राजस्थान: सिब्बल बोले- ‘सत्र बुलाने की मांग होने पर देरी नहीं कर सकते राज्यपाल’

06:52 pm Jul 24, 2020 | सत्य ब्यूरो - सत्य हिन्दी

राजस्थान के सियासी संकट को लेकर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा है कि देश में लोकतंत्र की नई परिभाषा बन चुकी है। सिब्बल ने कहा कि राजस्थान में कैबिनेट की बैठक में यह फ़ैसला लिया गया कि हम सोमवार को सत्र बुलाना चाहते हैं और सरकार की ओर से राज्यपाल को चिट्ठी लिखी गई कि वे इसका नोटिफ़िकेशन जारी कर दें। लेकिन इस पर कोई निर्णय नहीं हुआ। 

वरिष्ठ अधिवक्ता सिब्बल ने कहा, ‘बड़े आश्चर्य की बात है, जब सरकार आग्रह करे कि सत्र बुलाना है तो उसमें राज्यपाल को देरी नहीं करनी चाहिए। इसमें संविधान की मर्यादा की बात है, इसमें सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले भी हैं जिनमें साफ कहा गया है कि जब सत्र बुलाने की मांग हो तो राज्यपाल इसमें देरी नहीं कर सकते और यह उनका कर्तव्य भी है।’ 

सिब्बल ने कहा, ‘पिछले कुछ सालों में लोकतंत्र की परिभाषा बदल चुकी है। आज लोकतंत्र में राज्यपाल सरकारों की सलाह नहीं लेंगे, कहीं और से सलाह लेंगे और चुनी गई सरकारों को गिराने में मदद भी करेंगे।’

कांग्रेस नेता ने कहा, ‘आपको याद होगा कि महाराष्ट्र में क्या हुआ, राष्ट्रपति शासन लागू था और राज्यपाल ने शपथ दिला दी। मध्य प्रदेश में कोरोना के दौर में कुछ असंतुष्टों को कर्नाटक ले जाया गया, उत्तराखंड में भी यही हुआ, गोवा में कांग्रेस की ज़्यादा सीटें होने के बाद भी राज्यपाल ने दूसरे को शपथ दिला दी, यह लोकतंत्र की नई परिभाषा है।’ 

सिब्बल ने कहा, ‘जो सुप्रीम कोर्ट फ़ैसले करता है, हाई कोर्ट उसको किनारे कर देते हैं। हाई कोर्ट में बैठकर किसी जज का यह कह देना कि स्पीकर साहब आप कार्रवाई नहीं करेंगे, तो यह लोकतंत्र की नई परिभाषा है। अगर हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला नहीं मानना है तो फिर वकील बहस क्यों करें।’ 

विरोध की आवाज़ को दबाने का आरोप

उन्होंने कहा कि संस्थाओं को कैप्चर किया जा रहा है और जो कोई विरोध करता है उसके पीछे एजेंसियां लगाई जा रही हैं ताकि कोई विरोध न करे। कांग्रेस नेता ने कहा, ‘अगर लोकतंत्र की यही परिभाषा है कि जो सरकार कहे, सब को मान लेना चाहिए, कोई विरोध नहीं होना चाहिए तो संस्थाएं क्यों काम कर रही हैं और ऐसे में जो सरकार कहे, प्रधानमंत्री कहें, उसको मान लेना चाहिए।’ 

सिब्बल ने कहा कि अखिल गोगोई, उमर ख़ालिद, सफूरा ज़रगर, शरजील इमाम पर यूएपीए लगा दिया गया। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र की इस नई परिभाषा में विपक्ष के नेताओं का क्या रोल है, वकीलों का क्या रोल है, ये सोचना पड़ेगा।