ओडिशा ट्रेन हादसे से हफ्तों पहले रेलवे बोर्ड ने दी थी 'गड़बड़ी' की चेतावनी!
ओडिशा में ट्रेन हादसों से पहले क्या सिग्नल सिस्टम से जुड़ी कुछ खामियाँ थीं? और यदि ऐसा था तो वह किस प्रकार की गड़बड़ियाँ थीं? एक रिपोर्ट के अनुसार 3 जून के ओडिशा ट्रेन हादसे से कुछ हफ्ते पहले रेलवे बोर्ड ने अप्रैल महीने में अपने सभी ज़ोनों को सूचित किया था कि जनवरी के बाद से कम से कम पांच मामलों में ट्रेनों का संचालन असुरक्षित रूप से किया गया जिनमें सिग्नलिंग कर्मचारियों द्वारा पॉइंट और क्रॉसिंग पर 'शॉर्टकट' अपनाया गया। रेलवे बोर्ड ने ही यह लिखा है कि मरम्मत के दौरान कई तरह की 'लापरवाहियाँ' बरती गईं और ट्रेनों का संचालन किया जाता रहा।
रेलवे बोर्ड के एक सदस्य ने एक पत्र में यह सब लिखा है। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार 3 अप्रैल को रेलवे बोर्ड के सदस्य (इन्फ्रास्ट्रक्चर) आरएन सुनकर के एक पत्र में जिन तथ्यों पर जोर दिया गया है, उनमें मरम्मत व रखरखाव कार्य के दौरान 'बिना उचित परीक्षण के सिग्नलिंग गियर को फिर से जोड़ना', 'गलत वायरिंग' शामिल हैं। आशंका है कि ओडिशा ट्रेन दुर्घटना में ऐसी ही कोई गड़बड़ी वजह हो सकती है।
बता दें कि ओडिशा ट्रेन हादसे में तीन ट्रेनें दुर्घटनाग्रस्त हुई थीं। रिपोर्टों में कहा गया है कि एक मालगाड़ी लूप लाइन में खड़ी थी और मुख्य लाइन से तेज गति से एक्सप्रेस ट्रेन गुजर रही थी। लेकिन लाइन बदलने वाली जगह पर यह ट्रेन कथित तौर पर मालगाड़ी वाले ट्रैक पर चली गई और लूप लाइन में खड़ी मालगाड़ी से जा टकराई। इसके डब्बे बेटरी हुए और इसी दौरान एक अन्य ट्रैक पर आ रही ट्रेन के कुछ डिब्बे से टकरा गए थे। इन तीन ट्रेनों के हादसे में कम से कम 275 लोगों की मौत हो गई है और क़रीब 1000 लोग घायल हो गए।
इस दुर्घटना मामले की सीबीआई और रेलवे सुरक्षा आयुक्त यानी सीआरएस द्वारा जांच की जा रही है। द इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से ख़बर दी है कि सीआरएस को ओडिशा में कर्मचारियों द्वारा अवगत कराया गया है कि स्टेशन के लेवल क्रॉसिंग पर लोकेशन बॉक्स था जो केबल के माध्यम से गेट, रिले और पॉइंट मोटर से जुड़ा था, लेकिन उनमें से प्रत्येक की लेबलिंग आपस में घुली-मिली थी। यानी ऐसी स्थिति में घालमेल होने की आशंका रहेगी ही।
इसे आसानी से ऐसे समझ सकते हैं। एक 'लोकेशन बॉक्स', रेल की पटरियों के साथ रखा जाता है। यह बॉक्स कई कनेक्शन का एक जंक्शन की तरह काम करता है। इस बॉक्स में पॉइंट मोटर (रेल ट्रैक का वो हिस्सा जो दो अलग-अलग ट्रैक पर ट्रेनों को भेजने के लिए इस्तेमाल होता है), सिग्नलिंग लाइट और ट्रैक के खाली या भरे होने के डिटेक्टर के कनेक्शन होते हैं। यह और अन्य प्रणालियां 'इंटरलॉकिंग' एक महत्वपूर्ण सुरक्षा तंत्र है। यदि इस सिस्टम की ग़लत वायरिंग कर दी जाए या फिर सिग्नलिंग व ट्रैक के भरे या खाली होने वाले डिटेक्टर सही से काम न करें तो क्या हाल होगा, इसकी कल्पना ही की जा सकती है।
अंग्रेजी अख़बार ने रिपोर्ट दी है कि ऐसी पांच घटनाएँ जनवरी और मार्च के दौरान लखनऊ, कर्नाटक के होसदुर्गा, लुधियाना, मुंबई के खारकोपर और मध्य प्रदेश के बागराटावा में मिलीं। रिपोर्ट के अनुसार सनकर ने इस पर 'कर्मचारियों द्वारा शॉर्टकट तरीकों को अपनाना' शीर्षक से पत्र लिखा। उन्होंने इसमें लिखा है कि सिग्नलिंग की मरम्मत करने वाले 'साइट से सूचना की जाँच किए बिना और ऑपरेटिंग कर्मचारियों के साथ डिस्कनेक्शन/रीकनेक्शन मेमो के उचित आदान-प्रदान के बिना सिग्नल क्लियरिंग के लिए शॉर्ट कट तरीके अपनाना जारी रख रहे थे'।
सुनकर ने उस पत्र में सभी ज़ोनल रेलवे महाप्रबंधकों को लिखा है, 'इस तरह के क्रियाकलाप ट्रेन संचालन में सुरक्षा के लिए संभावित ख़तरे भी हैं और इसे रोकने की जरूरत है।'