राजनीति में रजनीकांत, कमल हासन का साथ आना मुश्किल क्यों?
तमिल फ़िल्मों के दो सुपरस्टार- रजनीकांत और कमल हासन क्या साथ आएँगे और मिलकर चुनाव लड़ेंगे? क्या कमल हासन रजनीकांत को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित करेंगे? इन दोनों सवालों को लेकर तमिलनाडु में इन दिनों बहस हो रही है। क्या शहर, क्या गाँव, कई लोग इन्हीं दोनों सवालों के जवाब जानने को बेताब हैं। लेकिन अगर तमिलनाडु की राजनीति के जानकारों की मानें तो इन दोनों का राजनीति में एक होना बेहद मुश्किल है। इसके कई कारण हैं। सबसे बड़ा कारण है, दोनों की अलग-अलग सोच और विचारधारा।
रजनीकांत धार्मिक और आध्यात्मिक प्रवृत्ति के इंसान हैं, जबकि कमल नास्तिक हैं और वामपंथी विचारधारा में विश्वास रखते हैं। रजनीकांत ने कभी ऐसा कोई बयान नहीं दिया या कोई ऐसा काम किया, जिससे किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचती हो।
रजनीकांत मंदिर जाते हैं। सत्रहवीं शताब्दी के संत राघवेंद्र स्वामी को अपना आध्यात्मिक गुरु मानते हैं। वह आध्यात्मिक गुरुओं- जिड्डू कृष्णमूर्ति और ओशो के भी प्रशंसक हैं। सबसे बड़ी बात, वे पेरियार के प्रतिपादित कई सिद्धान्तों का विरोध करते हैं। हिन्दू देवी-देवताओं के ख़िलाफ़ कोई भी बात उनके लिए असहनीय है। जबकि ब्राह्मण परिवार में जन्मे कमल हासन पेरियार की बातों में विश्वास रखते हैं। कमल ने हमेशा सत्ता विरोधी बयान दिये हैं और बीजेपी-आरएसएस के मुखर विरोधी हैं। ऐसी स्थिति में दोनों का राजनीति में साथ आना मुश्किल है, ऐसा जानकारों का मानना है।
अगर फ़िल्मों की बातें की जाएँ, तब भी दोनों का नाम-काम बिलकुल अलग है। रजनीकांत 'मास हीरो' हैं, जबकि कमल 'क्लास हीरो'। एक अपनी डायलॉग डिलीवरी और एक्शन के लिए मशहूर है, तो दूसरा प्रयोगों और दमदार अभिनय के लिए। रजनीकांत के हावभाव की नकल लाखों लोग करते हैं, जबकि कमल की तारीफ़ कला के दीवानों के बीच में होती है। जानकार बताते हैं कि पर्दे पर चमकने के लिए दोनों के बीच हमेशा ज़बरदस्त होड़ रही। एक दूसरे को पछाड़ने के लिए दोनों ने ख़ूब पसीना बहाया। दोनों ने सोलह फ़िल्मों में साथ काम किया, लेकिन ज़्यादा शोहरत पाने के लिए दोनों में हमेशा कड़ा मुक़ाबला रहा।
सार्वजनिक समारोहों में रजनीकांत और कमल, दोनों एक-दूसरे का पक्का दोस्त के रूप में पेश करने की भरपूर कोशिश करते हैं, लेकिन आपस में दोनों के बीच प्रतियोगिता ही रही।
बड़ी बात यह है कि रजनीकांत द्रविड़ पार्टियों की राजनीति को ख़त्म कर राष्ट्रवादी राजनीति करना चाहते हैं, जबकि कमल द्रविड़ पार्टियों के बीच अपनी अलग पहचान बनाना चाहते हैं। सूत्र बताते हैं कि रजनीकांत ने अपने क़रीबियों से साफ़ कह दिया है कि वे न स्टालिन की डीएमके के साथ कोई समझौता करेंगे और न ही पलानीसामी और पन्नीरसेल्वम की अन्ना डीएमके के साथ कभी हाथ मिलाएँगे।
वैसे तो कमल हासन ने कहा है कि वह रजनीकांत के साथ राजनीतिक गठजोड़ को तैयार हैं, लेकिन रजनीकांत ने कमल के साथ जुड़ने के प्रस्ताव में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है। इसके पीछे कई वजहें हैं। एक बड़ी वजह 2019 के लोकसभा चुनाव में कमल हासन की पार्टी का ख़राब प्रदर्शन है। लोकसभा चुनाव में कमल हासन की पार्टी के सभी उम्मीदवार अपनी ज़मानत भी बचाने में नाकाम रहे थे। कमल हासन की पार्टी को 4 फ़ीसदी वोट भी नहीं मिले। जबकि रजनीकांत के चाहने वालों की संख्या लाखों में है। इस संख्या के मामले में कमल काफ़ी पीछे हैं। कमल की एक और कमज़ोरी है। उनकी भाषण-कला दमदार नहीं है, जबकि रजनीकांत असदरदार भाषण देते हैं। रजनीकांत के चाहने वालों में आम आदमी ज़्यादा हैं और वे सभी वर्गों के लोगों से आसानी से कनेक्ट होते हैं।
कई ऐसे लोग भी हैं, जो रजनीकांत और कमल हासन की तुलना अपने ज़माने के सुपरस्टार एम. जी. रामचंद्रन (एमजीआर) और शिवजी गणेशन से करते हैं। दमदार अभिनय के मामले में शिवजी गणेशन एमजीआर से काफ़ी आगे थे, लेकिन लोकप्रियता के मामले में एमजीआर ने शिवजी गणेशन को काफ़ी पीछे छोड़ दिया था। एमजीआर मुख्यमंत्री बने, जबकि शिवजी गणेशन राजनीति में पिट गये। कई लोग हैं जो यह मानते हैं कि एमजीआर की तरह रजनीकांत राजनीति में ख़ूब चमकेंगे, जबकि कमल हासन शिवजी गणेशन की तरह नहीं चल पाएँगे। बहरहाल, राजनीति में रजनीकांत और कमल हासन का साथ आना नामुमकिन जान पड़ता है।