पंजाब की शीर्ष अफसरशाही ने बगावत की राह अख्तियार कर ली है। सूबे के तमाम पीसीएस (पंजाब लोक सेवा) के अधिकारी सरकार के खिलाफ विरोध करते हुए 5 दिन की सामूहिक छुट्टी पर चले गए हैं। यह अपने किस्म की एक 'हड़ताल' है जिसे अनुशासनात्मक कार्रवाई से बचने के लिए 'छुट्टी' का नाम दिया गया है। संकेत मिल रहे हैं कि सामूहिक अवकाश लंबा भी हो सकता है और राज्य में तैनात आईएएस अधिकारी भी पीसीएस अधिकारियों की मानिंद सामूहिक तौर पर 'लंबी छुट्टी' पर जा सकते हैं। राज्य के तमाम जिलों और उपमंडलों में प्रशासनिक काम सोमवार से एक दम ठप हो गया है।
पंजाब की पीसीएस एसोसिएशन और आईएएस एसोसिएशन ने एकजुट होकर सरकार के ख़िलाफ़ हाथ मिला लिए हैं। यह सूबे की भगवंत सिंह मान सरकार के लिए बहुत बड़ी मुसीबत का सबब है। हालाँकि स्थिति की नजाकत को देखते हुए मुख्यमंत्री ने पीसीएस और आईएएस अधिकारियों की एसोसिएशनों के साथ लंबी बैठक की लेकिन उसका कोई खास नतीजा सामने नहीं आया। सूत्रों के मुताबिक़ बैठक में राज्य के मुख्य सचिव भी शामिल थे और उनसे काफी कनिष्ठ 'नाराज अधिकारियों' ने उन्हें खूब खरी-खोटी सुनाई।
पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार को बने नौ महीने हुए हैं। इस दौरान जो सरकारी एजेंसी सबसे ज़्यादा सशक्त होकर उभरी है, वह है राज्य विजिलेंस ब्यूरो! नई सरकार के गठन होते ही विजिलेंस ब्यूरो अतिरिक्त सक्रियता के साथ काम करने लगा। जाहिर है कि उसे शासन व्यवस्था के शिखर पर बैठे लोगों की खुली शह हासिल है। बड़े-बड़े विपक्षी नेताओं और पूर्व मंत्रियों एवं विधायकों पर तगड़ा शिकंजा कसा गया और कईयों को जेल की सलाखों के पीछे डाला गया। सूत्रों के मुताबिक़ विजिलेंस ब्यूरो पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के ख़िलाफ़ फ़ाइलें तैयार कर रहा है। विभागीय सूत्र बताते हैं कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा पंजाब से पार होने के बाद चरणजीत सिंह चन्नी की गिरफ्तारी किसी भी वक्त हो सकती है।
एक ओर जहाँ राज्य विजिलेंस ब्यूरो ने राजनेताओं को भ्रष्टाचार के संगीन आरोपों के तहत दबोचा, वहीं कुछ पीसीएस और आईएएस अधिकारियों को भी सीधे निशाने पर लिया। एक शिकायत के आधार पर विजिलेंस ब्यूरो ने लुधियाना से रीजनल ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी के पद पर कार्यरत पीसीएस अधिकारी नरिंदर सिंह धालीवाल को गिरफ्तार किया और उनके आवासीय ठिकानों पर छापेमारी की। एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी नीलिमा के खिलाफ भ्रष्टाचार की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया और उन पर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है। विजिलेंस ब्यूरो की इन दो कार्रवाइयों ने पंजाब की ब्यूरोक्रेसी में जबरदस्त हड़कंप मचा दिया। नरिंदर सिंह धालीवाल की गिरफ्तारी से पीसीएस अफसर खफा हो गए तो नीलिमा पर बनाए गए केस से आईएएस अधिकारी। सूबे के पीसीएस और आईएएस अधिकारियों के लिए राज्य विजिलेंस ब्यूरो हौवा बन गया है। अधिकारियों का कहना है कि पंजाब को 'पुलिस स्टेट' में तब्दील किया जा रहा है।
आईएएस अधिकारी नीलिमा के पति अमित कुमार खुद आईएएस अधिकारी हैं। इस संवाददाता से बातचीत में उन्होंने बताया कि विजिलेंस की दहशत इस कदर हावी है कि नीलिमा गिरफ्तारी के डर से 4 दिन से घर नहीं लौटी हैं। उनका कहना है कि नीलिमा के खिलाफ केस दर्ज करना सरासर नियम 17-ए की खुली अवहेलना है। सतर्कता नियमावली/भ्रष्टाचार रोको एक्ट-1988 के 17-ए के प्रावधानों के अनुसार किसी भी आईएएस अधिकारी के खिलाफ केस दर्ज करते वक्त आला स्तर पर सरकारी मंजूरी अपरिहार्य है लेकिन नीलिमा के मामले में ऐसा नहीं किया गया। यही कायदा पीसीएस अधिकारियों की बाबत है। अमित कुमार कहते हैं कि अगर नियमों से बाहर जाकर उनकी पत्नी पर विजिलेंस कार्रवाई होती है तो वह भी नौकरी से इस्तीफा दे देंगे और इंसाफ के लिए जंग लड़ेंगे। उधर, धालीवाल की गिरफ्तारी के बाद पीसीएस अधिकारियों का भी कुछ ऐसा ही कहना और मानना है।
पंजाब में पहली बार ऐसा हुआ है कि पीसीएस अधिकारियों ने विरोध में पांच दिवसीय सामूहिक अवकाश पर जाने की घोषणा के वक्त सरकार और विजिलेंस ब्यूरो को निशाना बनाया हो। सोमवार से सरकारी कार्यालयों में सन्नाटा पसरा हुआ है।
राज्य के तमाम जिलों में सरकारी काम ठप होने के बाद मुख्य सचिव विजय कुमार जंजुआ ने मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान की हिदायत पर पीसीएस और आईएएस अधिकारियों की तत्काल बैठक बुलाई।
इस बैठक में 100 से ज्यादा आईएएस और पीसीएस अधिकारी मुख्यमंत्री तथा मुख्य सचिव से मुखातिब हुए। बैठक में मौजूद एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ने इस संवाददाता को बताया कि मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान और मुख्य सचिव विजय कुमार जंजुआ तथा प्रमुख सचिव ने तीन घंटे तक अफसरों की शिकायतें सुनीं। खफा अधिकारियों का कहना था कि उनका अगला कदम सामूहिक इस्तीफा भी हो सकता है। आईएएस अधिकारी नीलिमा के पति अमित कुमार ने तो मुख्यमंत्री को संबोधित होते हुए साफ कह दिया कि अगर उनकी पत्नी को विजिलेंस ब्यूरो द्वारा गिरफ्तार किया जाता है तो वह इस्तीफा दे देंगे। इसके बाद उनकी आंखों में आंसू आ गए। अन्य कई आईएएस और पीसीएस अधिकारियों ने भी सामूहिक इस्तीफे की धमकी दी और कहा कि विजिलेंस ब्यूरो के उन अधिकारियों के खिलाफ सख्त से सख्त एक्शन लिया जाए जो नियमों से बेपरवाह होकर प्रशासनिक अधिकारियों को निशाना बना रहे हैं।
बैठक में अमित कुमार की सुर में सुर मिलाते हुए आईएएस और पीसीएस अधिकारियों ने कहा कि मुख्यमंत्री को बाखबर रहना चाहिए कि पंजाब को किसके इशारे पर 'पुलिस स्टेट' बनाया जा रहा है? एक अन्य अधिकारी के मुताबिक यह कहते हुए भी कई अधिकारी बेहद भावुक हो गए। उक्त अधिकारी ने इस संवाददाता से कहा कि, "यह एक विचित्र स्थिति थी जो शायद ही देश के किसी अन्य राज्य में दरपेश हुई हो। आईएएस और पीसीएस अधिकारियों की अभिव्यक्ति से मुख्यमंत्री हक्का-बक्का हो गए। उन्होंने तत्काल मुख्य सचिव से कहा कि 24 घंटे के अंदर उन्हें तमाम प्रकरण पर पुख्ता रिपोर्ट चाहिए।
पंजाब सिविल सर्विस ऑफिसर्स एसोसिएशन के एक पदाधिकारी के मुताबिक़, "मुख्यमंत्री ने हमारी बातें बहुत ध्यान से सुनीं और समय दिया। इससे पहले प्रदेश के किसी मुख्यमंत्री ने काडर के सदस्यों की जायज मांगों के प्रति इतनी हमदर्दी कभी नहीं दिखाई लेकिन बावजूद इसके हमारी समस्याएँ जस की तस हैं।"
लगभग तमाम आईएएस तथा पीसीएस अधिकारियों का कहना है कि उनका रोष तब तक जारी रहेगा जब तक विजिलेंस ब्यूरो नरिंदर सिंह धालीवाल को रिहा नहीं कर देता और नीलिमा के खिलाफ दर्ज केस वापिस नहीं हो जाता। वरिष्ठ आईएएस अधिकारी अजय शर्मा ने मुख्यमंत्री के साथ हुई मीटिंग में कहा कि आईएएस अधिकारी ऐसे हालात में काम नहीं करेंगे। मुख्यमंत्री ने कहा कि उन्हें इस बाबत जानकारी नहीं थी कि मामला इतना गंभीर हो गया है।
मुख्यमंत्री से बैठक के बाद आईएएस और पीसीएस अधिकारियों ने आपस में मीटिंग करके फंड इकट्ठा किया ताकि ज़रूरत पड़ने पर अदालती कार्रवाई में उसे इस्तेमाल किया जा सके। मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक लगातार विजिलेंस ब्यूरो के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठकें कर रहे हैं।
इस प्रकरण को राजनीतिक रंगत भी विपक्षी दल देने लगे हैं। शिरोमणि अकाली दल और कांग्रेस तथा भाजपा ने कहा है कि पंजाब की अफसरशाही को स्वतंत्र तौर पर काम नहीं करने दिया जा रहा और विजिलेंस ने चौतरफा दहशत का माहौल बना दिया है। विपक्ष ने ‘नाराज' अधिकारियों का साथ देने की घोषणा की है।
इस बीच शिद्दत के साथ यह सवाल सुलग रहा है कि राज्य की अफसरशाही में रोष की जानकारी मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान और उनके 'सलाहकारों' को यह बात बेहद बिगड़ने के बाद क्यों मिली? उन्हें पहले भनक लगनी चाहिए थी क्योंकि जिला स्तर पर अफसर ही औपचारिक तौर पर सरकार चलाते हैं। ऐसे में यह सवाल भी प्रासंगिक है कि पंजाब का विजिलेंस ब्यूरो क्या किसी और लॉबी के इशारे पर काम कर रहा है? मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान की छवि ब्यूरोक्रेसी में जानबूझकर धूमिल की जा रही है? कहा तो यहां तक जा रहा है कि चंडीगढ़ स्थित शीर्ष ब्यूरोक्रेसी भगवंत सिंह मान के कंट्रोल में नहीं है। दिल्ली से आए कुछ 'विशेष लोग' समानांतर सत्ता चला रहे हैं। क्या इसलिए भी पंजाब की अफसरशाही को इतना बड़ा कदम उठाना पड़ा?