राहुल, विपक्षी नेताओं के जम्मू-कश्मीर दौरे को प्रशासन की ना
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी और जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक के बीच राहुल गाँधी के राज्य का दौरा करने के मामले में दिलचस्प मोड़ आ गया है। राहुल गाँधी ने राज्यपाल मलिक का जम्मू-कश्मीर आने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया है। राहुल गाँधी विपक्ष के 9 नेताओं के साथ 24 अगस्त को यानी आज राज्य का दौरा करेंगे और वहाँ के हालात के बारे में जानकारी लेंगे।
लेकिन जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने राहुल गाँधी और विपक्षी नेताओं के राज्य में आने की ख़बर मिलते ही यू-टर्न ले लिया है। प्रशासन ने ट्वीट कर कहा है कि जब सरकार सीमापार के आतंकवाद और आतंकवादियों और अलगाववादियों के हमले से जम्मू-कश्मीर के लोगों को सुरक्षित करने के लिए काम कर रही है और राज्य में हालात सामान्य बनाने की कोशिश कर रही है, ऐसे में राजनीतिक दलों के नेताओं को सामान्य होती स्थिति को बिगाड़ने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।
attempts should not be made by senior political leaders to disturb the gradual restoration of normal life. Political leaders are requested to cooperate and not visit Srinagar as they would be putting other people to inconvenience. (2/3)
— DIPR-J&K (@diprjk) August 23, 2019
प्रशासन ने कहा है कि नेताओं से अनुरोध है कि वे सहयोग करें और श्रीनगर न आएँ, क्योंकि उनके आने से अन्य लोगों के लिए मुश्किल पैदा होगी। प्रशासन ने कहा है कि ऐसा करके ये नेता राज्य में लगाये गये प्रतिबंधों का भी उल्लंघन करेंगे। इन नेताओं को समझना चाहिए कि राज्य में शांति को स्थापित करना शीर्ष प्राथमिकता है।
राहुल के साथ राज्य के दौरे पर जाने वाले नेताओं में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ग़ुलाम नबी आज़ाद, आनंद शर्मा, भाकपा के डी. राजा, माकपा के सीताराम येचुरी, आरजेडी के मनोज झा और कुछ अन्य नेता शामिल हैं। बताया जा रहा है कि राहुल गाँधी अपने दौरे में राज्य के आम लोगों और राजनेताओं से मुलाक़ात कर सकते हैं।
बता दें कि जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाये जाने के बाद से ही राहुल गाँधी जम्मू-कश्मीर के हालात को लेकर कई बार चिंता जता चुके हैं।
राहुल के चिंता जताने के बाद राज्यपाल मलिक ने कहा था कि वह कश्मीर का दौरा कराने के लिए राहुल गाँधी के लिए हवाई जहाज भेजेंगे। लेकिन राहुल गाँधी ने मलिक के बयान पर जवाब देते हुए कहा था कि उन्हें हवाई जहाज़ भले ही न दिया जाए, लेकिन उन्हें तथा उनके साथ आने वाले विपक्षी नेताओं को पूरे राज्य में घूमने, आम लोगों, मुख्यधारा के नेताओं और राज्य में तैनात फौजियों से मिलने की आज़ादी दी जाए।
यह बात तब शुरू हुई थी जब राहुल गाँधी ने कश्मीर के मसले पर कहा था कि राज्य में स्थिति ख़राब है और वहाँ से हिंसा और लोगों के मरने की ख़बरें आ रही हैं। राहुल ने कहा था कि भारत सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को वहाँ के हालात के बारे में स्थिति साफ़ करनी चाहिए।
बता दें कि जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाये जाने के बाद से ही वहाँ राज्य के प्रमुख नेताओं को नज़रबंद किया गया है। हालाँकि केंद्र सरकार लगातार इस बात का दावा कर रही है कि राज्य में हालात सामान्य हैं लेकिन कुछ अंतरराष्ट्रीय मीडिया एजेंसियों का दावा है कि राज्य में हालात सामान्य नहीं हैं और प्रतिबंधों में ढील दिये जाने के बाद लोग अनुच्छेद 370 को हटाये जाने के ख़िलाफ़ सड़कों पर उतरे हैं।
राहुल ने मलिक से कहा था कि वह जम्मू-कश्मीर आने और लोगों से मुलाक़ात करने के आपके निमंत्रण को स्वीकार करते हैं और इसमें कोई भी शर्त नहीं जुड़ी है। राहुल ने राज्यपाल से पूछा था कि मैं कब आ सकता हूँ?’। राहुल ने तंज कसते हुए उन्हें सत्यपाल मलिक के सरनेम को 'मालिक' लिखा था। बता दें कि केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाकर राज्य को दो भागों लद्दाख और जम्मू-कश्मीर में बाँट दिया है। साथ ही दोनों को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया है।
लेकिन अनुच्छेद 370 को हटाये जाने को लेकर कांग्रेस नेताओं की अलग-अलग राय है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी ने इसे हटाने का समर्थन किया था लेकिन कांग्रेस के पूर्व महासचिव जनार्दन द्विवेदी ने कहा था कि एक भूल जो आज़ादी के समय हुई थी, उस भूल को देर से सही लेकिन सुधारा गया और यह स्वागत योग्य क़दम है। हालाँकि उन्होंने कहा था कि यह पूरी तरह उनकी निजी राय है।
इसके बाद राज्यसभा में कांग्रेस के चीफ़ व्हिप भुवनेश्वर कलिता ने भी इस मुद्दे पर इस्तीफ़ा दे दिया था। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा के बेटे और पूर्व सांसद दीपेंद्र हुड्डा, पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी मोदी सरकार के इस फ़ैसले का समर्थन किया था। नेहरू-गाँधी परिवार के गढ़ रायबरेली से कांग्रेस की विधायक अदिति सिंह ने भी इस मुद्दे पर पार्टी लाइन से हटकर बयान दिया था।