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अल्पसंख्यक विरोधी छवि से कंपनियों को नुक़सान: रघुराम राजन

अल्पसंख्यक विरोधी छवि से कंपनियों को नुक़सान: रघुराम राजन

भारत की यदि अल्पसंख्यक विरोधी छवि बनती है तो इससे देश पर क्या असर होगा और क्या दुनिया भर में भारतीय आर्थिक हित प्रभावित होंगे? 

हाल के दिनों में जिस तरह से अल्पसंख्यकों को निशाना बनाये जाने की ख़बरें आ रही हैं क्या उसका बड़ा खामियाजा भारतीय कंपनियों को उठाना पड़ेगा? कम से कम रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन तो यही मानते हैं।

उन्होंने गुरुवार को आगाह किया कि देश के लिए एक 'अल्पसंख्यक विरोधी' छवि भारतीय उत्पादों के लिए बाजार को नुक़सान पहुंचा सकती है। उन्होंने कहा कि और इसका नतीजा यह भी हो सकता है कि विदेशी सरकारें देश को अविश्वसनीय सहयोगी के तौर पर देखने लगें।

उनकी यह टिप्पणी तब आई है जब भारत में अल्पसंख्यकों को निशाना बनाए जाने की चिंताएँ हैं। हाल ही में रामनवमी की शोभायात्राओं में हिंसा हुई और उसके बाद बुलडोजर की कार्रवाई हुई है। सांप्रदायिक हिंसा के बाद अतिक्रमण विरोधी अभियान के तहत जहांगीरपुरी में एक मस्जिद के पास बुलडोजर ने कई संरचनाओं को तोड़ दिया था। इससे अल्पसंख्यक विरोधी की छवि बनने की आशंका पैदा हुई है।

रघुराम राजन टाइम्स नेटवर्क इंडिया इकोनॉमिक कॉन्क्लेव में बोल रहे थे। शिकागो के बूथ स्कूल ऑफ बिजनेस के प्रोफेसर के तौर पर काम कर रहे राजन ने लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता जैसी साख की ओर इशारा किया लेकिन साथ ही चेतावनी भी दी कि यह लड़ाई हम हार सकते हैं।

टाइम्स नाउ की रिपोर्ट के दौरान कार्यक्रम में राजन ने कहा कि 'लोकतंत्र हमेशा आसान नहीं होता है, इसे नेविगेशन की आवश्यकता होती है। इसके सभी पक्षों से बातचीत और जरूरत पड़ने पर बदलाव की कवायद करनी पड़ती है।' 

राजन ने आगे कहा, 'चीन उइगरों के साथ और कुछ हद तक तिब्बतियों के साथ भी इस तरह की छवि की समस्याओं से पीड़ित रहा है, जबकि यूक्रेन को भारी समर्थन मिला है क्योंकि राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की को किसी ऐसे व्यक्ति के रूप में देखा जाता है जो लोकतांत्रिक विचारों की रक्षा के लिए खड़ा होता है और उसमें दुनिया विश्वास करती है।'

सेवा क्षेत्र का निर्यात भारतीयों के लिए एक बड़ा अवसर देता है और देश को इस पर कब्जा करना होगा। उन्होंने कहा कि जिन अवसरों का लाभ उठाया जा सकता है, उनमें से एक चिकित्सा क्षेत्र है। राजन ने यह भी कहा कि चुनाव आयोग, प्रवर्तन निदेशालय या केंद्रीय जांच ब्यूरो जैसे संवैधानिक प्राधिकरणों को कम आँकने से हमारे देश के लोकतांत्रिक चरित्र को नुक़सान होता है।

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