों भाइयों ने सांप्रदायिकता का पूरी तरह से विरोध किया। तो आप कैसे उम्मीद करते हैं कि नेताजी सावरकर का अनुसरण या समर्थन करेंगे?'
उन्होंने कहा,
“
सेलुलर जेल जाने से पहले, सावरकर भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में एक क्रांतिकारी थे। वह भारत की आजादी चाहते थे, लेकिन बाद में वे बदल गए।
चंद्र बोस, नेताजी बोस के पोते
इंडिया टुडे से चंद्र बोस ने यह भी कहा कि फिल्म निर्माताओं को माइलेज पाने के लिए गलत इतिहास पेश नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह एक अपराध है और इसकी अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
उन्होंने कहा, 'नेताजी ने सावरकर से मुलाकात की थी। लेकिन वे सावरकर के रवैये से बहुत प्रभावित नहीं हुए। वह (सावरकर) मूल रूप से एक हिंदू नेता थे … नेताजी भारतीय नेता थे, हिंदू या मुस्लिम नेता नहीं। नेताजी की आजाद हिंद फौज में सभी धर्मों के लोगों ने हिस्सा लिया था।'
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार सावरकर का जन्म 28 मई, 1883 को दामोदर और राधाबाई सावरकर के मराठी चितपावन ब्राह्मण हिंदू परिवार में महाराष्ट्र के नासिक शहर के पास भागुर गाँव में हुआ था। वह एक राजनीतिज्ञ, कार्यकर्ता और लेखक थे। वह हिंदू महासभा में एक प्रमुख व्यक्ति थे। सावरकर ने हाई स्कूल के छात्र के रूप में राजनीति में भाग लेना शुरू किया और पुणे में फर्ग्यूसन कॉलेज में भाग लेने के दौरान भी ऐसा करना जारी रखा।
यूनाइटेड किंगडम में कानून की पढ़ाई के दौरान वे इंडिया हाउस और फ्री इंडिया सोसाइटी जैसे समूहों के साथ सक्रिय हो गए। उन्होंने संपूर्ण भारतीय स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए क्रांतिकारी तरीकों को बढ़ावा देने वाली पुस्तकें भी प्रकाशित कीं। ब्रिटिश औपनिवेशिक अधिकारियों ने उनकी पुस्तक, द इंडियन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस, जो 1857 के भारतीय विद्रोह के बारे में था, को गैरकानूनी घोषित कर दिया था।