गोत्र विवाद से मित्रवर अजीत अंजुम बहुत नाराज़ हैं। उनका कहना है, यह भी कोई बात हुई! कोई जबरन किसी का गोत्र कैसे पूछ सकता है फिर जब पूछने पर उसका गोत्र पता ही चल गया तो आप उसकी प्रामाणिकता पर संदेह क्यों कर रहे हैं अगर बात ऐसे ही बढ़ती रही तो कल को लोग एक-दूसरे का डीएनए सर्टिफ़िकेट माँगने लगेंगे। अब अगर गोत्र पूछने वाले और बताने वाले दोनों एक ही डीएनए के निकल गए तो क्या होगा इसकी संभावना बहुत ज़्यादा है क्योंकि गोत्र विवाद के दोनों तरफ नेता हैं और नेताओं का डीएनए अमूमन एक-सा ही होता है।
संप्रदाय, जाति और अब गोत्र
अजीत की नाराज़गी कम होने का नाम नहीं ले रही थी। वे पूरे एक घंटा 36 मिनट तक लगातार भाषण देते रहे। बोले, 'पहले संप्रदाय, फिर जाति और अब गोत्र। हम कहाँ से चले थे और कहाँ पहुँच गए। अभी और कितना नीचे जाएँगे, पता नहीं। बताइए, राहुल गाँधी से गोत्र पूछा। जब उन्होंने बता दिया तो अब उसकी प्रामाणिकता पूछी जा रही है। बड़े-बड़े नेता गोत्र विमर्श में कूद गए हैं। बाप-दादा का गोत्र बनाम दादी-नाना के गोत्र। यही सब बाक़ी रहा गया है अब देश में।'गोत्र ज्ञान पार्टी' का आयोजन हो
मैंने कहा अंजुम जी ताव थूकिए। जो नहीं जानते हैं, वे तो पूछेंगे ही न। अज्ञान जिज्ञासा का मूल है। अब जमाना बदल गया है। इस जमाने के लोग पिज़्जा और बर्गर के सारे ब्रांड्स से वाकिफ हैं मगर एक भी ऋषि या गोत्र का नाम नहीं जानते। क्या करेंगे उन्हें प्यार से समझाइए। अगर ज़रूरी हो तो वीकएंड पर मैकडॉनल्ड के किसी आउटलेट पर एक 'गोत्र ज्ञान पार्टी' का आयोजन कीजिए। मुफ़्त का पिज़्जा और बर्गर उड़ाने के बहाने लोग आ भी जाएँगे और गोत्र चर्चा भी हो जाएगी। थोड़ा सूकून मिलेगा आपको।मगर अजीत तो अजीत हैं। ताव उनकी नाक पर रहता है। कभी-कभी टहलता हुआ हथेलियों तक भी आ जाता है। ऐसे में वे अकसर गरम हो जाते हैं । अजीत ताव में बता गए कि मेरा गोत्र भारद्वाज है पर इससे मेरी क़ाबिलियत न ज़्यादा होती है न कम। मेरी सेहत पर कोई असर नहीं पड़ता। मैंने तो अंजुम लगा लिया। कुछ लोग मुसलमान भी समझते हैं। न गोत्र, न जाति से मेरी पहचान है। मेरी पहचान मेरा काम है।बुद्धि की अवस्था है भूमिहार
अजीत ख़ुद को जाति निरपेक्ष मानते हैं। हालाँकि उनके मानने या न मानने से क्या होगा। जाति सबकी होती है, सो उनकी भी है। वे भूमिहार हैं और मुझे भूमिहारत्व पर ज्ञान देने का मौक़ा मिल गया। मैंने उनसे कहा, पहली बात तो यह है कि आप भले भूमिहार हैं लेकिन भूमिहार कोई जाति नहीं होती। वह बुद्धि की एक अवस्था होती है। जब दिमाग अपने चरम आवेग में होता है तो व्यक्ति भूमिहार होता है। मसलन गया पहुँचने से पहले राजकुमार सिद्धार्थ राजपूत थे। पर जब बोधिवृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई, उसके बाद वे भूमिहार हुए। यह दिमाग की एक नस्ल का नाम है। इसे बेगूसराय और ग़ाज़ीपुर के भौगोलिक दायरे में नहीं बाँधा जा सकता है।तुलसीदास को बताया भूमिहार
यह नस्ल दुनिया में हर तरफ़ मिलती है। माओत्से तुंग भी भूमिहार थे। दक्षिण अफ़्रीका के राष्ट्रपति जैकब जुमा भी भूमिहार हैं। इज़राइल के पहले प्रधानमंत्री डेविड बेनगुरियन भी भूमिहार थे। नेहरू जी की बौद्धिकता को देखते हुए मुझे लगता है कि उन तक भी यह रूट ज़रूर पहुँचा होगा। मेरे एक जानने वाले थे। ग़ाज़ीपुर के डॉ. कुलदीप नारायण राय ‘झड़प'। उनकी थीसिस तुलसीदास पर थी। पाँच सौ पेज की थीसिस में उन्होंने छह सौ बार यह साबित करने की कोशिश की थी कि तुलसीदास भूमिहार थे। मेरी उनसे असहमति थी। मेरा मानना था कि तुलसीदास जातीय चेतना में भूमिहार नहीं हो सकते। वरना रत्नावली उन्हें अपमानित कर भगाती नहीं। वे रत्नावली को दुनाली की नोक पर उठा लाते। अपमानित होकर लौटना भूमिहारी आन के ख़िलाफ़ है।
गोत्र का जेंडर होता है क्या
मेरी यह कहानी सुन अजीत सकते में आ गए। बोले, आप हर बात पर मज़ाक़ करते हैं। मैंने कहा, मैं बहुत आगे देख रहा हूँ। जातीय नहीं दिमाग़ी तंरगें देख रहा हूँ। हमारी सनातन परंपरा में गोत्र एक शाश्वत पहचान है। ऋग्वैदिककालीन ऋषियों के नाम पर आधारित इस पहचान में ही हमारा पूरा समाज समाया हुआ है। अब राहुल गाँधी के गोत्र के नाम पर जो नया बखेड़ा शुरू हुआ है, उसमें बात जेंडर पर फँस गई है। गोत्र का भी कोई जेंडर होता है क्या क्या ऋषियों ने गोत्र निर्धारित करते वक़्त उसका जेंडर भी तय किया था कि गोत्र पुरूष की वंशावली के आधार पर चलेगा या महिला की क्या इस बारे में भी हमारे प्राचीन ग्रंथों में कोई व्यवस्था दी गई है राहुल गाँधी इस बात पर घिर गए हैं कि वे अपनी दादी का गोत्र क्यों बता रहे हैं बाबा के गोत्र का खुलासा क्यों नहीं कर रहे विरोधी कह रहे हैं कि भारतीय समाज में गोत्र पितृ आधारित होता है। जो पिता का औेर दादा का गोत्र होता है, वही गोत्र पुत्र और उसके पाल्यों का होता है।जबकि हक़ीक़त यह है कि पितृसत्तात्मकता के साथ-साथ इस दुनिया में ढेर सारे लोग हैं जो माता के रूट्स से अपनी पहचान बताना चाहते हैं। सिंधु घाटी सभ्यता में भारी संख्या में स्त्री मूर्तियाँ मिलीं। इस आधार पर इस प्राचीनतम समझी जाने वाली मानव सभ्यता को भी मातृसत्तात्मक माना जाता है। मातृसत्तात्मक व्यवस्था गर्व का विषय होती है। यह अपने बुद्धिकौशल से याज्ञवल्क्य को चकित कर देने वाली गार्गी की परंपरा का देश है। जनक के ज्ञान अहंकार को परास्त कर देने वाली बह्रावादिनी सुलभा का देश है।
अम्मा तय करेंगी जाति
वक़्त के इस दौर में भी संजय लीला भंसाली जैसे लोग हैं। जो अपने नाम में पिता की जगह माता का नाम लगाते हैं। इसी बात पर मुझे एक क़िस्सा याद आ गया। मेरे मित्र हैं राजनाथ शर्मा, बाराबंकी के पुराने समाजवादी। उनके पास एक लड़का आता था। उसकी जाति बेहना (जुलाहा) थी। पिता की मौत के बाद उसकी माँ ने दूसरी शादी एक दर्ज़ी से की। किसी ने उस बालक से उसकी जाति पूछी। लड़के ने जवाब दिया, 'पहिले रहे बेहना, अब हैं दर्ज़ी, आगे अम्मा की मर्ज़ी।' लोग हँसने लगे पर वह कम पढ़ा-लिखा बालक बहुत मार्के की बात बोल रहा था। जाति तो अब अम्मा की मर्ज़ी से ही तय होगी। देखिए, मैं फिर भटक गया। अब लौटता हूँ मूल मुद्दे पर।राहुल गाँधी कौल ब्राहमण कैसे
तो देश का नव बौद्धिक समाज राहुल गाँधी का गोत्र उनके पिता राजीव गाँधी और बाबा फिरोज़ गाँधी के आधार पर तय करना चाहता है। राहुल के बाबा फिरोजॉ गाँधी पारसी थे। उनका नाम फ़िरोज़ जहाँगीर घांडी था। गाँधी जी से प्रभावित होकर उन्होंने अपना सरनेम गाँधी कर लिया था। विरोधियों का कहना है कि इस स्थिति में राहुल गाँधी कौल ब्राहमण कैसे हो सकते हैं, जो उनके नाना जवाहरलाल नेहरू की जातीय पहचान थी जवाहरलाल का गोत्र दत्तात्रेय था। राहुल भी ख़ुद को इसी गोत्र का बता रहे हैं। हम इस प्रश्न का उत्तर आर्ष ग्रंथों और परंपराओं में ढूँढने की कोशिश करते हैं। जब ये मुद्दा उठ ही गया है तो इसका समाधान तलाशने के लिए सिंधु घाटी तक की यात्रा करते हैं। वैचारिक यात्राओं में यही फ़ायदा है। टिकट के पैसे भी खर्च नहीं होते हैं और लंबी दूरी तक का सफ़र भी हो जाता है। कबीर कह गए हैं, जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ, मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ। सो किनारे-किनारे बैठकर गोत्र पर क्या संवाद करना। आइए ज्ञान के सागर में गोता लगाते हैं।व्यापक है 'गोत्र' का अर्थ
सनातन धर्म में गोत्र का बहुत महत्व है। 'गोत्र' का शाब्दिक अर्थ बहुत व्यापक है। विद्वानों ने समय-समय पर इसकी यथोचित व्याख्या भी की है। 'गो' अर्थात इन्द्रियाँ, वहीं 'त्र' से आशय है 'रक्षा करना', अत: गोत्र का एक अर्थ 'इन्द्रिय आघात से रक्षा करने वाला' भी होता है। इसका स्पष्ट संकेत 'ऋषि' की ओर है।ऋषि परम्परा से है 'गोत्र' का संबंध
ऋग्वेद में गोत्र का मतलब गोशाला या गायों का झुंड भी बताया गया है। अथर्ववेद में एक स्थान पर, एक ही पूर्वज के वंशज के अर्थ में गोत्र प्रयुक्त होता है। तैत्तरीय संहिता के मुताबिक़ बड़े-बड़े ऋषियों के वंशज उन ऋषियों के नाम से पुकारे जाते हैं। वही गोत्र है। सामान्यत: 'गोत्र' को ऋषि परम्परा से संबंधित माना गया है। ब्राह्मणों के लिए तो 'गोत्र' विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है क्योंकि ब्राह्मण ऋषियों की ही संतान माने जाते हैं। अत: प्रत्येक ब्राह्मण का संबंध एक ऋषिकुल से होता है। ब्राह्मण कर्म आधारित परंपरा है।प्राचीनकाल में चार ऋषियों के नाम से गोत्र परंपरा शुरू हुई। अजीत को मेरे शोध में रस आने लगा था। मैं भी अध्ययन का मजा ले रहा था। पूरे एक घंटे 36 मिनट तक लगातार भाषण देने के चलते अजीत थक चुके थे। वे अपनी आदत के विपरीत धैर्यपूर्वक सुन रहे थे। यह ऐतिहासिक क्षण था।सभी जातियों में है गोत्र
गोत्र भारतीय परंपरा के अनुसार हिंदू धर्म की सभी जातियों में पाए जाते हैं। इनका नामकरण किसी न किसी ऋषि के नाम से हुआ है। कुछ गोत्रों के नाम कुलदेवी के नाम पर भी प्रचलित हुए। सामान्य रूप से गोत्र का मतलब कुल अथवा वंश परंपरा से है। कुछ विद्वानों के अनुसार गोत्र का एक अर्थ गोष्ठ भी है। यानी आदिकाल में जितने कुटुम्बों की गायें एक गोष्ठ में रहतीं थीं, उनका एक गोत्र होता था। वैदिक साहित्य में इसका सीधा मतलब वंश परम्परा से मानते हैं। आदिपुरूष से यह वंश परम्परा शुरू होती है और आगे चलकर बँटते-बँटते चौबीस पहुँच गई।मनु ने गोत्र की संख्या 24 बताते हुए लिखा है- “शाण्डिल्य: काश्यपश्चैव वात्स्य सावर्णकस्ता...।” धनंजय के धर्मप्रदीप तक आते-आते 40 गोत्र हो गए। चारों वर्णों में आपको एक गोत्र भी मिल सकता है जो बाद में काम के आधार पर बँट गए। जिनकी गोत्र परम्परा छिन्न हो गई और, उन्हें अपने गोत्र का पता नहीं, उनकी गिनती कश्यप गोत्र में होती है क्योंकि कश्यप सबके पूर्वज माने जाते हैं। कहा जाता है कि कश्यप ऋषि ने बहुत सारे विवाह किए थे और जिस कारण उनकी बहुत-सी संतानें हुई थीं और ये संतानें उसी गोत्र बेल को बढ़ाती गईं। प्राचीन ग्रंथ हेमाद्रि चंद्रिका में भी कहा गया है कि गोत्र का ज्ञान न होने पर कश्यप गोत्र मान लेना चाहिए। यानी हर जन्मे व्यक्ति की कोई न कोई कुल परम्परा होगी। यह कहना सही नहीं है कि फ़लाँ का कोई गोत्र नहीं है। अजीत अब अलग ही सोच में डूब गए थे। वे दुनाली को लेकर शोध कर रहे थे। महाभारत काल में दुनाली का आविष्कार हुआ था या नहीं अगर हुआ होता तो दुनाली उठाकर उसी काल से गोत्र पूछने वालों पर फायर झोंक दिए जाते। झगड़ा चाहे जमीन का हो या फिर शास्त्र का, अजीत को बातों-बातों में दुनाली याद आ जाती है। फिर ब्राह्मणवादी सोच और व्यवस्थाओं की कोख से निकली ऐसी स्थापनाओं पर भाषण देने लगे।गोत्र विवाद में महाभारत के दर्शन का सहारा लेकर आगे बढ़ते हैं। महाभारत के शान्तिपर्व (296-17,18) में वर्णन है कि मूल गोत्र चार थे - अंगिरा, कश्यप, वशिष्ठ और भृगु। बाद में ये आठ हो गए। जमदग्नि, अत्रि, विश्वामित्र और अगस्त्य को जोड़कर। इनके वंशजों की ही गोत्र की संज्ञा दी जाती है।बोधयान के महाप्रवराध्याय में इसका जिक्र भी है- :विश्वामित्रो जमदग्निर्भरद्वाजोऽथ गौतम:।अत्रिवर्सष्ठि: कश्यपइत्येतेसप्तर्षय:॥ सप्तानामृषी-णामगस्त्याष्टमानां यदपत्यं तदोत्रामित्युच्यते॥इस तरह आठ ऋषियों की वंश परम्परा में जितने ऋषि (वेदमन्त्र द्रष्टा) आ गए, वे सभी गोत्र कहलाते हैं। हमारी परंपरा में प्राय: 80 या 100 गोत्र मिलते हैं। बौधायनश्रौत सूत्र के मुताबिक़ 500 से ज्यादा गोत्र हैं। प्रवर मंजरी लगभग 5000 गोत्र बतलाती है। ऐतरेय ब्राह्मण के मुताबिक़ जो अपना गोत्र भूल गए थे, वे अपने पुरोहितों के नाम से जाने गए। क्योंकि उनके प्रवर (यज्ञ करने वाले) उनके पुरोहित ही होते थे। ऐतरेय ब्राह्मण ऋग्वेद के उन मंत्रों का स्पष्टीकरण है जिनका इस्तेमाल यज्ञ और कर्मकाण्ड में होता है।आपस्तम्ब धर्मसूत्र के मुताबिक़ अगर आपको अपना गोत्र न मालूम हो तो आप अपने पुरोहित के गोत्र से काम चला सकते हैं। आपस्तम्ब वैदिक संहिताओं के सूत्रकार थे। हमारे सोलह संस्कार और आठों विवाह के प्रकार इन्हीं सूत्रों में मिलते हैं। अब देखिए कि गोत्र के मामले में कितनी उदार है हमारी परम्परा। और हम हैं कि एक-दूसरे का गोत्र जानने को लेकर युद्ध छेड़े हुए हैं। अब अगर अजीत इसी बात पर दुनाली उठा ही लें तो किसकी गलती अब करते हैं गण की बात। भृगु और अंगिरा के वंशजों के जो गण हैं, उसमें कुछ तो गोत्र के उन आठ ऋषियों के ही गण में आ गए हैं। कुछ अलग हैं। भृगु, केवल भृगु एवं अंगिरा और केवल अंगिरा। इस तरह के उनके दो-दो विभाग हो गए। भृगु के 7 गणों में वत्स, विद और आर्ष्टिषेण, ये तीन तो जमदग्नि के भीतर आ गए। शेष यस्क, मिवयुव, वैन्य और शुनक, ये केवल भार्गव कहलाते हैं। इसी प्रकार अंगिरा के गौतम, भारद्वाज और केवल आंगिरस नाम के तीन गण हैं। उनमें दो तो आठ के भीतर ही है।गौतम के 10 गण हैं, अयास्य, शरद्वन्त, कौमण्ड, दीर्घतमस, औशनस, करेणुपाल, रहूगण, सोमराजक, वामदेव, बृहदुक्थ। इसी प्रकार भारद्वाज के चार हैं, भारद्वाज, गर्ग, रौक्षायण, कपि। केवलांगिरस के पाँच हैं, हरित, कण्व, रथीतर, मुद्गल, विष्णुबृद्ध। इस तरह सिर्फ भृगु और अंगिरा के ही 23 गण हो गए। यानी भारद्वाज या भारद्वाज गोत्र का गर्ग या गार्ग्य के साथ विवाह नहीं हो सकता। क्योंकि उनका गण एक ही है। इससे पहले कि इस गोत्र महासागर में और भी गहरी डुबकी लगाएं, पहले गण की समुचित गिनती कर लेते हैं। अत्रि के चार गण हैं, पूर्वात्रोय, वाद्भुतक, गविष्ठिर, दत्तात्रेय।विश्वामित्र के दस हैं - कुशिक, रोहित, रौक्ष, कामकायन, अज्ञ, अघमर्षण, पूरण, इंद्रकौशिक, धनंजय, कत। धनंजय और कौशिक का परस्पर विवाह नहीं हो सकता।कश्यप के पाँच हैं - कश्यप, निध्रुव, रेभ, शांडिल्य, लौगाक्षि। शांडिल्य, कश्यप, लौगाक्षि का परस्पर विवाह असंभव है।वशिष्ठ के पाँच हैं - वशिष्ठ, कुंडिन, उपमन्यु, पराशर और जातूकर्ण्य। वशिष्ठ और पराशर आदि का परस्पर विवाह ठीक नहीं है।अगस्त्य का कोई अन्तर्गण नहीं है। यानी कुल 51 गण हैं। किसी-किसी के मत से कुछ कम या अधिक भी हैं। ये सभी गोत्र हैं। अजीत ने कहा कि ये सब ज्ञान की बात तो ठीक हो गई मगर कुछ दत्रातेय के बारे में भी बताइए। विरोधी तर्क दे रहे हैं कि दत्तात्रेय कौन थे। इस नाम का कोई गोत्र ही नहीं होता। राहुल गाँधी किस किताब से अपना दत्तात्रेय गोत्र ढू्ँढ लाए। विरोधी पूछ रहे हैं कि कोई इटली का पब्लिकेशन है क्या मैंने अजीत के चेहरे की ओर ग़ौर से देखा। इतनी उत्सुकता तो राहुल गाँधी की भी अपने दत्तात्रेय गोत्र को लेकर नहीं रही होगी, जितनी अजीत की मालूम हो रही थी।विष्णु के अवतार हैं दत्तात्रेय
मैंने अजीत की ज्ञान पिपासा को शांत करने के लिए ज्ञान के सागर में फिर से डुबकी लगाई। तो मित्रो! दत्तात्रेय विष्णु के चौबीस अवतारों में एक माने जाते हैं। वे महर्षि अत्रि और अनुसूया के पुत्र थे। दत्त उनका नाम था। अत्रि मुनि के पुत्र थे इसलिए आत्रेय कहे गए। निर्णय सिन्धु और स्मृतिकौस्तुभ में अनुसूया के बारे मे एक कथा है। कहानी लम्बी है। बस इतना ही समझ लीजिए कि उनके सत्कार्यों से उन्हें एक वरदान मिला था कि उनके गर्भ से बह्मा, विष्णु और महेश जन्म लेंगे। इसी वरदान के तहत बह्मा ने सोम बन कर, विष्णु ने दत्तात्रेय बन कर और महेश ने दुर्वासा बन कर अनुसूया के गर्भ से जन्म लिया।
दत्तात्रेय बहुत ज्ञानी थे। उन्होंने गोदावरी के जिस तट पर तपस्या की थी, वह अब ब्रह्मतीर्थ कहलाता है। अब सोचिए, जानकारी का अभाव कितना ख़तरनाक होता है। राहुल गाँधी पर वार करते-करते लोग दत्तात्रेय के अस्तित्व तक पहुँच गए।
मैंने अजीत को ईसा मसीह के वचन सुनाकर शांत किया - हे प्रभु इन्हें माफ़ करना। ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं।
गोत्र और उनके प्रवर के नाम
अब आख़िर में गोत्र और उनके प्रवर के नाम मैं गिना रहा हूँ ताकि किसी को यह गफ़लत न रहे कि गोत्र तो आठ ही होते हैं। देखिए न, मित्र अजीत की खुशी की ख़ातिर मुझे क्या-क्या नहीं करना पड़ रहा है। तो गोत्रों का भरापूरा संसार इस प्रकार है-(1) कश्यप (2) कश्यप के असित, देवल अथवा काश्यप, आवत्सार, नैधु्रव तीन प्रवर हैं। इस गोत्र के ब्राह्मण ये हैं - जैथरिया, किनवार, बरुवार, दन्सवार, मनेरिया, कुढ़नियाँ, नोनहुलिया, तटिहा, कोलहा, करेमुवा, भदैनी चौधरी, त्रिफला पांडे, परहापै, सहस्रामै, दीक्षित, जुझौतिया,बवनडीहा, मौवार, दघिअरे, मररें, सिरियार, धौलानी, डुमरैत, भूपाली आदि।(3) पराशर - वशिष्ठ, शक्ति, पराशर तीन प्रवर हैं। इस गोत्र के ब्राह्मण एकसरिया, सहदौलिया, सुरगणे हस्तगामे आदि हैं।(4) वशिष्ठ - वशिष्ठ, शक्ति, पराशर अथवा वशिष्ठ, भरद्वसु, इंद्र प्रमद ये तीन प्रवर हैं। ये ब्राह्मण कस्तुवार, डरवलिया, मार्जनी मिश्र आदि हैं। कोई वशिष्ठ, अत्रि, संस्कृति प्रवर मानते हैं।(5) शांडिल्य - शांडिल्य, असित, देवल तीन प्रवर हैं। दिघवैत, कुसुमी-तिवारी, नैनजोरा, रमैयापांडे, कोदरिए,अनरिए, कोराँचे, चिकसौरिया, करमहे, ब्रह्मपुरिए, पहितीपुर पांडे, बटाने, सिहोगिया आदि इस गोत्र के ब्राह्मण हैं।(6) भारद्वाज(7) भारद्वाज के आंगिरस, बार्हस्पत्य, भारद्वाज अथवा आंगिरस, गार्ग्य, शैन्य तीन प्रवर हैं। दुमटिकार, जठरवार, हीरापुरी पांडे, बेलौंचे, अमवरिया, चकवार, सोनपखरिया, मचैयांपांडे, मनछिया आदि ब्राह्मण इस गोत्र के हैं।(8) गर्ग(9) गार्ग्य के आंगिरस, गार्ग्य, शैन्य तीन अथवा धृत, कौशिक मांडव्य, अथर्व, वैशंपायन पाँच प्रवर हैं। मामखोर के शुक्ल, बसमैत, नगवाशुक्ल, गर्ग आदि ब्राह्मण इस गोत्र के हैं।(10) सावर्ण्य के भार्गव, च्यवन, आप्नवान, और्व, जामदग्न्य पाँच, या सावर्ण्य, पुलस्त्य, पुलह तीन प्रवर हैं। पनचोभे, सवर्णियाँ, टिकरा पांडे, अरापै बेमुवार आदि इस गोत्र के हैं।(11) वत्स के भार्गव, च्यवन, आप्नवान, और्व, जामदग्न्य पाँच, या भार्गव, च्यवन, आप्नवान इसके तीन प्रवर हैं। दोनवार, गानामिश्र, सोनभदरिया, बगौछिया, जलैवार, शमसेरिया, हथौरिया, गगटिकैत आदि ब्राह्मण इस गोत्र के हैं।(12) गौतम के आंगिरस बार्हिस्पत्य, भारद्वाज या अंगिरा, वशिष्ठ, गार्हपत्य, तीन, या अंगिरा, उतथ्य, गौतम, उशिज, कक्षीवान पाँच प्रवर हैं। पिपरामिश्र, गौतमिया, करमाई, सुरौरे, बड़रमियाँ दात्यायन, वात्स्यायन आदि ब्राह्मण इस गोत्र के हैं।(13) भार्गव के भार्गव, च्यवन, आप्नवान, तीन या भार्गव, च्यवन आप्नवन, और्व, जायदग्न्य, पाँच प्रवर हैं, भृगुवंश, असरिया, कोठहा आदि ब्राह्मण इस गोत्र के हैं।(14) सांकृति के सांकृति, सांख्यायन, किल, या शक्ति, गौरुवीत, संस्कृति या आंगिरस, गौरुवीत, संस्कृति तीन प्रवर हैं। सकरवार, मलैयांपांडे फतूहाबादी मिश्र आदि इन गोत्र के ब्राह्मण हैं।(15) कौशिक के कौशिक, अत्रि, जमदग्नि या विश्वामित्रा, अघमर्षण, कौशिक तीन प्रवर हैं। कुसौझिया, टेकार के पांडे, नेकतीवार आदि इस गोत्र के ब्राह्मण हैं।(16) कात्यायन के कात्यायन, विश्वामित्र, किल या कात्यायन, विष्णु, अंगिरा तीन प्रवर हैं। वदर्का मिश्र, लमगोड़िया तिवारी, श्रीकांतपुर के पांडे आदि इस गोत्र के ब्राह्मण हैं।(17) विष्णुवृद्ध के अंगिरा, त्रासदस्यु, पुरुकुत्स तीन प्रवर हैं। इस गोत्र के कुथवैत आदि ब्राह्मण हैं।(18) आत्रेय।(19) कृष्णात्रेय के आत्रेय, आर्चनानस, श्यावाश्व तीन प्रवर हैं। मैरियापांडे, पूले, इनरवार इस गोत्र के ब्राह्मण हैं।(20) कौंडिन्य के आस्तीक, कौशिक, कौंडिन्य या मैत्रावरुण वशिष्ठ, कौंडिन्य तीन प्रवर हैं। इनका अथर्ववेद भी है। अथर्व विजलपुरिया आदि ब्राह्मण इस गोत्र के हैं।(21) मौनस के मौनस, भार्गव, वीतहव्य (वेधास) तीन प्रवर हैं।(22) कपिल के अंगिरा, भारद्वाज, कपिल तीन प्रवर हैं। इस गोत्र के ब्राह्मण जसरायन आदि हैं।(23) तांडय गोत्र के तांडय, अंगिरा, मौद्गलय तीन प्रवर हैं।(24) लौगाक्षि के लौगाक्षि, बृहस्पति, गौतम तीन प्रवर हैं।(25) मौद्गल्य के मौद्गल्य, अंगिरा, बृहस्पति तीन प्रवर हैं।(26) कण्व के आंगिरस, आजमीढ़, काण्व, या आंगिरस, घौर, काण्व तीन प्रवर हैं।(27) धनंजय के विश्वामित्र, मधुच्छन्दस, धनंजय तीन प्रवर हैं।(28) उपमन्यु के वशिष्ठ, इंद्रप्रमद, अभरद्वसु तीन प्रवर हैं।(29) कौत्स के आंगिरस, मान्धाता, कौत्स तीन प्रवर हैं।(30) अगस्त्य के अगस्त्य, दाढर्यच्युत, इधमवाह तीन प्रवर हैं। इसके सिवाय और भी गोत्र और उनके प्रवर, प्रवरदर्पण आदि से या फिर ब्राह्मणों की वंशावलियों से जाने जा सकते हैं।इतना ज्ञान उड़ेलने के बाद मैं फिर से अजीत की ओर लौटता हूँ। मेरी गति भी सूरदास के पद सरीखी होती जा रही है - मेरो मन अनत कहाँ सुख पावै। जैसे उड़ि जहाज कौ पंछी पुनि जहाज पै आवै। मैं किधर को भी चलता हूं, लौट कर अजीत की ओर ही आ जाता हूं। अजीत अब संतुष्ट दिखाई दे रहे थे। उनका संतुष्ट दिखना भी ब्रिटेन के ब्रेग्ज़िट यानी यूरोपियन यूनियन से निकलने जैसा ही है।