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धर्म के बारे में राहुल का ज्ञान आपके होश उड़ा देगा : थरूर

धर्म के बारे में राहुल का ज्ञान आपके होश उड़ा देगा : थरूर

कांग्रेस नेता और लेखक शशि थरूर का कहना है कि उन्होंने राहुल गाँधी से हिन्दू धर्म पर कई बार बात की है और पाया है कि उन्हें इस मुद्दे पर गहरी समझ है।

एक ऐसे समय में जब राहुल गाँधी के मंदिर-मंदिर घूमने और जनेऊ पहनने और टीका लगाने पर देश भर में बहस चल रही है, कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने एक 'नई जानकारी' दी है कि राहुल शिवभक्त होने का दिखावा नहीं कर रहे बल्कि वे हिंदू धर्म के बारे में बहुत गहराई से जानते हैं। उन्होंने कहा कि राहुल के मंदिर जाने की तस्वीरें तो अब मीडिया में दिखाई जा रही हैं लेकिन धर्म और अध्यात्म पर राहुल से उनकी बातचीत होती रही है और वे कह सकते हैं कि इन विषयों पर इतनी गहराई से सोचने और अध्ययन करने वाले लोग हमें बहुत कम मिलते हैं।शशि थरूर ने 'टाइम्स लिटफेस्ट दिल्ली' में रविवार को ये बातें कहीं। मौक़ा तो था नरेंद्र मोदी पर उनकी किताब ‘पैरडॉक्सिकल प्राइम मिनिस्टर’ पर चर्चा का, लेकिन श्रोताओं के सवाल राहुल के हिंदू अवतार पर भी किए।धार्मिक-आध्यात्मिक मामलों में राहुल की दिलचस्पी को उजागर करते हुए थरूर ने बताया कि जब वे शैव संस्कृति और वैष्णव संस्कृति के पार्थक्य पर चर्चा करते हैं या बौद्ध विपश्यना और हिंदू विपश्यना का भेद समझाते हैं तो आप दाँतों तले उँगली दबा लेते हैं। थरूर के अनुसार लोगों को पता नहीं कि राहुल धर्म को लेकर कितने अधिक संजीदा हैं। श्रोताओं के इस सवाल पर कि राहुल का यह परिवर्तित रूप अचानक क्यों दिखा, थरूर ने स्वीकार किया कि यह एक रणनैतिक बदलाव है। उन्होंने कहा, ‘एक लंबे समय तक हम (कांग्रेसी) यह मानते रहे कि अपनी आस्था का सार्वजनिक प्रदर्शन करना शोभनीय नहीं है। हम पूजा-पाठ करते थे मगर उसका प्रदर्शन नहीं करते थे। यह नेहरूवादी धर्मनिरपेक्षता का ही अनुसरण था। लेकिन हमारी इस परहेज़परस्ती का बीजेपी ने फ़ायदा उठाया और इसे सच्चे हिंदू बनाम धर्मनिरपेक्ष नास्तिकों के बीच लड़ाई के रूप में प्रचारित कर दिया।’उन्होंने आगे जोड़ा कि ‘भारत जैसे एक अति-धार्मिक देश में यदि बहस इस दिशा में मोड़ दी जाएगी तो धर्मनिरपेक्षतावादियों की हार निश्चित है। इसलिए हमने फ़ैसला कर लिया कि हम सार्वजनिक तौर पर अपनी आस्था और धार्मिक विश्वासों को सामने लाने से परहेज़ नहीं करेंगे लेकिन साथ-साथ हम दूसरे धर्मों और विश्वासों के स्वीकार की अपनी नीति से भी नहीं डिगेंगे।’ 

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