आर्थिक मंदी- सत्ता के केंद्रीकरण से भारत अँधेरे-अनिश्चित रास्ते पर: राजन
ख़राब आर्थिक हालत के लिए अब आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने सरकार को निशाने पर लिया है। राजन ने अर्थव्यवस्था की हालत पर चिंताजनक जताई है और कहा है कि मौजूदा फ़ैसला लेने वाली 'केंद्रीय सत्ता' भारत को एक 'अंधेरे और अनिश्चित रास्ते' पर ले जा रही है। उनका कहने का मतलब है कि अर्थव्यवस्था की ऐसी हालत इसलिए हुई है कि अर्थव्यवस्था पर फ़ैसले सभी पक्षों की राय लेकर नहीं, बल्कि केंद्र की सत्ता में कुछ गिने-चुने लोग ले रहे हैं और इससे बड़ा नुक़सान हो रहा है। राजन मोदी सरकार की नीतियों की कई बार आलोचना कर चुके हैं।
ब्राउन यूनिवर्सिटी में 9 अक्टूबर को ओपी जिंदल लेक्चर के दौरान राजन ने उन कारणों का ज़िक्र किया जिससे भारत की अर्थव्यवस्था डाँवाडोल स्थिति में पहुँच गई है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार राजन ने कहा, ‘भारत अपनी अर्थव्यवस्था को एक हद तक इसलिए भी नुक़सान पहुँचा रहा है क्योंकि यह बिना एक मज़बूत आर्थिक दृष्टि के सत्ता का केंद्रीकरण कर रहा है।’ मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, मौजूदा वित्तीय घाटे ने ‘बहुत कुछ छुपाया’ और अर्थव्यवस्था की वास्तविक तसवीर को सामने नहीं आने दिया। ‘द प्रिंट’ के अनुसार, राजन ने कहा कि वर्तमान वित्तीय घाटा अधिक था जिससे अर्थव्यवस्था की वृद्धि प्रभावित हुई। वास्तविक राजकोषीय घाटा केंद्र और राज्यों के सामूहिक आँकड़ों से 7 प्रतिशत अधिक हो सकता है।
राजन ने कहा कि निवेश, ख़पत और निर्यात में गिरावट के कारण अर्थव्यवस्था में मंदी रही। लेकिन इस गिरावट के लिए दो महत्वपूर्ण स्थितियाँ विशेष रहीं। राजन के अनुसार, नोटबंदी के ग़लत फ़ैसले और ‘ख़राब तरीक़े से जीएसटी’ लागू करने से समस्या और बढ़ गई। पूर्व गवर्नर ने नोटबंदी का हवाला देते हुए यह बताया कि कैसे सरकार ने केंद्रीयकृत रूप से इस पर निर्णय लिया। ऐसे फ़ैसले से गंभीर समस्या खड़ी हो सकती है। माना जाता है कि नोटबंदी अपने किसी भी उद्देश्य को पाने में सफल नहीं रही। इसके बजाए नोटबंदी के कारण लोगों के हाथ से पैसे निकल गए, बड़े पैमाने पर कंपनियाँ बंद हुईं, माँग भी घटी, बेरोज़गारी बढ़ी और आख़िरकार अर्थव्यवस्था पर बोझ पड़ा। नोटबंदी से अर्थव्यवस्था उबर भी नहीं पाई थी कि जीएसटी लागू कर दिया गया।
पूर्व गवर्नर राजन ने यह भी कहा कि नोटबंदी और जीएसटी भारतीय अर्थव्यवस्था की कमर को तोड़ने वाले दिखते हैं क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था पहले से ही अपेक्षाकृत कमज़ोर थी। बता दें कि जीएसटी को जल्दबाज़ी में लागू किया था और इसके बाद बार-बार नियमों में बदलाव करना पड़ा। व्यापारी इन बदलावों से हतोत्साहित हुए। कई सामानों पर जीएसटी दर इतनी ज़्यादा थी कि बार-बार बदलाव कर इसको कम करना पड़ा। इस कारण भी इसका अर्थव्यवस्था पर असर पड़ा।
निवेश और माँग में कमी
भारत की जीडीपी पाँच फ़ीसदी पर पहुँच गई है। विश्व बैंक ने भारत की अनुमानित वृद्धि दर 6.9 फ़ीसदी से घटाकर 6 फ़ीसदी कर दी है। अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेन्सी मूडीज़ ने 2019-2020 के लिए भारत के जीडीपी की अनुमानित वृद्धि दर घटाकर 5.8 फ़ीसदी कर दी है। मूडीज ने वृद्धि दर कम रहने के पीछे निवेश और माँग में कमी, ग्रामीण इलाक़ों में मंदी और रोज़गार के मौक़े बनाने में नाकामी को कारण बताया था। मूडीज़ ने कहा था कि ये कारण लंबे समय तक बने रहेंगे।
देश का औद्योगिक उत्पादन सूचकांक साढ़े छह साल में सबसे कम है। जुलाई के मुक़ाबले अगस्त में औद्योगिक विकास 4.3 प्रतिशत से घटकर -1.10 प्रतिशत पर आ गया है। ये आँकड़े फ़रवरी 2013 के बाद सबसे कमज़ोर हैं। देश के 23 औद्योगिक समूहों में से 15 में निर्माण वृद्धि घटती हुई नकारात्मक हो गई है। हाल के दिनों में ऑटो सेक्टर की हालत ख़राब है ही। बेरोज़गारी भी रिकॉर्ड स्तर पर है। हर अंतरराष्ट्रीय संस्था की रिपोर्ट भारत की ख़राब आर्थिक हालत की ओर इशारा कर रही हैं।
राजन ने क्यों छोड़ा था रिज़र्व बैंक
'टाइम्स ऑफ़ इंडिया' की रिपोर्ट के अनुसार आर्थिक मोर्चे पर ऐसी हालत की ओर इशारा करते हुए राजन ने कहा है कि विकास धीमा होने के बावजूद सरकार अपने कल्याणकारी कार्यक्रम पर ज़ोर दे रही है, क्योंकि इससे राजनीतिक तौर पर फ़ायदा होता है।
उन्होंने कहा कि मोदी सरकार में केंद्रीयकृत ढाँचा आर्थिक विकास में बाधक था। बता दें कि राजन मोदी सरकार के इस केंद्रीयकृत ढाँचे के ख़िलाफ़ थे। विवाद के बाद रघुराम राजन ने जून 2016 में गवर्नर पद छोड़ने की घोषणा की थी। हालाँकि, उन्होंने सितंबर 2016 में कार्यकाल पूरा होने पर ही पद छोड़ा था। इसके बाद रिज़र्व बैंक का गवर्नर बने उर्जित पटेल ने भी मोदी सरकार में अपने कार्यकाल के बीच में ही इस्तीफ़ा दे दिया। माना जाता है कि उनका भी कई मसलों पर मोदी सरकार से विवाद था। बताया जाता है कि नोटबंदी के फ़ैसले से भी उर्जित ख़ुश नहीं थे।
विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी और हालिया पड़े छापे का ज़िक्र करते हुए राजन ने कहा कि यह साफ़ नहीं है कि चोरी करने वाले केवल विपक्ष में हैं तभी दिक्कत है और विपक्ष के ही उन सदस्यों से दिक्कत नहीं है जो सत्ता पक्ष के प्रति निष्ठा रखते हैं। उन्होंने कहा कि यह चिंता की बात है कि बिना किसी ट्रायल के पूर्व वित्त मंत्री एक महीने से अधिक समय से जेल में हैं।
राजन ने कहा कि भारत की वास्तविक समस्या यह है कि यह वृद्धि के नये स्रोत नहीं ढूँढ पाया है।