राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के द्वारा पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट पर किए गए बड़े हमले के बाद इस राज्य में कांग्रेस का संकट एक बार फिर तेज हो गया है। 2018 के विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद से ही मुख्यमंत्री बनने की आस लगाए सचिन पायलट पर इस हमले के जरिये गहलोत ने यह भी साफ करने की कोशिश की है कि वह और उनके समर्थक विधायक राजस्थान में सचिन पायलट को मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकार नहीं करेंगे।
लेकिन अब सबकी नजरें कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे पर टिकी हैं कि आखिर खड़गे इस मामले में क्या और कब फैसला करेंगे।
इस साल अगस्त-सितंबर में जब अशोक गहलोत के कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़ने की चर्चा शुरू हुई थी तो यह माना गया था कि गहलोत के कांग्रेस का अध्यक्ष बनने के बाद राजस्थान में कांग्रेस को इस सियासी लड़ाई से छुटकारा मिल जाएगा और पार्टी के नेता व कार्यकर्ता अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटेंगे।
गहलोत के कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़ने की चर्चाओं के बीच सचिन पायलट खेमे को उम्मीद बंधी थी कि अब उनके नेता को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिलेगी लेकिन घटनाक्रम इस तरह बदला कि अशोक गहलोत ने कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव नहीं लड़ा और मल्लिकार्जुन खड़गे पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने।
तब सचिन पायलट और उनके समर्थकों से कहा गया कि कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव पूरा हो जाने के बाद पार्टी राजस्थान को लेकर फैसला लेगी। अब कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव हुए 1 महीने से ज्यादा का वक्त हो चुका है। लेकिन कोई फैसला नहीं हुआ।
मुख्यमंत्री बनाने की मांग
पिछले कुछ दिनों में सचिन पायलट के समर्थक मंत्रियों हेमाराम चौधरी, राजेंद्र गुढ़ा के साथ ही राज्य कृषि उद्योग बोर्ड की उपाध्यक्ष सुचित्रा आर्य ने सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाने की खुलकर मांग की। सोशल मीडिया पर भी पायलट समर्थक सक्रिय हो गए थे। खुद पायलट ने भी कहा कि राजस्थान में अनिश्चितता का माहौल अब खत्म होना चाहिए।
लेकिन अब बारी राजनीति के जादूगर कहे जाने वाले अशोक गहलोत की थी। गहलोत ने एनडीटीवी को दिए इंटरव्यू में साल 2020 में सचिन पायलट के द्वारा की गई बगावत को गद्दारी बताया, वहीं यह भी साफ किया कि ऐसे व्यक्ति को कैसे मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है जिसके पास 10 विधायक भी ना हों। यह बात कह कर अशोक गहलोत ने अपने इरादे साफ कर दिए।
पिछले ढाई साल से राजस्थान कांग्रेस में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के खेमों के बीच जो लड़ाई चल रही है उससे पार्टी की अच्छी-खासी फजीहत हो चुकी है। साथ ही पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेताओं के बीच भी जबरदस्त असमंजस है कि ऐसे हालात में कांग्रेस अगले साल होने वाला विधानसभा चुनाव किसकी अगुवाई में और कैसे लड़ेगी।
भारत जोड़ो यात्रा
इसलिए यह सवाल उठ रहा है कि क्या अब मल्लिकार्जुन खड़गे व गांधी परिवार को राजस्थान के सियासी संकट को लेकर कोई अंतिम फैसला ले लेना चाहिए। क्योंकि कुछ ही दिनों के अंदर राज्य में भारत जोड़ो यात्रा प्रवेश करने वाली है और उससे ठीक पहले राज्य के कांग्रेस प्रभारी अजय माकन अपने पद से इस्तीफा दे चुके हैं।
माकन ने अपने पत्र में इस साल सितंबर में जयपुर में बुलाई गई विधायक दल की बैठक में ना आने को लेकर कांग्रेस के तीन नेताओं राजेंद्र राठौड़, शांति धारीवाल और महेश जोशी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई ना होने को लेकर नाराजगी जताई थी और इससे यह सवाल उठा था कि इतने गंभीर मामले में नोटिस जारी करने के बाद भी पार्टी नेतृत्व ने कोई एक्शन क्यों नहीं लिया।
पंजाब से लेंगे सबक?
राजस्थान से पहले पंजाब कांग्रेस में भी इसी तरह लड़ाई चली थी और उस दौरान मुख्यमंत्री रहे अमरिंदर सिंह और प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू की सियासी लड़ाई की वजह से ही अमरिंदर सिंह को कुर्सी छोड़नी पड़ी थी। अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस भी छोड़ दी थी। बाद में नवजोत सिंह सिद्धू का टकराव मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के साथ भी हुआ था। इसका नतीजा यह हुआ था कि कांग्रेस की इस साल फरवरी में हुए विधानसभा चुनाव में जबरदस्त शिकस्त हुई थी। क्या पंजाब से सबक लेते हुए मल्लिकार्जुन खड़गे व गांधी परिवार राजस्थान को लेकर अंतिम फैसला करेंगे?
सवाल यही है कि कांग्रेस का नेतृत्व राजस्थान के सियासी रण को लेकर अंतिम फैसला कब करेगा क्योंकि अगर यह सियासी लड़ाई इसी तरह चलती रही तो यह लगभग तय है कि कांग्रेस के लिए राजस्थान की सत्ता में वापसी करना बेहद मुश्किल हो जाएगा।