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राजा कहे जाने पर मोदी इतना चिढ़ते क्यों हैं? 

राजा कहे जाने पर मोदी इतना चिढ़ते क्यों हैं? 

राहुल गांधी के भाषण के बाद बीजेपी नेताओं और ट्रोल आर्मी ने उन पर हमला बोल दिया। आखिर वे इतना क्यों परेशान हो गए। सवाल यह भी है कि क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का लोगों के प्रति रवैया किसी बादशाह जैसा है?  

राहुल गाँधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर लगातार हमलावर हैं। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर बहस करते हुए राहुल गांधी ने कहा था कि नरेंद्र मोदी राजा की तरह व्यवहार करते हैं। राहुल के इस आरोप से तिलमिलाए मोदी, सवालों के जवाब देने के बजाय अपने डेढ़ घंटे के भाषण में काँग्रेस को ही कोसते रहे। 

गौरतलब है कि जनवरी 2015 में बराक ओबामा से मुलाकात के समय नरेंद्र मोदी के विशेष सूट पर तंज कसते हुए राहुल गाँधी ने मोदी सरकार को 'सूट बूट वाली सरकार' कहा था। नतीजे में मोदी को अपने सूट की नीलामी का नाटक करना पड़ा था। उस समय तो मोदी अपनी छवि बचाने में कामयाब रहे थे। लेकिन आज आर्थिक मोर्चे पर सरकार असफल हो चुकी है। मोदी ब्रांड दरक चुका है। झूठ पर टिका हुआ 'विश्वगुरू भारत' के छद्म का पर्दाफाश हो चुका है। 

अब ऐश्वर्य और वैभव से लकदक मोदी की छवि लोगों की आँखों में चुभने लगी है। लेकिन बढ़ती गरीबी, महंगाई और बेकारी के बावजूद मोदी का शाही अंदाज बदस्तूर जारी है। इसीलिए राहुल गाँधी उन्हें बार बार राजा कहकर चिढ़ा रहे हैं।

सत्ताधारी दल को राहुल का यह भाषण बहुत नागवार गुजरा। इसलिए भाजपा के नेताओं, मंत्रियों और सोशल मीडिया सेल द्वारा राहुल गांधी के वक्तव्य पर अमर्यादित टिप्पणियाँ की गईं। भाजपा की ट्रोल आर्मी राहुल गांधी की छवि खराब करने में पूरी ताकत से लगी रही।

राहुल गाँधी के भाषण की टैग लाइन बनी कि प्रधानमंत्री राजा की तरह  व्यवहार करते हैं। राहुल ने यह भी कहा कि प्राचीन भारत में मौर्य काल या गुप्त काल के राजा भी इतने निरंकुश और अहंकारी नहीं थे। सम्राट अशोक जैसे राजा प्रजा से संवाद के जरिए शासन चलाते थे। लेकिन नरेंद्र मोदी ऐसे बादशाह हैं जो प्रदेश के मुख्यमंत्रियों या अपनी कैबिनेट के मंत्रियों से बात करना जरूरी नहीं समझते। 

दरअसल, राहुल गांधी का इशारा मोदी द्वारा अचानक लिए गए ऐसे फैसलों और नीतियों की ओर था, जिनसे देश को बहुत नुकसान उठाना पड़ा। नरेंद्र मोदी ने तमाम नीतिगत फैसले निपट तानाशाही तरीके से किए। सरकार बनते ही उन्होंने योजना आयोग को खत्म करके नीति आयोग में तब्दील कर दिया। राज्यों को वित्तीय आवंटन में योजना आयोग की खास भूमिका होती थी। इस फैसले के जरिए राज्यों की वित्तीय सहायता और उनकी स्वायत्तता को कमजोर कर दिया गया। 

नोटबंदी की मार 

मोदी ने 5 अगस्त 2016 को अचानक नोटबंदी करके 500 और 1000 रु. के नोट बंद कर दिए। इस फैसले ने असंगठित क्षेत्र और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को चौपट कर दिया। बड़े नोट को खत्म करके भ्रष्टाचार दूर करने का वादा करने वाले मोदी ने बाद में 2000 रु का नया नोट जारी किया। हाल में यूपी सहित कई राज्यों में ईडी और इनकम टैक्स के पड़ने वाले छापों में ज्यादातर 2000 के नोट ही पकड़े जा रहे हैं। इसका मतलब है कि अब भ्रष्टाचार और जमाखोरी अधिक सुविधाजनक हो गई है। 

इसके बाद 1 जुलाई 2017 को असंगत तरीके से जीएसटी को लागू किया गया। इस फैसले ने लघु-मध्यम उद्योगों और व्यापार को गहरी चोट पहुंचाई। असंगत जीएसटी से शहरी अर्थव्यवस्था चरमरा गई। इन फैसलों के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में आ गई। महंगाई और बेरोजगारी बढ़ गई।

इसके बाद कोरोना काल में 24 मार्च 2020 को अचानक किए गए लॉकडाउन से अर्थव्यवस्था ठप्प ही नहीं हुई बल्कि लाखों की तादाद में बदहवास-लाचार मजदूर सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलने के लिए मजबूर हुए। दर्जनों मजदूर और उनके बीवी बच्चे रास्ते में भूख- प्यास से मर गए। लेकिन नरेंद्र मोदी को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। 

अपने दूसरे कार्यकाल में 5 अगस्त 2019 को नरेंद्र मोदी ने धारा 370 खत्म करके जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त कर दिया। लेकिन वहाँ के लोगों से कोई रायशुमारी नहीं की गई।

इसी तरह 12 दिसंबर 2019 को अल्पसंख्यकों के लिए सीएए एनआरसी जैसा कानून लाकर मुसलमानों को अलग थलग करने की कोशिश की गई। इस मुद्दे पर संसद में या अल्पसंख्यक अधिकारों से संबंधित समिति में कोई बहस नहीं की गई। जब इस कानून के खिलाफ जामिया और शाहीन बाग पर लोकतांत्रिक और गांधीवादी तरीके से आंदोलन किया गया तो पहले इसकी पूर्णतया अनदेखी की गई। फिर जब इस कानून के विरोध में देशव्यापी आंदोलन खड़ा हुआ तो बर्बरतापूर्वक इसे कुचलने का प्रयास किया गया। 

किसान आंदोलन 

इसी तरह तानाशाहीपूर्ण तरीके से नरेंद्र मोदी ने कोरोना की दूसरी लहर के दौरान 5 जून 2020 को रायशुमारी किए बिना किसानों पर तीन कृषि कानून लाद दिए। कारपोरेट हितैषी इन कानूनों को किसानों को खेती से बेदखल करके खेत मजदूर बनाने की साजिश के तौर पर देखा गया। इनके विरोध में देशभर के किसानों ने ऐतिहासिक आंदोलन किया। 13 महीने तक चले इस आंदोलन में 700 से ज्यादा किसान शहीद हो गए।

 - Satya Hindi

देश व्यापी होते किसान आंदोलन को कुचलने की हर संभव कोशिश की गई। यूपी के लखीमपुर खीरी में गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा ने अपने साथियों के साथ पैदल शांतिपूर्वक जाते हुए किसानों पर थार गाड़ी चढ़ा दी। इसमें 4 किसानों और एक पत्रकार की दर्दनाक मौत हो गई। बावजूद इसके नरेंद्र मोदी ने ना तो गृह राज्यमंत्री को हटाया और ना ही किसानों की हत्या और शहादत पर कोई अफसोस किया।हालांकि इसके बाद यूपी चुनाव में हार के डर के कारण नरेंद्र मोदी ने कानून वापस लिए। लेकिन मोदी का अहंकार तब भी बरकरार रहा। उन्होंने किसानों के सिर ठीकरा फोड़ते हुए कहा कि वे इन कानूनों के फायदे किसानों को नहीं समझा सके। दरअसल, मोदी ने अपनी गलती नहीं स्वीकार की बल्कि आंदोलन के लिए किसानों को ही दोषी करार दिया। 

क्या नरेंद्र मोदी एक लोकतांत्रिक देश के चुने हुए प्रधानमंत्री की तरह व्यवहार करते हैं? विपक्ष की आवाज को अनसुना किया जा रहा है। जन आंदोलनों को देशद्रोह करार देकर कुचला जा रहा है। देश में असहिष्णुता लगातार बढ़ रही है। हिन्दू कट्टरपंथी सरेआम मुसलमानों के नरसंहार का आह्वान कर रहे हैं। दलितों, आदिवासियों और महिलाओं का निरंतर उत्पीड़न जारी है। मीडिया सरकारी भौंपू बन गया है। संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर किया जा रहा है।

कमजोर हो रहा लोकतंत्र

सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग जैसी संस्थाओं से भी नागरिकों का भरोसा डिगने लगा है। दुनिया की नजरों में भी मोदी के शासन को, कमजोर होते लोकतंत्र और असहिष्णु धार्मिक राष्ट्र के रूप में देखा जा रहा है। पिछले दिनों कई रेटिंग एजेंसियों ने लोकतांत्रिक आजादियों के घटने के कारण भारत को पार्शियली फ्री या फ्लाड डेमोक्रेसी में तब्दील होते जाने की ओर संकेत किया है।

‘फ्लाड डेमोक्रेसी’?

वाशिंगटन स्थित अंतरराष्ट्रीय संस्था फ्रीडम हाउस ने अपनी 2021 की रेटिंग में भारत के लोकतंत्र को 100 में से 67 अंक देकर 'आंशिक रूप से स्वतंत्र' करार दिया है। जबकि स्वीडन के वैराइटीज ऑफ़ डेमोक्रेसीज इंस्टिट्यूट ने अपने लिबरल डेमोक्रेसी इंडेक्स में भारत की रेटिंग गिराते हुए इसे 'इलेक्टोरल आटोक्रेसी' बताया है। इसी तरह इकोनॉमिक्स इंटेलिजेंस यूनिट डेमोक्रेसी इंडेक्स का आकलन है कि भारत में लोकतांत्रिक मानक काफी कमजोर हो रहे हैं और इस लिहाज से यह एक ‘फ्लाड डेमोक्रेसी’ है।

दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का देश के अपने नागरिकों के प्रति रवैया ही राजा की तरह नहीं है बल्कि उनकी वेशभूषा और बोली-बानी भी बादशाहों वाली है। वे ऐसे बादशाह की तरह व्यवहार करते हैं जिसकी अपने राज्य और नागरिकों के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं है।

जबकि इतिहास में सम्राट अशोक से लेकर अकबर और जहांगीर तक ऐसे राजाओं के ढेरों उदाहरण मौजूद हैं;  जो अपनी प्रजा की तकलीफों को सुनने और उनको दूर करने के लिए हमेशा तत्पर रहते थे। ऐसे राजाओं को आज भी बहुत शिद्दत से याद किया जाता है। लेकिन लोकतांत्रिक भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व्यवहार और भावनाओं में इन राजाओं की तरह भी नहीं है। जाहिर है, राहुल गाँधी द्वारा मोदी को बार बार राजा कहे जाने से उन्हें और उनके अन्ध समर्थकों को खासी तकलीफ होती हो रही है।

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