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कोचिंग संस्थानों पर ऐसी नकेल से कोटा में आत्महत्याएँ रुक जाएँगी?

कोचिंग संस्थानों पर ऐसी नकेल से कोटा में आत्महत्याएँ रुक जाएँगी?

राजस्थान के कोटा में नीट जैसी परीक्षाओं की तैयारी करने वालों में आत्महत्या के बढ़ते मामलों के बीच अब सरकार ने कोचिंग संस्थानों को कई क़दम उठाने को कहा गया है। जानिए, ये क़दम क्या हैं और इससे क्या फर्क पड़ेगा।

राजस्थान के कोटा में कोचिंग संस्थानों को छात्रों के हित में कई क़दम उठाने को कहा गया है। राजस्थान सरकार ने इसके लिए राज्य भर में दिशानिर्देश जारी किए हैं। नियमित टेस्ट के परिणामों को गोपनीय रखने, रैंक के आधार पर विशेष बैचों में छात्रों को अलग नहीं करने और संस्थान छोड़ने का आसान रास्ता देने व 120 दिनों के भीतर पैसे वापस करने की नीति अपनाने के दिशा-निर्देश दिए गए हैं।

राज्य सरकार ने यह फ़ैसला तब लिया है जब कोटा में छात्रों में आत्महत्या के मामले लगातार सामने आ रहे हैं। इसी बुधवार को एक और छात्र ने आत्महत्या कर ली थी। पुलिस ने कहा कि 20 वर्षीय छात्र मोहम्मद तनवीर ने अपने कमरे में लटका हुआ पाया गया। इससे इस साल कोटा में आत्महत्या करने वालों की कुल संख्या 27 हो गई है। पुलिस ने कहा कि तनवीर मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के लिए राष्ट्रीय पात्रता-सह-प्रवेश परीक्षा यानी नीट की तैयारी कर रहा था।

पिछले कुछ महीनों में आत्महत्या के मामलों में चिंताजनक वृद्धि ने स्थानीय अधिकारियों के बीच चिंता बढ़ा दी है और उन्हें उपाय लागू करने के लिए मजबूर किया है। हाल ही में अधिकारियों ने छत के पंखों में एंटी-हैंगिंग डिवाइस लगाना अनिवार्य कर दिया और कोचिंग संस्थानों को दो महीने की अवधि के लिए कोई भी टेस्ट आयोजित करने से परहेज करने का निर्देश जारी किया था।

इंजीनियरिंग के लिए संयुक्त प्रवेश परीक्षा यानी जेईई और मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के लिए राष्ट्रीय पात्रता-सह-प्रवेश परीक्षा यानी एनईईटी (नीट) जैसी प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं की तैयारी के लिए सालाना दो लाख से अधिक छात्र कोटा जाते हैं।

कहा जाता है कि छात्रों की संख्या अधिक होने से प्रतिस्पर्धा बेहद ज़्यादा है। पढ़ाई का ख़र्च बेहद ज़्यादा होने और बहुत ज़्यादा उम्मीदें लगाने से अनावश्यक दबाव बनता है। कुछ लोग मानते हैं कि जिस तरह प्रतिस्पर्धा का दबाव और पढ़ाई का तौर तरीका है, वह काफ़ी हद तक बच्चों में डिप्रेशन पैदा करने के लिए ज़िम्मेदार है। 

बहरहाल, कोटा में कोचिंग छात्रों द्वारा आत्महत्या की बढ़ती संख्या को रोकने के लिए राज्य सरकार द्वारा शिक्षा सचिव भवानी सिंह देथा की अध्यक्षता में 15 सदस्यीय समिति गठित करने के बाद 27 सितंबर को नौ पेज के दिशानिर्देश जारी किए गए।

दिशा-निर्देश कोचिंग संस्थानों और इससे जुड़े अन्य लोगों के परामर्श से तैयार किए गए हैं। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार संस्थानों को कक्षा 9 से नीचे के छात्रों को मेडिकल और इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी के लिए कोचिंग संस्थानों में प्रवेश लेने के लिए प्रोत्साहित करने से रोकते हैं। इसके अलावा छात्रों के व्यवहार में बदलाव पहचानने के लिए शिक्षकों को प्रशिक्षित करना और टेस्ट रिजल्ट के आधार पर छात्रों के अलग बैच बनाने पर रोक लगाना भी दिशा-निर्देशों में अनिवार्य किया गया है।

रिपोर्ट के अनुसार दिशा-निर्देशों में कहा गया है कि समिति ने आत्महत्याओं के लिए जिन मुख्य कारणों को जिम्मेदार पाया उनमें मानसिक दबाव, अत्यधिक प्रतिस्पर्धा के कारण निराशा और परीक्षाओं में कम सफलता दर, माता-पिता की काफी ज़्यादा उम्मीदें, सही परामर्श और शिकायत निपटाने की व्यवस्था की कमी, अलग बैच तैयार करना आदि शामिल हैं। 

कोचिंग संस्थानों के लिए यह अनिवार्य कर दिया गया है कि वे छात्रों के प्रवेश के समय वर्णानुक्रम में बैचों का निर्धारण करें और पाठ्यक्रम पूरा होने तक बैचों में कोई बदलाव न करें। दिशा-निर्देशों में कहा गया है, 'कोचिंग शिक्षकों को छात्रों के शैक्षणिक प्रदर्शन के आधार पर उनके साथ भेदभाव नहीं करना चाहिए।' इसके अलावा भी कई सिफारिशें की गई हैं और इनका उद्देश्य छात्रों पर मानसिक दबाव को कम करना है। दिशा-निर्देशों को लागू करने के लिए जिला कलेक्टरों को अपने-अपने क्षेत्रों में जागरूक करने का काम सौंपा गया है।

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