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अमृत महोत्सव: जब सरजीत सिंह ने अंग्रेज़ों को खदेड़ दिया था

अमृत महोत्सव: जब सरजीत सिंह ने अंग्रेज़ों को खदेड़ दिया था

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की जिस 1857 की क्रांति में नींव पड़ी थी, उसमें कई ऐसे वीर सपूत थे जिन्होंने अंग्रेज़ों से लोहा लिया था। ऐसे ही वीर सपूतों में से एक राजा सरजीत सिंह थे। जानिए, 1857 की क्रांति में उनके योगदान को।

राजा सरजीत सिंह दनकौर के रहने वाले थे। 1857 की क्रांति में दरियाव सिंह, इंदर सिंह, नत्था सिंह, रामबख्शसिंह- इन सबका महत्वपूर्ण योगदान है। ये सभी एक ही परिवार के थे और भाई थे। इनके पूर्वजों का संबंध हस्तिनापुर परीक्षितगढ़ की रियायत से था। परीक्षितगढ़ के राजा कदम सिंह क्रांति का नेतृत्व कर रहे थे इसीलिए दनकौर के सारे गुर्जर तन मन धन से 1857 की क्रांति में शामिल हुए। इनमें 2 लोगों का नाम सर्वाधिक आदर से लिया जाता है- पहला दरियाव सिंह नागर हैं। इन्होंने 14 मई 1857 को सिकंदराबाद को जीता और अंग्रेजों को सिकंदराबाद से भगा दिया, अंग्रेजों का खजाना और हथियार लूट कर क्रांति सेना की ताकत बढ़ाई।

दूसरे युवा का नाम सरजीत सिंह नागर था। उनके पिता जवहार सिंह दनकौर के जमींदार थे और उनके पास सशस्त्र घुड़सवारों की बड़ी संख्या मौजूद थी। सरजीत सिंह हस्तिनापुर के राजा कदम सिंह के विश्वासपात्र थे। जब 18 मई को लाल किले का दरबार लगा और वहां अलग-अलग जिलों में अलग-अलग क्षेत्रों में क्रांति की जिम्मेवारी अलग-अलग वीरों को दी गई, उसी दिन बुलंदशहर से अंग्रेजों के सफाये का फैसला हुआ। 

19 मई को सुबह सरजीत सिंह ने बुलंदशहर को घेर लिया। भारी युद्ध हुआ जिसमें अंग्रेजी सेना के साथ अंग्रेजों से हमदर्दी रखने वाले लोग भी अंग्रेजों के साथ लड़े। लड़ाई सुबह से शाम तक हुई। जंग में क्रांतिकारियों की जीत हुई। अंग्रेज हार गए। अंग्रेजों की सेना जान बचाकर बरेली की ओर भाग गई। शाम होते-होते क्रांतिकारियों ने बुलंदशहर की जेल के फाटक खोल दिए, कैदियों को आजाद करा दिया, खजाना और शस्त्रागार को अपने कब्जे में ले लिया और सरकारी इमारतों पर क्रांति ध्वज फहरा दिया। 

 

बुलंदशहर की फतेह में राजा उमराव सिंह के भाई रोशन सिंह, मालागढ़ के नवाब वलीदाद खान और अट्टासावर गांव के जमींदार कान्हा सिंह व उनके पुत्र एहमान सिंह का भी महत्वपूर्ण योगदान था। सरजीत सिंह ने इसके उपरांत 23 सितंबर से शुरू हुए युद्ध, जो कि अंग्रेज और क्रांतिकारियों के बीच में निर्णायक था, उसमें भी बड़ी बहादुरी का परिचय दिया। सरजीत सिंह ने अंग्रेजों का मुकाबला करते हुए अंग्रेजों को भारी क्षति पहुंचाई। अंत में युद्ध भूमि में लड़ते हुए उन्होंने वीरगति को प्राप्त की। कुछ लोगों व इतिहासकारों का मानना है कि उन्हें घायल अवस्था में गिरफ्तार कर लिया गया था और बाद में उन्हें बुलंदशहर के काला आम पर फांसी लगा दी गई।

अक्टूबर 1857 में अंग्रेजों द्वारा दनकौर, दादरी, सिकंदराबाद पर पुन: अंग्रेजों का कब्जा होने के बाद दनकौर के आसपास के सभी गांवों को तोप से उड़ा दिया गया। अधिकतर पुरुषों को मार दिया गया। बचे खुचे लोगो ने धौलपुर, बल्लभ गढ़, भरतपुर व ग्वालियर में शरण ली। ग्वालियर में आज भी दनकौर से गये नागर गुर्जर परिवारों के 3 गांव हैं। 1872 में अंग्रेज सरकार द्वारा क्रांतिवीरों को आम माफी दिये जाने के बाद यहां के गुर्जर पुन: वापस आये। कुछ परिवार दुजाना, रौजा जलालपुर, मिलक, डेरी मच्छा, सादुल्लापुर, अच्छेजा, बादलपुर व आसपास के गांवों में बस गये।

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