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गए थे विमोचन में, कुलपतियों को राज्यपाल की जीवनी साथ बिल भी भेजा!

गए थे विमोचन में, कुलपतियों को राज्यपाल की जीवनी साथ बिल भी भेजा!

राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र की जीवनी के विमोचन को लेकर अजीब वाकया हुआ। वे राज्यपाल की जीवनी के विमोचन में गए थे लेकिन वीसी को किताबों संग बिल थमाया दिया गया।

राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र की जीवनी के विमोचन को लेकर अजीब वाकया हुआ। राज्यपाल का 1 जुलाई को जन्मदिन पर उनकी जीवनी 'निमित्त मात्र हूँ मैं' के विमोचन के लिए कई अन्य अतिथियों के साथ राज्य के सभी 27 विश्वविद्यालयों के वाइस चांसलर (वीसी) यानी कुलपतियों को भी आमंत्रित किया गया था। कुलपतियों की राज्यपाल के साथ बैठक हुई। 'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार ये कुलपति बैठक में शामिल होकर जब अपनी गड़ी में लौटे तो वहाँ दो कार्टन में भरी किताबें रखी हुई थीं और इसके साथ बिल भी थे। ये किताबें कुछ और नहीं बल्कि राज्यपाल की जीवनी की ही 19 प्रतिलिपियाँ थीं। और इनके लिए 68 हज़ार 383 रुपये का बिल था। इसमें एक मुफ़्त में अतिरिक्त कॉपी भी थी। 

कलराज मिश्र की इस जीवनी में लिखा गया है कि वह आरएसएस से लंबे समय तक जुड़े रहे और फिर जन संघ और बीजेपी से जुड़ गए। इसकी प्रस्तावना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की है। और इसके पीछे के कवर पन्ने पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और पू्र्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की संक्षिप्त समीक्षा है। 

अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार इस जीवनी के अंदर के एक पन्ने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की तसवीर है जिसके बैकग्राउंड में कमल का फूल है। वहीं पर लिखा है- "आइए हम 'नए भारत' के निर्माण के आंदोलन का समर्थन करें। पार्टी से जुड़ें और इस मिशन में हमारा हाथ मज़बूत करें। एक भारत श्रेष्ठ भारत।"

इन्हीं सब बातों को लेकर अब विवाद हो सकता है। एक तो यह कि 68 हज़ार रुपये से ज़्यादा का बिल देकर वीसी को ये जीवनी क्यों दी गईं? क्या इसलिए कि वे विश्वविद्यालय से पैसे चुकाएँगे? दूसरे, क्या किसी दल से जुड़े राज्यपाल और एक खास पार्टी के पक्ष की बात करने वाली ऐसी जीवनी को विश्वविद्यालय के पुस्तकालयों में रखना ठीक रहेगा?

द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, एक वीसी ने कहा, 'सरकारी खरीद के नियम स्पष्ट रूप से राजस्थान सार्वजनिक खरीद (आरटीपीपी) अधिनियम, 2012 में निर्धारित किए गए हैं। विश्वविद्यालयों को इन पुस्तकों के लिए एकतरफा तरीक़े से कैसे बोझ डाला जा सकता है? राज्य के 27 विश्वविद्यालय तकनीकी, स्वास्थ्य, कृषि, पशु चिकित्सा, क़ानून इत्यादि जैसे क्षेत्रों में विशेषज्ञ हैं। प्रत्येक विश्वविद्यालय को इतनी सारी किताबों के लिए बिल क्यों देना पड़े, और हम किस मद के तहत ख़र्च वहन करेंगे?'

उन वीसी को जो बिल भेजा गया है उसमें प्रति प्रतिलिपि की क़ीमत 3999 रुपये है। 19 प्रतिलिपियों के लिए 75981 रुपये हुए, लेकिन इस पर 10 फ़ीसदी की छूट देने के बाद 68383 रुपये भुगतान करने को कहा गया है।

बिल पर जो बैंक खाता दिया गया है जहाँ भुगतान करने को कहा गया है वह इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट एंड अंटरप्रोन्योरशिप यानी आईआईएमई जयपुर का है। बता दें कि जीवनी के लेखक राज्यपाल के ओएसडी के साथ जो सह लेखक डॉ. डी के टाकनेट हैं और वह आईआईएमई से लंबे समय से जुड़े रहे हैं। जीवनी की जो प्रमुख शोधकर्ता हैं वह डी के टाकनेट की पत्नी सुजाता टाकनेट हैं और वह भी आईआईएमई से जुड़ी हैं।

अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार एक वीसी सवाल उठाते हैं, 'विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत आने वाला कोई शोध संगठन कैसे राज्यपाल पर एक कॉफ़ी टेबल बुक को विज्ञान शोध के रूप में प्रकाशित कर रहा है?'

रिपोर्ट के अनुसार एक वीसी ने कहा कि बिल में पाँच शीर्षक दिए हुए हैं, लेकिन कार्टन के अंदर सिर्फ़ जीवनी की प्रतिलिपियाँ ही थीं। 

एक सवाल यह भी है कि राज्यपाल की जीवनी की ये प्रतिलिपियाँ कुलपतियों तक किसने पहुँचाईं? अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार, नाम नहीं बताने की शर्त पर एक वीसी ने कहा कि राज्यपाल के साथ बैठक के दौरान कोई आया और हमारे ड्राइवरों का नाम और फ़ोन नंबर ले गया। उन्होंने कहा कि हमें लगा कि ड्राइवरों को खाना और पानी के लिए ऐसा किया गया। 

कुलपतियों के इन आरोपों पर राज्यपाल के सचिव की ओर से प्रतिक्रिया आई है। रिपोर्ट के अनुसार यह पूछे जाने पर कि किस तरह से जीवनी की प्रतियाँ सौंपी गईं, राज्यपाल के सचिव सुबीर कुमार ने कहा कि कुलपति 'बकवास' कर रहे हैं। उन्होंने कहा, 'यह ग़लत और निराधार है।'

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