क्या राजस्थान कांग्रेस में अभी भी सबकुछ ठीक नहीं है? क्या अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच मनमुटाव फिर से बढ़ सकता है? आख़िर इशारों ही इशारों में दोनों तरफ़ से की जा रही बयानबाज़ी के मायने क्या हैं?
राजस्थान कांग्रेस में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट के बीच चल रही अदावत किसी से छिपी नहीं है। गाहे-बगाहे दोनों नेता एक दूसरे पर निशाना साधते रहते हैं। यह अदावत कितनी गहरी है, इसको इस तरह समझा जा सकता है कि इनकी आपसी लड़ाई में सरकार के ऊपर खतरा मडराने लगता है।
चुनावी साल में इन दोनों नेताओं की अदावत कम होने की बजाए लगातार बढ़ती ही जा रही है। ताजा घटनाक्रम में सचिन पायलट ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सरकार पर, भाजपा की वसुंधरा राजे सरकार के समय किए गये भ्रष्टाचार के आरोपों पर कार्रवाई नहीं करने पर सवाल उठाए।
जयपुर लिट फेस्ट में आए सचिन पायलट ने संवाददाताओं से बात करते हुए कहा कि अभी भी एक साल बाकि है, सरकार को वसुंधरा राजे के खिलाफ आरोपों पर कार्रवाई करनी चाहिए। जब हम विपक्ष में थे, हमने भाजपा सरकार और मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के खिलाफ भ्रष्टाचार के मुद्दे उठाए थे। लेकिन बीते चार साल में हम उनके खिलाफ कार्रवाई कर पाने में कामयाब नहीं हो पाए हैं। अब समय आ गया है कि सरकार उनपर कार्रवाई करे।
अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे के दो मुख्य विपक्षी दलों में होने के बाद भी उनके आपसी संबध काफी अच्छे हैं। इसका कारण पिछले कुछ सालों से यह दोंनो नेता ही अदली- बदली कर सरकार चला रहे हैं।
कल गुरुवार को वायरल हुए एक वीडियो में अशोक गहलोत पार्टी में एक वायरस के आ जाने की बात कर रहे थे। माना जा रहा है वायरस का संबध सचिन पायलट पर निशाना था। वीडियो के अगले हिस्से में वे कहते हैं कि मैनें बैठकें फिर से शुरू कर दी हैं, पहले कोरोना था, अब एक बड़ा कोरोना भी हमारी पार्टी में प्रवेश कर गया है। जिस बैठक में गहलोत यह कह रहे हैं वह उन्होंने राज्य सरकार के पेश होने वाले अगले बजट पर चर्चा के लिये बुलाई थी।
चुनावी साल होने के बाद गहलोत और पायलट के बीच किसी भी प्रकार की सहमति बनती नहीं दिख रही है। इसके पलस्वरूप पायलट ने अकेले ही चुनाव अभियान शुरू कर दिया है। इसके पीछे वजह बताई जा रही है कि पायलट राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से मिली सहानुभूति का लाभ उठाना चाहते हैं। इस बीच पायलट ने अपनी सरकार के खिलाफ जाते हुए पेपर लीक के मसले को उठाकर सरकार के लिए असहज स्थिति पैदा कर थी। इसे पायलट और गहलोत के आपसी झगड़े के तेज होने के संकेत के तौर पर देखा जा रहा है।
अशोक गहलोत ने इस वीडियों में किसी का नाम नहीं लिया, लेकिन यह माना जाता है कि वह अपने पूर्व सहयोगी को ही निशाना बना रहे थे। जिन्हें वह पहले भी गद्दार और निकम्मा तक कह चुके हैं।
चुनावी साल होने के बाद गहलोत और पायलट के बीच किसी भी प्रकार की सहमति बनती नहीं दिख रही है। इसके पलस्वरूप पायलट ने अकेले ही चुनाव अभियान शुरू कर दिया है। इसके पीछे वजह बताई जा रही है कि पायलट राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से मिली सहानुभूति का लाभ उठाना चाहते हैं। इस बीच पायलट ने अपनी सरकार के खिलाफ जाते हुए पेपर लीक के मसले को उठाकर सरकार के लिए असहज स्थिति पैदा कर थी। इसे पायलट और गहलोत के आपसी झगड़े के तेज होने के संकेत के तौर पर देखा जा रहा है।
करीब दो महीने पहले गहलोत ने एनडीटीवी को दिए एक साक्षात्कार में अपने ही साथी और पूर्व उपमुख्यमंत्री को गद्दार बताया था और कहा था कि वह मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे। पायलट पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा था कि गद्दार मुख्यमंत्री नहीं हो सकता। एक आदमी जिसके पास 10 विधायक नहीं हैं, जिसने पार्टी के खिलाफ विद्रोह किया है। आलाकमान सचिन पायलट को मुख्यमंत्री नहीं बना सकता।
राजस्थान की राजनीति में इस तरह के हालात अशोक गहलोत को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने जाने की संभावनाओं के बीच शुरु हुए थे। इसके बाद सरकार खतरे में आ गई थी। माना जा रहा था कि अशोक गहलोत के पद छोड़ते ही राजस्थान में मुख्यमंत्री बदलना होगा, क्योंकि पार्टी एक व्यक्ति, एक पद के सिद्धांत का पालन करेगी। इन अटकलों के बीच ही पायलट को सीएम बनाने की चर्चा तेज हो गई थी। लेकिन बाद में अशोक गहलोत पार्टी अध्यक्ष नहीं बने और राजस्थान का संकट टल गया। इसके दो महीने बाद पायलट का चुनावी अभियान शुरु हुआ है। अपने इस अभियान में पायलट अकेले ही चल रहे हैं।
पायलट और गहलोत के बीच आपसी लड़ाई की शुरुआत 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद ही शुरु हो गई थी। क्योंकि पार्टी ने चुनाव में पायलट को युवा चेहरे के तौर पर पेश किया था लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को बना दिया था। हालांकि बाद पायलट उप-मुख्यमंत्री के तौर पर काम करने के लिए सहमत हो गये थे, लेकिन दो साल के भीतर ही कुछ बेहतर की मांग के साथ उन्होंने बगावत कर दी थी।
पायलट की यह बगावत ज्यादा दिनों तक सफल नहीं हो पाई थी, क्योंकि उस समय ज्यादातर विधायकों ने गहलोत के साथ रहना चुना था।