न्यायपालिका में आरक्षण चाहते हैं सभी दलों के दलित सांसद
अनुसूचित जाति और जनजाति (एससी-एसटी) समुदाय के सरकारी नौकरियों में और प्रमोशन में आरक्षण को लेकर आये सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ़ लगातार आवाज़ उठ रही हैं। केंद्रीय खाद्य मंत्री रामविलास पासवान ने सभी राजनीतिक दलों के दलित सांसदों के साथ इस मुद्दे पर बैठक की है। अंग्रेजी अख़बार ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ से बात करते हुए पासवान ने कहा, ‘बैठक में शामिल हुए सांसदों ने न्यायपालिका में आरक्षण मांगा है और भारतीय न्यायिक सेवा (आईजेएस) का गठन करने की मांग की है। क्योंकि जब भी किसी वंचित तबक़े का मामला अदालत में जाता है तो यह अटक जाता है।’
पासवान ने सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद 10 फ़रवरी को एससी और एसटी समुदाय के सांसदों की बैठक बुलाई थी। इसमें 70 सांसद उपस्थित रहे थे और केंद्र की एनडीए सरकार के छह मंत्री भी मौजूद थे। विपक्षी दलों की ओर से इस बैठक में डीएमके के नेता ए. राजा, शिवसेना का राजेंद्र गावित, केंद्रीय मंत्री थावर चंद गहलोत और केंद्रीय संसदीय कार्य राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल शामिल थे।
पासवान ने अख़बार के साथ बातचीत में कहा, ‘संविधान का अनुच्छेद 312 आईजेएस के गठन का अधिकार देता है। यह भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) और भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) की तर्ज पर ही होना चाहिए और आईजेएस में चयन प्रतियोगी परीक्षा के द्वारा होना चाहिए, यह परीक्षा पूरी तरह पारदर्शी होनी चाहिए और इसमें आरक्षण भी होना चाहिए।’
यह पूछने पर कि क्या वह सांसदों के इस विचार से सहमत हैं, पासवान ने कहा, ‘मैं आईजेएस बनाने के विचार का समर्थन दो बातों से करता हूं, पहली यह कि इसमें पारदर्शिता होनी चाहिए क्योंकि कॉलेजियम की वर्तमान व्यवस्था में ऐसा नहीं है और दूसरी यह कि इसमें समाज के सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व होगा।’ अख़बार की ओर से यह पूछे जाने पर कि क्या वह आईजेएस को लेकर केंद्रीय क़ानून मंत्रालय से कोई चर्चा करेंगे, पासवान ने कहा, ‘अब यह बात आगे बढ़ चुकी है। केंद्र ने आईजेएस को लेकर संसद में सकारात्मक जवाब दिया है। सरकार इस बारे में गंभीरता से विचार कर रही है।’
पासवान ने कहा, ‘कोई भी आरक्षण को ख़त्म नहीं कर सकता है। यह पत्थर की लकीर है और अब इसे समाज के ग़रीब वर्गों और सवर्ण जातियों को भी दिया जा रहा है। इसलिये, अब कोई भी आरक्षण को समाप्त नहीं कर सकता है।’
केंद्र में उपभोक्ता मामलों और सार्वजनिक वितरण का मंत्रालय देख रहे पासवान ने कहा, ‘सभी दलित सांसदों ने सर्वसम्मति से आईजेएस बनाने की मांग की है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसले को भी अमान्य करने की मांग की है।’ कोर्ट ने कुछ दिन पहले अपने फ़ैसले में कहा था कि एससी-एसटी वर्ग के लोगों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने के लिए राज्य सरकारें बाध्य नहीं हैं क्योंकि यह मौलिक अधिकार नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एससी-एसटी वर्ग के लोग सरकारी नौकरियों में आरक्षण का दावा नहीं कर सकते क्योंकि आरक्षण देना राज्य सरकारों की इच्छा पर निर्भर करता है।
फ़ैसले से कोई लेना-देना नहीं: केंद्र
सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को लेकर संसद में भी हंगामा हो चुका है। विपक्षी राजनीतिक दलों के साथ ही एनडीए में शामिल दलों ने भी कोर्ट के इस फ़ैसले का जोरदार विरोध किया है। हालांकि सरकार ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले से उसका कोई लेना-देना नहीं है। केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत ने विपक्षी दलों के सांसदों के सवालों का जवाब देते हुए कहा था कि केंद्र सरकार कभी भी इस मामले में पार्टी नहीं थी और न ही उससे कभी कोई घोषणापत्र देने के लिये कहा गया। गहलोत ने कहा कि यह मामला उत्तराखंड की सरकार की ओर से 2012 में लिये गये फ़ैसले के कारण सामने आया है और उस समय वहां कांग्रेस की सरकार थी। गहलोत ने कहा था कि सरकार इस बारे में चर्चा करेगी और आगे के क़दम के बारे में फ़ैसला लेगी।पासवान ने कहा कि सभी दलित सांसद यह चाहते हैं कि या तो केंद्र सरकार अध्यादेश लेकर आये या फिर क़ानून बनाये जैसा कि एससी-एसटी एक्ट (अत्याचार निवारण) के मामले में किया गया। दलितों की नुमाइंदगी करने वाले पासवान ने कहा कि चाहे क़ानून में संशोधन करना पड़े या अलग से क़ानून लाने की ज़रूरत हो सभी ज़रूरी क़दम उठाये जाने चाहिए। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि उनकी पार्टी आरक्षण को लेकर आये सुप्रीम कोर्ट के ताज़ा फ़ैसले के ख़िलाफ़ पुनर्विचार याचिका दायर करने को लेकर विचार कर रही है।