अयोध्या में राम मंदिर ट्रस्ट ने भगोड़े से किया विवादित ज़मीन का सौदा?
क्या आप विश्वास करेंगे कि अयोध्या में राम मंदिर ट्रस्ट ने एक भगोड़े से ज़मीन के लिए सौदा किया? उस ज़मीन के लिए जो पहले ही काफ़ी विवादित थी? एक ताज़ा मीडिया रिपोर्ट में तो कम से कम यही दावा किया गया है। अयोध्या में राम मंदिर ट्रस्ट द्वारा ख़रीदी गई जिस ज़मीन में भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं वह ज़मीन पहले से ही विवादित रही थी और इसे हरीश पाठक नाम के एक भगोड़े ने बेची थी।
हरीश पाठक पर क्या-क्या हैं मुक़दमे और किन मामलों में भगोड़ा है, यह जानने से पहले यह जान लें कि यह विवाद कैसे सामने आया। आम आदमी पार्टी के नेता और राज्यसभा सदस्य संजय सिंह और पूर्व विधायक पवन पांडेय ने आरोप लगाया है कि रामजन्मभूमि ट्रस्ट ने दो करोड़ रुपए की ज़मीन 18.50 करोड़ रुपए में खरीदी, इसमें करोड़ों रुपये का घपला किया गया।
दरअसल, इस ज़मीन को हरीश पाठक ने अयोध्या के बागबीजैसी गाँव में 18 मार्च को 1.2 हेक्टेयर ज़मीन सुल्तान अंसारी और रवि मोहन तिवारी को 2 करोड़ रुपये में बेची। अंसारी और तिवारी ने इसी ज़मीन को राम मंदिर ट्रस्ट को 18.5 करोड़ रुपये में बेच दी। ख़बर यह भी है कि उसी दिन पाठक ने 1.03 हेक्टेयर ज़मीन सीधे राम जन्मभूमि ट्रस्ट को 8 करोड़ में बेच दी।
अब इस मामले में आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह जो आरोप लगा रहे हैं उससे अलग हरीश पाठक का मामला अजीबोगरीब है। 'न्यूज़लाउंड्री' ने इस पर एक विशेष रिपोर्ट छापी है। उस रिपोर्ट के अनुसार, जिस हरीश पाठक के साथ राम मंदिर ट्रस्ट ने ज़मीन का सौदा किया उसके और उसकी पत्नी कुसुम पाठक के ख़िलाफ़ बाराबंकी, फैज़ाबाद, संत कबीरनगर सहित उत्तर प्रदेश के कई ज़िलों में मुक़दमे दर्ज हैं। हरीश पाठक का बेटा विकास इसी साल जनवरी में धोखाधड़ी के एक मामले में गिरफ़्तार किया गया था जो फ़िलहाल ज़मानत पर बाहर है। इस मामले में उसके माता-पिता हरीश और कुसुम दोनों आरोपी हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, 2016 के एक धोखाधड़ी के मामले में हरीश और कुसुम भगोड़े हैं। कैंट पुलिस थाने के अनुसार जब दोनों स्थानीय अदालत में पेश नहीं हुए तो अगस्त 2018 में उन्हें भगोड़ा घोषित कर दिया गया और उनकी संपत्ति जब्त करने को पुलिस को कहा गया। पुलिस ने तब हरीश की कार जब्त की थी।
'न्यूज़लाउंड्री' की रिपोर्ट के अनुसार गोंडा निवासी राम सागर ने अक्टूबर 2019 में अयोध्या पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि उन्होंने साकेत गोट फार्मिंग के बॉन्ड स्कीम में पैसा लगाया था जिसका निदेशक हरीश पाठक था। योजना थी कि 5000 के बॉन्ड पर 42 महीने में 8000 रुपये वापस मिलते। रुपये नहीं मिलने पर दो बकरियाँ दी जातीं। इसी में सागर ने 30 लाख रुपये ख़ुद निवेश किए थे और दूसरे लोगों से 60 लाख रुपये निवेश करवाए थे। लेकिन 42 महीने पूरे होने पर भी सागर को रुपये वापस नहीं मिले तो उन्होंने 19 अक्टूबर 2019 को हरीश, कुसुम और विकास पाठक के ख़िलाफ़ केस दर्ज कराया।
एफ़आईआर में कहा गया कि हरीश पाठक की कंपनी की उस स्कीम ने लोगों को भिखमंगा बना दिया। उसमें यह भी कहा गया है कि कंपनी बॉन्ड पूरा होने से पहले ही भाग गई।
रिपोर्ट के अनुसार साकेत गोट फार्मिंग कंपनी की बाराबंकी शाखा के प्रमुख सुनील कुमार शुक्ला ने ख़ुद के 35 हज़ार रुपये और रिश्तेदारों व जानने वालों से 40 लाख रुपये निवेश करवाए थे। शुक्ला ने भी एफ़आईआर दर्ज करवाई। शुक्ला की शिकायत पर बाराबंकी पुलिस ने हैदरगढ़ पुलिस स्टेशन में पाठक, कुसुम और विकास पर चोरी, धोखाधड़ी, जालसाजी और आपराधिक विश्वासघात का मामला दर्ज किया।
रिपोर्ट में कहा गया है कि संत कबीर नगर के राकेश कुमार ने ख़ुद के 20 हज़ार और दूसरे ग्राहकों से 40 लाख रुपये स्कीम में लगवाए थे। फतेहपुर शाखा की व्यवस्था संभालने वाले लक्ष्मी नारायण ने भी 15 हज़ार लोगों को उस स्कीम से जोड़ा और 7 करोड़ रुपये निवेश करवाए थे। लेकिन रुपये वापस नहीं मिले। वह कहते हैं कि वह एफ़आईआर दर्ज कराएँगे क्योंकि यह पूरी तरह धोखाधड़ी थी।
जमीन भी विवादित है!
यह तो हुई धोखेबाज़ और भगोड़े आरोपी से ज़मीन का सौदा किए जाने की बात। लेकिन इस हरीश पाठक ने ही जिस ज़मीन का सौदा किया था वह भी विवादित थी। 'न्यूज़लाउंड्री' की रिपोर्ट के अनुसार पाठक ने इसी साल 18 मार्च को ज़मीन के कुल पाँच टुकड़ों-242/1, 242/2, 243, 244, और 246 को बेचा। इसमें से 243, 244 और 246 को उसने अंसारी और तिवारी को 2 करोड़ रुपये में ज़मीन बेची थी जिसे बाद में राम मंदिर ट्रस्ट को 18.5 करोड़ में बेच दिया गया। बाक़ी दो- 242/1 और 242/2 को उसने सीधे ही मंदिर ट्रस्ट को 8 करोड़ में बेच दिया।
रिपोर्ट के अनुसार यह वह ज़मीन है जिसे पाठक ने 2017 में जावेद आलम, महफूज आलम, फिरोज़ आलम और नूर आलम से 2 करोड़ में ख़रीदी थी। लेकिन इस ज़मीन पर विवाद यह है कि 2017 से इस ज़मीन की देखरेख आलम परिवार के दूर के रिश्तेदार वहीद अहमद कर रहे थे।
वहीद अहमद कहते हैं कि ज़मीन के ये पाँचों टुकड़े आलम के नहीं थे और इसलिए वे इसे बेच नहीं सकते हैं। उन्होंने दावा किया कि वह ज़मीन वक़्फ बोर्ड की है।
अहमद कहते हैं कि यह ज़मीन पहले अहमद के परदादा ने 1924 में वक़्फ बोर्ड को दे दी थी और वह इसके पहले सुपरिंटेंडेंट बने थे। भारतीय क़ानून के अनुसार एक सुपरिंटेंडेंट वक़्फ की ज़मीन की ज़िम्मेदारी संभाल सकता है, लेकिन न तो वह उसे बेच सकता है और न ही बदल या गिरवी रख सकता है जब तक कि अदालत या वक़्फ की मंजूरी नहीं हो।
रिपोर्ट के अनुसार 1986 में महमूद आलम उसके सुपरिंटेंडेंट बने। 1994 में उनकी जगह पर उनके रिश्तेदार मुहम्मद असलम आए। लेकिन 2009 में असलम को पता चला कि आलम के बेटे- जावेद, महफूज, फिरोज़ और नूर को उस ज़मीन का मालिक बना दिया गया था। असलम ने विरोध किया और जब मामला प्रशासन तक पहुँचा तो उसने इसको बेचने पर रोक लगा दी। न्यूज़लाउंड्री की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस साल मई तक उस ज़मीन पर एक बैनर लगा था कि 'यह विवादित ज़मीन है। इस संपत्ति पर हाजी मो. फायक के खानदान के लोगों का हक है जिसमें 50 लोगों का हिस्सा है'।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि वक्फ़ के अधिकारियों ने अप्रैल 2018 में एक नोट तैयार किया था जिस पर लिखा था कि बागबीजैसी की ज़मीन वक़्फ की है और जिसे आलम ने बिना इजाजत इसे हरीश और कुसुम पाठक को बेच दिया है। इस मामले में अहमद ने चारों आलम भाइयों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर भी दर्ज कराई है जिसमें आरोप लगाया गया है कि वक़्फ की ज़मीन को उन्होंने जालसाजी कर बेच दिया है जिसे बेचा नहीं जा सकता है।
इस मामले में न्यूज़लाउंड्री ने लिखा है कि जब इन आरोपों पर राम जन्मभूमि ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय, अयोध्या मेयर ऋषिकेश उपाध्याय और ट्रस्ट के सदस्य अनिल मिश्रा से संपर्क किया तो उनका जवाब नहीं आया।