पेगासस जासूसी में राहुल भी थे निशाने पर?
पेगासस सॉफ़्टवेअर से जासूसी के निशाने पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी थे। फ्रांसीसी ग़ैरसरकारी संगठन फ़ोरबिडेन स्टोरीज़ ने जो लीक डाटाबेस हासिल किया है, उसमें गांधी परिवार के इस सदस्य का फ़ोन नंबर भी था।
इस सूची में पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष के पाँच मित्र भी थे, जिनका राजनीति से कोई सरोकार नहीं था, वे बस राहुल के निजी दोस्त थे।
'द वायर' ने यह दावा किया है कि पेगासस बनाने वाली कंपनी एनएसओ के ग्राहकों के डाटाबेस में राहुल का नंबर था। लेकिन उस नंबर की फोरेंसिक जाँच नहीं कराई गई है। राहुल गांधी फिलहाल उस फ़ोन का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं, वे उसका प्रयोग 2018-19 में करते थे।
फ़ोरेंसिक जाँच नहीं होने की वजह से यह दावे के साथ नहीं कहा जा सकता है कि राहुल गांधी के फ़ोन को इंटरसेप्ट किया गया था। राहुल के अलावा उनके परिचित नौ लोगों के फ़ोन नंबर इस सूची में हैं।
इससे यह साफ़ होता है कि विपक्ष के इस नेता का नंबर संयोगवश या भूल से नहीं था।
उनके साथ साथ उनके परिचितों को भी निशाना बनाया गया था या कम से कम उन पर नज़र तो ज़रूर रखी गई थी।
राहुल क्यों?
राहुल गांधी को संभावित जासूसी की सूची में उस समय डाला गया था जब 2019 का आम चुनाव होने को था, राहुल कांग्रेस अध्यक्ष थे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार पर लगातार हमले कर रहे थे। राहुल गांधी ने इस पर 'द वायर' से बात करते हुए कहा,
“
मैं या विपक्ष के दूसरे नेता या कोई और हो, निशाने पर लेकर इस तरह की जासूसी करना ग़ैरक़ानूनी और निंदनीय है। यदि ये बातें सही हैं तो यह सिर्फ निजता के उल्लंघन का मामला नहीं है। यह हमारे देश के लोकतांत्रिक मूल्यों पर हमला है।
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राहुल के नज़दीकी भी निशाने पर!
राहुल गांधी के अलावा अलंकार सवाई और सचिन राव के भी नाम संभावित जासूसी की सूची में हैं। सवाई राहुल गांधी के निजी सचिव के रूप में काम करते हैं और उनके तमाम ई-मेल भेजने, फ़ोन करने या रिसीव करने या चिट्ठी या मैसेज भेजने का काम वे ही करते हैं।
राव कांग्रेस कार्य समिति के सदस्य हैं और उनकी ज़िम्मेदारी कांग्रेस कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करना है।
सवाई के फ़ोन की चोरी 2019 में हो गई और राव का फ़ोन 'फ्राइड' हो गया, यानी उससे अब फ़ोन नहीं किया जा सकता है।
'द वायर' ने कहा है कि उसने राहुल गांधी के नज़दीकी के जिन पाँच लोगों से संपर्क किया और उनकी प्रतिक्रिया लेनी चाही, उनमें से तीन ने बात करने से इनकार कर दिया। वे फ़ोन की जासूसी होने की आशंका से परेशान हैं और डरे हुए हैं।
प्रोटोकॉल का हवाला
सरकार ने पेगासस प्रोजेक्ट पर कहा है, "सरकारी एजंसियाँ किसी को इंटरसेप्ट करने के लिए तयशुदा प्रोटोकॉल का पालन करती है। इसके तहत पहले ही संबंधित अधिकारी से अनुमति लेनी होती है, पूरी प्रक्रिया की निगरानी रखी जाती है और यह सिर्फ राष्ट्र हित में किया जाता है।"सरकार ने ज़ोर देकर कहा कि इसने किसी तरह का अनधिकृत इंटरसेप्शन नहीं किया है।लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि पेगासस स्पाइवेअर हैकिंग करता है और सूचना प्रौद्योगिकी क़ानून 2000 के अनुसार, हैकिंग अनधिकृत इंटरसेप्शन की श्रेणी में ही आएगा। सरकार ने अपने जवाब में यह भी कहा है कि ये बातें बेबुनियाद हैं और निष्कर्ष पहले से ही निकाल लिए गए हैं।प्रशांत किशोर भी!
'एनडीटीवी' के अनुसार, पेगासस से जिन लोगों की जासूसी की जानी थी, उस सूची में चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर का नाम भी था। प्रशांत किशोर ने एक के बाद कई चुनावों में विपक्षी दलों के लिए काम किया था, उनके लिए रणनीति बनाई थी, योजना बनाई थी, पार्टी को सलाह दी थी। कुछ दलों को कामयाबी भी मिली।
लेकिन प्रशांत किशोर ने साल 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी के प्रचार में बड़ी भूमिका निभाई थी, उनकी कोशिशों के बाद ही बीजेपी पहली बार स्पष्ट बहुमत के साथ सत्ता में आई थी।
पूर्व चुनाव आयुक्त
तत्कालीन चुनाव आयुक्त अशोक लवासा का भी फ़ोन नंबर भी इस सूची में था। लवासा ने 2019 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के ख़िलाफ़ शिकायतों पर चुनाव आयोग के फ़ैसले पर असहमतिपूर्ण जताई थी।
उन्होंने बाद में चुनाव आयोग की बैठकों में भाग लेना भी बंद कर दिया था, उनका कहना था कि उनकी बात नहीं सुनी जाती है।
क्या है पेगासस प्रोजेक्ट?
फ्रांस की ग़ैरसरकारी संस्था 'फ़ोरबिडेन स्टोरीज़' और 'एमनेस्टी इंटरनेशनल' ने लीक हुए दस्तावेज़ का पता लगाया और 'द वायर' और 15 दूसरी समाचार संस्थाओं के साथ साझा किया।
इसका नाम रखा गया पेगासस प्रोजेक्ट। 'द गार्जियन', 'वाशिंगटन पोस्ट', 'ला मोंद' ने 10 देशों के 1,571 टेलीफ़ोन नंबरों के मालिकों का पता लगाया और उनकी छानबीन की। उसमें से कुछ की फ़ोरेंसिक जाँच करने से यह निष्कर्ष निकला कि उनके साथ पेगासस स्पाइवेअर का इस्तेमाल किया गया था।