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पायलट समर्थक विधायक नई पार्टी के पक्ष में नहीं

पायलट समर्थक विधायक नई पार्टी के पक्ष में नहीं

राजस्थान में सचिन पायलट की राजनीति ऐसे मोड़ पर पहुंच गई है कि वो खुद नहीं समझ पा रहे कि उन्हें क्या करना है। वो कांग्रेस से अलग होकर पार्टी बनाना चाहते हैं लेकिन उनके समर्थक विधायक तैयार नहीं है। भाजपा भी उनके इस फैसले से सहमत नजर नहीं आ रही है, वो सचिन को कांग्रेस में ही देखना चाहती है। बहरहाल, तमाम दांव-पेंच के बीच पत्रकार महेश झालानी का विश्लेषण पढ़िएः

यद्यपि सचिन पायलट की ओर से नई पार्टी बनाने की लगभग सभी आवश्यक तैयारिया हो चुकी है । लेकिन उनकी ओर से नई पार्टी लांच होगी, इस पर अब संशय उतपन्न होगया है । क्योंकि उनके अधिकांश समर्थक और विधायक कांग्रेस छोड़ने के पक्ष में नही है । समर्थकों का मानना है कि नई पार्टी बनाना आत्मघाती कदम होगा ।

राजनीतिक हलकों में जोरो से चर्चा है कि सचिन 11 जून को जन संघर्ष या राज प्रगतिशील के नाम पर नई पार्टी का ऐलान कर कांग्रेस को बाय बाय कर सकते है । लेकिन उनके समर्थक अभी भी इस बात के पक्षधर है कि नई पार्टी के बजाय कांग्रेस में रहना बुद्धिमत्तापूर्ण निर्णय होगा । क्योंकि नई पार्टी का भविष्य क्या होगा, इस पर अभी भी संशय बना हुआ है । विधायक किसी भी तरह की रिस्क लेने के मूड में नही है । नई पार्टी की घोषणा होने पर उनके समर्थक मंत्री अपना पद छोड़ देंगे, सम्भवना नजर नही आती ।

पायलट के समर्थित विधायक चाहते है कि ईगो को साइड में रखकर एक बार सुलह के प्रयास किये जाने चाहिए । भावावेश अथवा आवेश में उठाया गया कदम कइयों का राजनीतिक भविष्य चौपट कर सकता है । पायलट के एक कट्टर समर्थक ने बातचीत में बताया कि पार्टी नेताओ द्वारा हम लोगो की जानबूझकर उपेक्षा की जा रही है जिससे हम लोग कांग्रेस छोड़ने को मजबूर हो जाए ।

समर्थक विधायक का कहना है कि लगता है पार्टी का संचालन दिल्ली से नही, जयपुर से हो रहा है । पार्टी कुछ लोगो के हाथों में कैद होकर रह गई है । इन्ही के इशारों पर निर्णय हो रहे है । जब 26 मई को सुलह का फार्मूला तय हो चुका था तो उसे सार्वजनिक करने से परहेज क्यों ? आलाकमान को चाहिए कि वह अविलम्ब फार्मूले को उजागर करें ताकि तदनुसार आगे बढ़ा जाए।

विधायक का कहना था कि हम पक्के कांग्रेसी है तथा पार्टी के प्रति समर्पित और अनुशासित है । नई पार्टी बनाने का कोई इरादा नही है । पायलट साहब को कोई पद नही चाहिए । उनकी मांगों पर यथोचित कार्रवाई हो, यही हम चाहते है । मांगे ऐसी भी नही है जिन्हें पूरा नही किया जा सके । फिर आनाकानी और उपेक्षा क्यों ?

जैसा मैंने पहले भी लिखा था कि पायलट और अशोक गहलोत के बीच अभी भी सुलह की गुंजाइश है । पता चला है कि गहलोत भी टकराहट के मूड में नही है । वे कुछ ऐसी शर्तो पर समझौता कर सकते है जो उनके आत्मसम्मान के आड़े नही आ सकती है । पता चला है कि वसुंधरा के राज में हुए घोटालो के लिए जांच का कार्य लोकायुक्त अथवा किसी प्रशासनिक आयोग को दिया जा सकता है । जहाँ तक पेपर लीक से प्रभावित अभ्यर्थियों को मुआवजा दिए जाने की बात है, इसके लिए आश्वासन दिए जाने की संभावना है । यह मांग पूरी होगी, इसमे संशय है । 

उधर राजस्थान के प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा कह चुके है कि पायलट कांग्रेस छोड़कर कही नही जा रहे है । इसका सीधा अर्थ है कि राहुल गांधी के अमेरिका से आने के बाद ऐसा फार्मूला तैयार किया जा सकता है जो दोनो पक्षो को ग्राह्य हो । अगर फार्मूला पायलट के आत्मसम्मान के विपरीत हुआ तो वे नई पार्टी का ऐलान करने से कतई नही चूकेंगे । क्योकि उनका आलाकमान से भरोसा खण्डित हो चुका है । तीन साल से उनको लॉलीपॉप चुसाकर सार्वजनिक रूप से उनका उपहास उड़ाया जा रहा है

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