कोटे में सब कटैगरी पर विपक्ष से ज्यादा एनडीए में विरोध
जातियों के बीच उप-वर्गीकरण को बरकरार रखने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद, एनडीए और इंडिया गठबंधन की पार्टियों ने अपने वोट बैंक के अनुसार स्थिति ले ली है। बीजेपी और कांग्रेस ने बड़े पैमाने पर फैसले का स्वागत किया है। सूत्रों ने कहा कि इस फैसले से अनुसूचित जाति के वर्चस्व वाले जाति समूहों के हितों को नुकसान पहुंचने की संभावना है।
भाजपा के सहयोगी और बिहार से सांसद केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान पहले ही घोषणा कर चुके हैं कि वह फैसले के खिलाफ समीक्षा याचिका दायर करेंगे। बिहार के सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, पासवान (राज्य की जनसंख्या का 5.31%) यादवों के बाद दूसरा सबसे बड़ा जाति समूह है। चमार (अन्यत्र जाटव के रूप में जाना जाता है) तीसरा सबसे बड़ा जाति समूह (जनसंख्या का 5.25%) है।
2008 में, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने छोटी दलित जातियों को इस श्रेणी में लाते हुए 'महादलित' शब्द गढ़ा। इस सूची से पासवानों को बाहर कर दिया गया और उनके विकास के लिए विशेष कल्याणकारी योजनाएँ लागू की गईं। जेडीयू का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने जो कहा है, उसे नीतीश कुमार ने 2008 में लागू किया था। एक अन्य केंद्रीय मंत्री और हम नेता जीतन राम मांझी ने अभी तक कोई बयान नहीं दिया है। मांझी मुशहर समुदाय से हैं, जो 'महादलित' के अंतर्गत आता है और राज्य की आबादी का 3% हिस्सा है। मुसहरों को इस फैसले से सीधा फायदा होगा, इसलिए जीतन राम मांझी चुप हैं।
आरजेडी ने फैसले का विरोध किया है और चिराग पासवान जैसे ही कारण बताये हैं। चिराग पासवान ने कहा कि अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण का आधार कभी भी जनसंख्या और आय नहीं रहा। सुप्रीम कोर्ट छुआछूत के सवाल को ही भूल गया, जो इन जातियों के खिलाफ आज भी जारी है। यही मुद्दा आरजेडी ने भी उठाया है।
यूपी में बीजेपी के सहयोगी दलों, निषाद पार्टी और एसबीएसपी ने फैसले का स्वागत किया है। जहां निषाद पार्टी निषादों को एससी में शामिल करने की मांग कर रही है, वहीं एसबीएसपी के ओमप्रकाश राजभर राज्य में ओबीसी आरक्षण के भीतर विशेष ईबीसी कोटा की मांग कर रहे हैं।
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मायावती के नेतृत्व वाली बसपा और चंद्र शेखर आज़ाद की पार्टी ने फैसले का विरोध किया है और इसे अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण समाप्त करने का एक उपकरण बताया है।
महाराष्ट्र में प्रकाश अंबेडकर के नेतृत्व वाली वंचित बहुजन अघाड़ी ने फैसले का विरोध किया है। पार्टी को महारों के बीच समर्थन आधार माना जाता है, जो राज्य में अनुसूचित जाति के बीच सबसे प्रभावशाली समूह है। दक्षिणी क्षेत्रीय दलों ने फैसले का तहे दिल से स्वागत किया है। तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंथ रेड्डी ने फैसला आते ही इसे लागू करने का बयान दिया था।
तमाम राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया से साफ है कि जिनका आधार अनुसूचित जाति (एससी) है, वे इस फैसले के विरोध में हैं। जिसमें बसपा प्रमुख मायावती, भीम आर्मी प्रमुख और सांसद चंद्रशेखर आजाद, बिहार से सांसद चिराग पासवान, आरजेडी से तेजस्वी यादव, महाराष्ट्र से राम दास अठावले, वंचित अघाड़ी के प्रकाश अंबेडकर आदि इसके खिलाफ हैं। जीतनराम मांझी ने रणनीतिक चुप्पी लगा रखी है। मायावती की पार्टी बसपा इस मुद्दे पर अपना आधार मजबूत करने की तरफ लौट सकती है। बसपा पर भाजपा को फायदा पहुंचाने का आरोप है। इसलिए उसका आधार वोट बैंक खिसकर सपा और कांग्रेस में चला गया है।