हरियाणा से सबक ले राहुल महाराष्ट्र में सामाजिक संतुलन बनाएँगे?
महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव की तारीखों का एलान हो चुका है। हरियाणा और जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव के बाद अब सारे देश की निगाहें महाराष्ट्र और झारखंड की चुनाव पर हैं। दरअसल, महाराष्ट्र चुनाव दोनों ही गठबंधनों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। एक तरफ भारतीय जनता पार्टी, शिवसेना और एनसीपी का महायुती गठबंधन है तो दूसरी तरफ कांग्रेस, एनसीपी शरद पवार और शिवसेना उद्धव ठाकरे का महा विकास अघाड़ी गठबंधन है। कुछ दिन पूर्व सम्पन्न हुए हरियाणा चुनाव के नतीजे बेहद अप्रत्याशित रहे। हरियाणा में जहां भारतीय जनता पार्टी 10 साल की एन्टी इनकंबेंसी का सामना कर रही थी, वहीं दूसरी तरफ राहुल गांधी ने नौजवानों, किसानों और महिला पहलवानों से जुड़े मुद्दों को बड़े पैमाने पर उठाया था। बावजूद इसके हरियाणा में कांग्रेस पार्टी की हार हुई। हालांकि कांग्रेस ने ईवीएम में धांधली और चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं।
यह भी गौरतलब है कि ज्यादातर विश्लेषक हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी की जीत से स्तब्ध हैं। उनका आरोप है कि 5-6 फीसदी वोटों में हेराफेरी से चुनाव नतीजे प्रभावित हुए हैं। वस्तुतः राजनीतिक विश्लेषक और अन्य बौद्धिक भारतीय लोकतंत्र की गिरती साख से चिंतित हैं। इन आरोपों के बीच हरियाणा चुनाव का एक सामाजिक पहलू भी है। जैसा कि मेरा हमेशा से मानना है कि भारतीय जनता पार्टी सांप्रदायिक राजनीति करती है, लेकिन उसका वोटबैंक जाति आधारित है। चुनाव जीतने के लिए भाजपा महीन सोशल इंजीनियरिंग करती है। हरियाणा चुनाव में भी उसने सामाजिक समीकरण बनाये। सीएसडीएस के सर्वे के अनुसार हरियाणा में गैर जाटव दलित, ओबीसी, खत्री और ब्राह्मण वोट भाजपा को मिले। जाट और जाटव बनाम अन्य की राजनीति करके भाजपा ने कांग्रेस को शिकस्त दी। भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग को समझे बिना उसे मात देना कांग्रेस के लिए आसान नहीं है। आने वाले चुनावों में क्या कांग्रेस हरियाणा चुनाव नतीजों से सबक लेगी?
आगामी महाराष्ट्र चुनाव में राहुल गांधी के सामने तीन बड़ी चुनौतियां हैं। यद्यपि राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा के बाद ही महाराष्ट्र के सबसे लोकप्रिय नेता के रूप में स्थापित हो चुके हैं। लेकिन सामाजिक समीकरणों को दुरुस्त किये बिना भारतीय जनता पार्टी को चुनाव हराना आसान नहीं होगा। महाराष्ट्र में नरेंद्र मोदी मराठा बनाम अन्य की राजनीति कर सकते हैं। उद्धव ठाकरे और शरद पवार का आधार मराठों के बीच है। इस दरमियान मराठा आरक्षण की मांग का एक बड़ा आंदोलन भी हो चुका है। हरियाणा में जिस तरह गैर-जाटव दलित और ओबीसी वोट निर्णायक रहा, उसी तरह महाराष्ट्र में भी दलित और ओबीसी वोट को विभाजित करके मोदी और शाह महा विकास अघाड़ी को कमजोर कर सकते हैं। हरियाणा में 12 फ़ीसदी दलित और 6 फ़ीसदी बौद्ध हैं। पूरे देश में सर्वाधिक बौद्ध महाराष्ट्र में ही हैं। इसका सबसे बड़ा कारण डॉ. आंबेडकर द्वारा हिंदू धर्म का त्याग (14 अक्टूबर, 1956) और बौद्ध धम्म को स्वीकार करना है। डॉ. आंबेडकर महार थे। धर्मांतरण के समय अधिकांश महारों ने बौद्ध धर्म स्वीकार किया।
आज महाराष्ट्र में धर्मांतरित बौद्ध आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक रूप से बेहद सम्पन्न हैं। अगर दलित और बौद्ध; दोनों को मिला दें तो यह आबादी क़रीब 18% होती है। लोकसभा चुनाव में दलितों और बौद्धों ने संविधान बचाने के लिए राहुल गांधी के नेतृत्व वाले कांग्रेस और उनके सहयोगी दलों को वोट किया था। इसका परिणाम यह हुआ कि 2019 में शिवसेना के साथ मिलकर 43 सीटें जीतने वाला एनडीए, 2024 के चुनाव में भाजपा 9, एकनाथ शिंदे की शिवसेना 7 और एनसीपी अजित पवार एक सीट और एनडीए को कुल मिलाकर 17 सीटों पर जीत हासिल हुई। जबकि महा विकास अघाड़ी को 30 सीटों पर जीत मिली।
संविधान बचाने की मुहिम का असर यह था कि प्रकाश आंबेडकर की बहुजन वंचित अघाड़ी और रामदास अठावले की रिपब्लिकन पार्टी समेत अन्य दलित राजनीति करने वाली पार्टियों को एक भी सीट नहीं मिली। लेकिन अब संविधान चुनाव जिताऊ मुद्दा नहीं रहा। राहुल गांधी का संविधान बचाने का मुद्दा चुनाव में नैरेटिव तो बना सकता है लेकिन वोट नहीं दिलवा सकता। इसके लिए तीन मुद्दे महत्वपूर्ण हो सकते हैं। खासकर दलितों को आकर्षित करने के लिए राहुल गांधी को सम्मान, एजेंडा और प्रतिनिधित्व इन तीनों पर खरा उतरना होगा। हरियाणा में राहुल गांधी ने काम के सम्मान और दलितों के एजेंडे की तो बात की लेकिन कांग्रेस ने सभी जातियों को प्रतिनिधित्व नहीं दिया। गैर-जाटव दलित जातियों, पिछड़ों और अति पिछड़ी जातियों को सम्मानजनक भागीदारी नहीं मिलने के कारण इस वोट को आकर्षित करने में कांग्रेस पार्टी सफल नहीं हुई। महाराष्ट्र में भी दलित, बौद्ध और अन्य ओबीसी जातियों को टिकट वितरण में भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी।
प्रकाश आंबेडकर और रामदास अठावले जैसे दलित नेता दलित वोट पर अपनी दावेदारी करते हैं। भाजपा हरियाणा की तरह महाराष्ट्र के चुनाव में भी खेल कर सकती है।
प्रकाश आंबेडकर की बहुजन वंचित अघाड़ी लोकसभा चुनाव में किसी सीट पर दूसरे स्थान पर भी नहीं रही, लेकिन उसने इस बार कांग्रेस के सबसे मजबूत गढ़ विदर्भ की घोषित 10 सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं। जाहिर तौर पर प्रकाश आंबेडकर की इस राजनीति से भारतीय जनता पार्टी को फायदा होगा। प्रकाश आंबेडकर की दावेदारी मूलतः महार और बौद्ध वोटों पर है। विदित है कि विदर्भ में बसपा का भी प्रदर्शन अच्छा रहा है। जाहिर तौर पर मायावती भी अपने प्रत्याशी उतारेंगी। बसपा जाटव समाज को अपने साथ लाने में कामयाब हो सकती है। विदर्भ में कांग्रेस की चुनौती प्रकाश आंबेडकर और मायावती हैं। इससे निपटने के लिए राहुल गांधी को महार और जाटव के साथ-साथ कोरी, खटीक, मांग, मातंग, डोम ओलख और गोतराज जैसी अन्य दलित जातियों को भी प्रतिनिधित्व देना होगा। वस्तुतः ये जातियां अपने नेताओं के कारण भाजपा के साथ जा सकती हैं।
राहुल गांधी के लिए दूसरी चुनौती ओबीसी समाज की है। कुछ ही दिनों पहले महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे की सरकार ने क़रीब 17 जातियों-उपजातियों को ओबीसी में शामिल किया है। इसके अतिरिक्त क्रीमी लेयर की सीमा बढ़ाकर 15 लाख करने की सिफारिश की है। राहुल गांधी को यहां जाति जनगणना, आरक्षण की सीमा बढ़ाए जाने और निजी क्षेत्र में आरक्षण लागू करने का एजेंडा ही नहीं देना होगा, बल्कि माली, धनगर, लोध, बंजारा, लोहार और तेली जैसी पिछड़ी जातियों को प्रतिनिधित्व भी देना होगा।
पिछले दिनों राहुल गांधी ने कोल्हापुर में शिवाजी महाराज की मूर्ति का अनावरण किया था। राहुल गांधी ने भाषण देते हुए कहा था कि आज उसी विचारधारा की सरकार सत्ता में है, जिसने शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक नहीं करने दिया था। राहुल गांधी ने कहा कि आज सम्मानित आदिवासी महिला राष्ट्रपति को ना तो नई संसद के उद्घाटन में और ना ही राम मंदिर के उद्घाटन में बुलाया गया। यहां राहुल गांधी ने शाहूजी महाराज का जिक्र भी किया। शाहूजी महाराज भारत में आरक्षण के जनक माने जाते हैं। शाहू जी महाराज कुनबी जाति के थे। कुनबी को उत्तर भारत में कुर्मी कहा जाता है। शाहूजी महाराज ने अपने कोल्हापुर राज्य में दलितों- पिछड़ों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण प्रदान किया और छुआछूत को अपराध घोषित करते हुए दंड का प्रावधान किया। शाहूजी महाराज ने डॉ. आंबेडकर को पढ़ाई के लिए वजीफा दिया। वह आंबेडकर की काबिलियत से बहुत प्रभावित थे। कोल्हापुर की एक सभा में शाहूजी महाराज ने आंबेडकर को दलितों का उद्धारक घोषित किया था।
महाराष्ट्र का कुनबी समाज सामाजिक न्याय और दलितों के प्रति संवेदनशील माना जाता है। शाहूजी महाराज के पूर्वज छत्रपति शिवाजी महाराज ने जब मुगल बादशाह औरंगजेब के खिलाफ संघर्ष करके अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित किया था तो ब्राह्मणों ने उनका राज्याभिषेक करने से इनकार कर दिया था। महाराष्ट्र की जमीन ज्योतिबा फुले और आंबेडकर की भी मातृभूमि है। इसलिए सामाजिक न्याय की राजनीति के लिए यह बेहद उर्वर है। महाराष्ट्र के नागपुर में आरएसएस का हेड क्वार्टर भी है। आरएसएस के संस्थापक हेडगेवार और गोलवलकर से लेकर हिन्दू महासभा के नेता और हिंदुत्व के विचारक सावरकर भी महाराष्ट्र से हैं। आरएसएस महाराष्ट्र को किसी भी क़ीमत पर खोना नहीं चाहेगा। राहुल गांधी को वैचारिक स्तर पर भी यहाँ मुठभेड़ करनी है। हिंदुत्व पर प्रहार करने के साथ-साथ सावरकर का मुद्दा उनके लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है, क्योंकि महाराष्ट्र में मराठी अस्मिता के साथ सावरकर भी जुड़े हुए हैं। इसके अलावा कांग्रेस की सहयोगी शिवसेना सावरकर को अपना पूज्य मानती है। राहुल गांधी के सामने जो चुनौतियां हैं, उनका सामना करना हालांकि बहुत कठिन नहीं है, लेकिन राह रपटीली जरूर है। हरियाणा से सबक लेकर राहुल गांधी महाराष्ट्र में सामाजिक न्याय के एजेंडे और सामाजिक प्रतिनिधित्व का संतुलन बनाकर अपनी लड़ाई को आसान बना सकते हैं।