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मैं पूर्वाग्रह के हिंसक धुएं से लड़ते हुए सात समंदर पार देखना चाहता हूं !

मैं पूर्वाग्रह के हिंसक धुएं से लड़ते हुए सात समंदर पार देखना चाहता हूं !

देश के कई राज्यों में रामनवमी पर हुई हिंसा के बीच दुनिया के अन्य देशों में विविधता में एकता की तलाश करते लेखक और चिन्तक अपूर्वानंद अपने साप्ताहिक कालम में।

रामनवमी के दौरान शौर्य प्रदर्शन के नाम पर की जा रही हिंसा के बीच कुछ सकारात्मक बात करने का दबाव है। मेरी बेटी ने ध्यान दिलाया कि अभी कुछ दिन पहले ही जिन दरख्तों ने अपने बदन से सारे पत्ते गिरा दिए थे और निष्कवच खड़े थे, उनकी शाखें को पत्तियों ने ढँकना शुरू कर दिया है। अभी गाढ़ा हरा रँग आने में देर है। ललछौंह पत्तियाँ जीवन की अनिवार्यता का आश्वासन देती हैं। लेकिन यह सकारात्मकता चैन नहीं लेने देती। फिर उसे इंसानी ज़िंदगी में कहाँ खोजें?

सात समंदर पार से एक खबर से भरोसा होता है कि इंसानी सफ़र बेहतरी की तरफ बढ़ रहा है। तंगनज़री, तंगदिली से आज़ाद होने की जद्दोजहद में दुश्वारियाँ तो हैं लेकिन कोशिश जारी है। हम जो दावा करते हैं कि ‘वसुधैवकुटुंबकम’ का सिद्धांत हमारी देन् है,अब दूर देश इंग्लैंड या ग्रेट ब्रिटेन या यूनाइटेड किंगडम से वापस यह संदेश हमें भेजा जा रहा है। गोरों और उनमें भी ईसाई बहुल स्कॉटलैंड ने अपना प्रमुख या फर्स्ट मिनिस्टर एक मुसलमान, हमज़ा यूसफ़ को चुना है। वह भी जो एक पीढ़ी पहले पाकिस्तान से इंग्लैंडआए परिवार का सदस्य है।यह उस देश में हुआ जिसका श्वेत श्रेष्ठतावाद उसके उपनिवेशवादी प्रभुत्व की दलील था।  

हमज़ा यूसफ़ ने अपने दादा दादी के बारे में याद करते हुए कहा,“ (वे)इस देश में आए ऐसे आप्रवासी (थे)जो अंग्रेज़ी का एक भी लफ़्ज़ नहीं जानते थे। उन्होंने सपने में भी न सोचा होगा कि उनका पोता एक दिन स्कॉटलैंड का अगला प्रमुख बनने के करीब होगा।” हमज़ा ने कहा कि हमें इस बात में गर्व होना चाहिए कि हमने एक बहुत साफ संदेश दिया है कि जिस देश को हम अपना घर कहते हैं उसका नेतृत्व करने के रास्ते में आपकी चमड़ी का रंग या आपका मजहब आड़े नहीं आता।”

स्कॉटलैंड के फर्स्ट मिनिस्टर के रूप में हमज़ा यूसफ़ का चुनाव बहुत महत्त्वपूर्ण है। ‘टाइम’ पत्रिका ने ठीक ही लिखा है कि  पश्चिमी जनतान्त्रिक दुनिया में वे पहले मुसलमान राष्ट्रीय नेता हैं।पहले जातीय अल्पसंख्यक नेता। लेकिन वे अकेले नहीं हैं। स्कॉटिश लेबर पार्टी ने अनस सरवर को अपना नेता बनाया है। और अभी कुछ वक्त पहले ही इंग्लैंड में ही एक हिंदू ऋषि सुनक को प्रधानमंत्री के तौर पर चुना गया है। और करीब ही आयरलैंड ने भी अपना प्रमुख भारतीय मूल के लियो वरड़कर को दूसरी बार चुना है।

अपने पूर्व उपनिवेश से आए लोगों को अपनी बागडोर सुपुर्द करते वक्त इन इलाकों ने गर्व महसूस किया है। उनके समाज का बहुरंगापन सिर्फ बातों का मामला नहीं, जैसे भारत में है, बल्कि वे उसे अमली जामा भी दे सकते हैं। इसका अर्थ यह नहीं कि उनके यहाँ इस्लाम के खिलाफ़ द्वेष नहीं या श्वेत श्रेष्ठतावादी भावना नहीं लेकिन इन चुनावों से मालूम होता है कि उसका प्रतिरोध भी उनके यहाँ है और वह प्रभावी है।

सादिक़ खान को लंदन ने दूसरी बार अपना मेयर चुना। इसका मतलब है कि ऐसा नहीं कि एक बार तो किसी तरह तुक्का लग गया, दुबारा गलती सुधार ली गई। सुनक और यूसफ़ के चुनाव के बारे में कहा जाता है कि वह तो उनकी पार्टियों के भीतर के समीकरण का नतीजा था, सीधे चुनाव के बाद अगर वे आते तो कोई बात थी। लेकिन सादिक़ खान को तो लंदन की जनता ने सीधे चुना।  

भारतीय माँ और जमैकन पिता की पुत्री कमला देवी हैरिस को अमेरिका का उप राष्ट्रपति हुए तो काफी वक्त हो गया। अमेरिका के करीब कनाडा में स्कॉटलैंड की तरह ही मुख्य विपक्षी दल न्यू डेमक्रैटिक पार्टी के प्रमुख नेता एक सिख जगमीत सिंह हैं।

इन देशों में ये चुनाव इत्तफ़ाक़ भर नहीं। ग्रेट ब्रिटेन या इंग्लैंड ने दो दो बार भारतीय मूल की महिलाओं को गृह सचिव चुना। उसी तरह मुसलमान, पाकिस्तानी मूल के व्यक्ति को स्वास्थ्य विभाग का जिम्मा दिया गया और व्यावसायिक मामलों के लिए भी पहली पीढ़ी की नाइजीरियाई महिला को चुना गया। सुनक के पहले बोरिस जॉनसन के मंत्रिमंडल में भी भारतीय, पाकिस्तानी, अफ्रीकी मूल के लोग शामिल थे।

हमें मालूम है कि इनमें से ज्यादातर के खयाल खासे दक्षिणपंथी हैं।सुनक की गृह सचिव भारतीय मूल की सुवेला ब्रावरमैन हैं जो खुद आप्रवासी ही हैं लेकिन वे आप्रवासियों के मामलों में खासी क्रूर हैं। जैसे उनके पहले की गृह सचिव, भारतीय मूल की ही, प्रीति पटेल थीं। सुनक खुद अधिकतर मामलों में प्रतिक्रियावादी हैं। लेकिन अभी हम् यह चर्चा नहीं कर रहे। हम यह देख रहे हैं कि इन देशों की बहुसंख्यक जनता ने अपने देश की नियति खुद से अलग दीखनेवाले लोगों को सौंपी। और इसे लेकर हाय तौबा नहीं मची, बल्कि इसका ऐलान गर्व के साथ किया गया।

दूसरों पर बात करते समय अक्सर खुद से तुलना का लोभ हो आता है। अभी इरादा उसका नहीं। क्योंकि जो बात हम कर रहे हैं, उस प्रसंग में ब्रिटेन, आयरलैंड, स्कॉटलैंड , कनाडा, अमेरिका से अपनी तुलना करने पर खासी निराशा होगी और खुद के बारे में शर्मिंदगी का अहसास होगा जबकि खोज अभी सकारात्मकता की है। इस पृथ्वी पर कहीं भी मानवता अगर एक कदम भी आगे बढ़ाती है तो उसके साथ हमारी भी जड़ता टूटती है। जब दुनिया के किसी हिस्से में कोई समाज अपने पूर्वग्रहों से लड़ता है तो हमें भी अपने प्रेतों का सामना करने की हिम्मत मिलती है।

फिलहाल यह लेखक इतना ही कहना चाहता है। उस धुँए के बीच भी जो बिहारशरीफ के आज़ादी के पहले निर्मित अजीजिया मदरसे में सुरक्षित प्राचीन ग्रंथों को ‘जय श्री राम’ के नारे के जला दिए जाने के बाद उठ रहा है और जिसकी गंध सैकड़ों मील पार कर मेरा दम घोंट रही है। मैं अपने देश में पूर्वग्रह के हिंसक धुँए से लड़ते हुए सात समंदर पार का दृश्य देखना चाहता हूँ और यह मानना चाहता हूँ कि इस उदारता से मेरे मन पर पड़ी जंजीर भी  कमजोर होती है।    

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