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चीन के अखबार का सवाल-  भारत-रूस संबंधों पर पश्चिमी देश क्यों चिंतित?

चीन के अखबार का सवाल-  भारत-रूस संबंधों पर पश्चिमी देश क्यों चिंतित?

पीएम मोदी की ताजा रूस यात्रा को लेकर पश्चिमी देश ज्यादा चौकन्ने हैं। उनकी चिन्ता का दायरा यूक्रेन तक सीमित है। क्योंकि वो यूक्रेन के मामले में रूस के राष्ट्रपति को युद्ध अपराधी ठहरा रहे हैं। लेकिन भारत की अपनी रणनीति है। जिसकी वजह से सदियों पुराने भारत-रूस संबंध आज भी मजबूत बने हुए हैं। चीन के अखबार ग्लोबल टाइम्स ने मोदी की यात्रा को लेकर टिप्पणी की है। जानिएः

भारत-रूस के मजबूत होते संबंधों पर चीन उतना चिंतित नहीं है, जितना पश्चिम के देश परेशान हैं। यह बात चीन से प्रकाशित अखबार ग्लोबल टाइम्स में कही गई है। यह लेख सोमवार को प्रकाशित हुआ था, जब मोदी मॉस्को पहुंचने वाले थे। ग्लोबल टाइम्स का कहना है कि दरअसल, पश्चिमी देश चीन, भारत और रूस के बीच आपसी कलह पैदा करने की कोशिश में लगे रहते हैं। इसीलिए उन्होंने मोदी की रूस यात्रा को पसंद नहीं किया है। 

चीन और रूस की नजदीकियों को लेकर भारत में भी चिंता रही है। ऐसे में भारत सरकार को उम्मीद है कि मॉस्को इस रणनीति का असर भारत-रूस संबंधों पर नहीं पड़ने देगा। ऐसे समय में जब भारत और चीन के सैनिक सीमा पर बने हुए हैं, भारत को रूसी रक्षा उपकरणों की सप्लाई महत्वपूर्ण है। 

ग्लोबल टाइम्स ने अपने लेख में सिचुआन इंटरनेशनल स्टडीज यूनिवर्सिटी में स्कूल ऑफ इंटरनेशनल रिलेशंस के प्रोफेसर लॉन्ग जिंगचुन के हवाले से लिखा है- "चीन रूस-भारत संबंधों को खतरे के रूप में नहीं देखता है, जबकि पश्चिमी देश रूस के साथ भारत के संबंधों से असंतुष्ट हैं।" 

ग्लोबल टाइम्स के लेख में जिंगचुन के हवाले से आगे कहा गया है- “रूस-यूक्रेन संघर्ष पर अमेरिका और पश्चिम ने चीन की खूब आलोचना की और दबाव डाला। लेकिन उसके मुकाबले भारत को रूस की निंदा नहीं करने और रूस पर प्रतिबंध लगाने में पश्चिम के साथ शामिल नहीं होने के लिए कम आलोचना का सामना करना पड़ा है। भारत ने रूस के साथ संबंध बनाए रखा और उससे तेल खरीदकर यूरोपीय देशों को बेचा।“

लेख में कहा गया है- "पश्चिमी देशों ने भारत को पश्चिमी खेमे में खींचने और चीन के प्रभाव को संतुलित करने की कोशिश की, लेकिन भारत ने जवाब में पश्चिम द्वारा बढ़ाए गए राजनीतिक और कूटनीतिक इशारों का जवाब नहीं दिया है, जिससे पश्चिमी देशों को निराशा हुई है।"

लेख में कहा गया है कि  "पश्चिमी दबाव के बावजूद, मोदी ने अपने तीसरे कार्यकाल की शुरुआत के बाद विदेश यात्रा के लिए अपनी पहली मंजिल के रूप में रूस को चुना... इसका मकसद न केवल रूस के साथ भारत के संबंधों को मजबूत करना है, बल्कि अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों के साथ निपटने में इसकी रणनीति को भी आगे ले जाना है।" 

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