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एयरपोर्ट मामले में अडानी समूह पर राहुल ने क्यों लगाए आरोप?

एयरपोर्ट मामले में अडानी समूह पर राहुल ने क्यों लगाए आरोप?

संसद में राहुल गांधी ने अडानी समूह को देश के बड़े-बड़े एयरपोर्ट सौंपने को लेकर बड़े-बड़े आरोप लगाए। उनके आरोप के कुछ आधार भी हैं या फिर हवा-हवाई बातें ही हैं?

राहुल गांधी ने जब संसद में अडानी समूह को एयरपोर्ट सौंपे जाने के नियम क़ायदों को लेकर सवाल उठाए तो तुरंत प्रतिक्रिया में बीजेपी की ओर से जवाब आया और जीवीके समूह की ओर से भी। दोनों ने राहुल के आरोपों का खंडन किया। अडानी समूह को सौंपे जाने से पहले जीवीके समूह ही मुंबई एयरपोर्ट की देखरेख का ज़िम्मा उठाए हुए था। राहुल गांधी ने लोकसभा में आरोप लगाया कि मोदी सरकार ने जीवीके ग्रुप पर दबाव डालकर मुंबई एयरपोर्ट को 'हाइजेक' कर अडानी समूह को सौंप दिया।

इन आरोपों पर जीवीके समूह के वाइस चेयरमैन जीवी संजय रेड्डी ने मंगलवार को कहा है कि मुंबई एयरपोर्ट को बेचने के लिए अडानी समूह या किसी और की तरफ़ से कोई दबाव नहीं था। उन्होंने एनडीटीवी से कहा कि न तो सीबीआई और न ही ईडी ने हम पर कोई दबाव डाला, हमने यह डील इसलिए की कि कंपनी को ज़रूरत थी। ये वही जीवीके समूह और जीवी संजय रेड्डी हैं जो 2020 में केंद्रीय एजेंसियों के निशाने पर थे। 

प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी ने 2020 में जीवीके समूह के कार्यालयों और मुंबई में उसके प्रमोटरों के आवासों पर छापे मारे थे। वह कार्रवाई हैदराबाद और मुंबई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के विकास में कथित अनियमितताओं के लिए मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले में की गई थी। उस मामले में 7 जुलाई, 2020 को ईडी ने जीवीके समूह और उसके अध्यक्ष जीवीके रेड्डी, उनके बेटे जीवी संजय रेड्डी और कुछ अन्य लोगों के ख़िलाफ़ धन शोधन निवारण अधिनियम यानी पीएमएलए की धारा 3 के तहत शिकायत दर्ज की थी। सीबीआई ने भी उनके खिलाफ 27 जून को मुंबई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के विकास में अनियमितता का आरोप लगाया था।

इसके क़रीब दो महीने बाद ही 31 अगस्त, 2020 को जीवीके समूह ने अडानी एंटरप्राइजेज को मुंबई हवाई अड्डे और नवी मुंबई हवाई अड्डे में हिस्सेदारी देने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार उस हस्ताक्षर और अडानी समूह द्वारा मुंबई हवाई अड्डे के अधिग्रहण से कुछ महीने पहले ही जीवीके समूह ने अडानी समूह को रोकने की पूरी कोशिश की थी। रिपोर्ट के अनुसार जीवीके समूह ने अक्टूबर 2019 में भारत के सॉवरेन फंड (NIIF) सहित निवेशकों के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिससे मुंबई एयरपोर्ट में हिस्सेदारी खरीदने से अडानी समूह को रोका जा सके। लेकिन अडानी समूह रुका नहीं। 2020 में ही अडानी समूह ने देश के दूसरे सबसे बड़े मुंबई एयरपोर्ट और नवी मुंबई में ग्रीनफ़िल्ड एयरपोर्ट का नियंत्रण जीवीके समूह से अपने हाथ में ले लिया।

मुंबई एयरपोर्ट के नियंत्रण लेने से पहले अडानी समूह देश के छह अन्य एयरपोर्ट को अपने हाथ में लेने की प्रक्रिया में था। राहुल गांधी ने संसद में अपने भाषण में 'अडानी समूह को लाभ पहुँचाने' के लिए इन छह हवाई अड्डों की बिडिंग प्रोसेस में बदलाव करने का आरोप लगाया है।

राहुल ने दावा किया, 

कुछ साल पहले सरकार ने हिंदुस्तान के एयरपोर्ट्स को डेवलप करने के लिए दिया। नियम था कि कोई भी जिसे पहले अनुभव न हो, वो एयरपोर्ट के डेवलपमेंट में शामिल नहीं हो सकता है। इस नियम को हिंदुस्तान की सरकार ने बदला और अडानी जी को 6 एयरपोर्ट दिए गए।


राहुल गांधी, संसद में

राहुल गांधी ने जो आरोप लगाए हैं उसको लेकर तब भी ख़बरें आई थीं कि नियम में बदलाव किए जाने पर केंद्र की संस्थाओं ने ही आपत्ति जताई थी। 

केंद्रीय वित्त मंत्रालय और नीति आयोग ने 2019 की हवाई अड्डे की बोली प्रक्रिया के संबंध में आपत्तियां दर्ज की थीं, जिन्हें बाद में खारिज कर दिया गया। इसी के बाद छह हवाई अड्डों को अडानी समूह को सौंपे जाने का रास्ता साफ़ हो गया।

जिन एयरपोर्ट की बोली आमंत्रित की गई थी वे थे- अहमदाबाद, लखनऊ, मैंगलोर, जयपुर, गुवाहाटी और तिरुवनंतपुरम। हवाई अड्डों के निजीकरण के लिए बोलियां आमंत्रित करने से पहले, केंद्र की सार्वजनिक निजी भागीदारी मूल्यांकन समिति यानी पीपीपीएसी ने 11 दिसंबर, 2018 को प्रक्रिया के लिए नागरिक उड्डयन मंत्रालय के प्रस्ताव पर चर्चा की थी। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार इन चर्चाओं के दौरान ही आर्थिक मामलों के विभाग के एक नोट में कहा गया है, 'ये छह हवाईअड्डा परियोजनाएँ काफी पूंजी वाली परियोजनाएं हैं, इसलिए यह सुझाव दिया जाता है कि दो से अधिक हवाईअड्डे एक ही बोलीदाता को नहीं दिए जाएँ। ऐसा इसलिए कि उच्च वित्तीय जोखिम और परफॉर्मेंस के मुद्दों को ध्यान में रखा जाना चाहिए। उन्हें अलग-अलग कंपनियों को देने से प्रतिस्पर्धा भी होगी।' 

रिपोर्ट के अनुसार आर्थिक मामलों के विभाग यानी डीईए का नोट 10 दिसंबर, 2018 को पेश किया गया था। अपने तर्क को पुष्ट करने के लिए डीईए ने दिल्ली और मुंबई हवाई अड्डों के उदाहरण का हवाला दिया था, जहां मूल रूप से एकमात्र योग्य बोलीदाता होने के बावजूद जीएमआर को दोनों हवाईअड्डे नहीं दिए गए थे। इसने दिल्ली के बिजली वितरण के निजीकरण का भी उल्लेख किया, जहां शहर को तीन क्षेत्रों में विभाजित किया गया था और दो अलग-अलग कंपनियों को दिया गया था। अंग्रेज़ी अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार पीपीपीएसी की बैठक में डीईए द्वारा उठाई गई इन चिंताओं पर कोई चर्चा नहीं हुई।

 - Satya Hindi

उसी दिन नीति आयोग ने भी हवाई अड्डे की बोली के संबंध में एक अलग चिंता जताई। सरकार के प्रमुख नीति थिंक-टैंक द्वारा तैयार एक मेमो में कहा गया है, 'पर्याप्त तकनीकी क्षमता की कमी वाले बोलीदाता परियोजना को अच्छी तरह से ख़तरे में डाल सकते हैं और सेवाओं की गुणवत्ता से समझौता कर सकते हैं।' द इंडियन एक्सप्रेस ने रिपोर्ट दी है कि इसके जवाब में तत्कालीन डीईए सचिव की अध्यक्षता में पीपीपीएसी ने कहा कि ईजीओएस यानी सचिवों का अधिकार प्राप्त समूह ने पहले ही फ़ैसला कर लिया था कि 'हवाई अड्डे के पूर्व अनुभव को न तो बोली लगाने के लिए एक शर्त बनाया जा सकता है, न ही बोली के बाद की आवश्यकता'। 

इसी बीच जब छह हवाईअड्डों के लिए बोली लगी तो बोली प्रक्रिया के दौरान अडानी समूह ने अपने प्रतिद्वंद्वियों को पछाड़ दिया। इनमें जीएमआर ग्रुप, ज्यूरिख एयरपोर्ट और कोचीन इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटेड जैसे अनुभवी खिलाड़ी शामिल थे।

छह हवाईअड्डों के लिए बोलियां जीतने के एक साल बाद अदानी समूह ने फरवरी 2020 में अहमदाबाद, मंगलुरु और लखनऊ हवाईअड्डों के लिए रियायती समझौतों पर हस्ताक्षर किए। इन तीनों को नवंबर 2020 में अडानी समूह को सौंप दिया गया था। अन्य तीन हवाई अड्डों - जयपुर, गुवाहाटी और तिरुवनंतपुरम - के लिए सितंबर 2020 में हस्ताक्षर किए गए थे। इसी बीच अडानी समूह ने 2020 के आख़िरी के महीनों में जीवीके समूह से मुंबई एयरपोर्ट भी अपने नियंत्रण में ले लिया।

यानी कुल मिलाकर मुंद्रा में एक निजी हवाई-पट्टी चलाने वाला अडानी समूह 24 महीने में ही हवाई अड्डों की संख्या के मामले में देश के सबसे बड़े निजी डेवलपर और यात्री यातायात के मामले में दूसरा सबसे बड़ा समूह बन गया।

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