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टिकैत की चेतावनी- जबरन हटाया तो सरकारी दफ्तरों को बना देंगे गल्ला मंडी

टिकैत की चेतावनी- जबरन हटाया तो सरकारी दफ्तरों को बना देंगे गल्ला मंडी

दिल्ली की सीमाओं पर किसानों के प्रदर्शन स्थलों से क्या किसानों को हटाने की तैयारी है? जानिए, किसान नेता राकेश टिकैत ने इसको लेकर क्या चेतावनी दी है। 

दिल्ली की सीमाओं से प्रदर्शनकारी किसानों को जबरन हटाने की किसी कोशिश के ख़िलाफ़ किसान नेता राकेश टिकैत ने आज चेतावनी दी है। उन्होंने कहा है कि यदि ऐसा हुआ तो देश भर के किसान सरकारी दफ़्तरों को गल्ला मंडी बना देंगे। पुलिस द्वारा टिकरी और ग़ाज़ीपुर बॉर्डर की सड़कों से बैरिकेड्स और कंटीले तार हटाए जाने के बीच कई तरह की आशंकाओं पर टिकैत की यह चेतावनी आई है। ये आशंकाएँ किसानों को वहाँ से हटाए जाने को लेकर हैं। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की एक सख़्त टिप्पणी के बाद इस तरह की आशंकाओं को बल मिला है। 

इन आशंकाओं को लेकर राकेश टिकैत ने आज ट्वीट किया है।

दिल्ली की सीमाओं पर किसान तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे हैं और वे पिछले साल से वहीं डटे हैं। प्रदर्शनकारी किसान दावा कर रहे हैं कि पिछले साल बनाए गए तीनों कृषि क़ानून उनके हित के ख़िलाफ़ हैं, जबकि केंद्र कह रहा है कि ये क़ानून किसानों के हित में हैं।

इतने लंबे वक़्त से चल रहे प्रदर्शन को लेकर कई सड़कें बंद हैं। पुलिस ने उन जगहों पर बैरिकेडिंग कर दी थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद उन्हें हटाया गया है। 

दो दिन पहले दिल्ली पुलिस ने टिकरी और ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर रखे गए सीमेंट के बड़े ब्लॉक्स, बैरिकेड्स और कंटीले तार को हटा दिया है। टिकरी बॉर्डर पर यह काम गुरुवार रात को जबकि ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर शुक्रवार सुबह शुरू किया गया था। ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर पश्चिम उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड से आए किसान बैठे हैं जबकि टिकरी बॉर्डर पर हरियाणा और पंजाब के किसानों का जमावड़ा है। 

टिकरी और ग़ाज़ीपुर बॉर्डर को पूरी तरह खोलने की मांग को लेकर कई बार प्रदर्शन भी किया जा चुका है। 

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने कुछ दिन पहले किसान आंदोलन के कारण सड़कों के बंद होने पर तीख़ी टिप्पणी की थी। शीर्ष अदालत ने कहा था कि किसानों को आंदोलन करने का हक़ है लेकिन सड़कों को अनिश्चित काल तक के लिए बंद करके नहीं रखा जा सकता है। अदालत प्रदर्शनकारियों को सड़कों से हटाने की मांग को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। अदालत ने जवाब देने के लिए किसान संगठनों को तीन हफ़्ते का वक़्त दिया है। 

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