पंजाब में किसान विरोध का एक नया तूफ़ान खड़ा हो गया है। हिरासत में लिए गए किसान नेताओं ने अनशन शुरू कर दिया है, तो वहीं संयुक्त किसान मोर्चा के संगठनों ने बीजेपी और आप पर कॉरपोरेट हितों की चौकीदारी का सनसनीखेज आरोप लगाया है। यह आरोप तब लगा है जब पंजाब की आप सरकार ने किसान नेताओं पर हाल में बड़ी कार्रवाई की है। न्यूनतम समर्थन मूल्य की मांग को लेकर चल रहा यह संघर्ष अब सिर्फ खेतों की लड़ाई नहीं, बल्कि सत्ता और किसानों के बीच की जंग बन गया है।
एमएसपी को कानूनी दर्जा देने जैसे मुद्दों पर चर्चा के लिए 19 मार्च को केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ बैठक के बाद 28 किसान नेताओं की गिरफ्तारी ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया। संयुक्त किसान मोर्चा और संयुक्त किसान मोर्चा-गैर राजनीतिक ने बीजेपी की केंद्र सरकार और आप की पंजाब सरकार पर कॉरपोरेट हितों की रक्षा के लिए एकजुट होने का गंभीर आरोप लगाया है।
भारतीय किसान यूनियन (एकता-सिद्धूपुर) के प्रवक्ता गुरदीप सिंह चहल ने पंजाब से द हिंदू को बताया कि संयुक्त किसान मोर्चा-गैर राजनीतिक के नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल ने गिरफ्तारी के बाद से पानी तक नहीं लिया है। उन्होंने कहा, 'डल्लेवाल, सरवन सिंह पंधेर सहित 28 नेता पुलिस हिरासत में अनशन पर हैं। चंडीगढ़ से पंजाब में प्रवेश करते ही पंजाब पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया। शंभू बॉर्डर का हमारा प्रदर्शन स्थल पूरी तरह ध्वस्त कर दिया गया। सैकड़ों कार्यकर्ता हिरासत में हैं, और हम सभी को गिरफ्तारी का डर सता रहा है।' उन्होंने इस दमन को औपनिवेशिक काल से भी क्रूर बताते हुए बीजेपी और आप पर किसानों के ख़िलाफ़ साज़िश का इल्जाम लगाया।
एसकेएम के पदाधिकारी और भारतीय किसान यूनियन (एकता उग्रहन) के समन्वयक पवेल कुस्सा ने कहा कि यह कार्रवाई किसानों की एकता को कमजोर करने की कोशिश है।
पवेल कुस्सा ने कहा, 'पंजाब सरकार का कहना है कि किसानों का विरोध कॉरपोरेट निवेश को नुक़सान पहुंचाएगा। अभी तक आप दावा करती थी कि वह बीजेपी से अलग है, लेकिन इस दमन से साफ़ हो गया कि दोनों कॉरपोरेट हितों की रक्षा में एकसाथ हैं। एमएसपी को क़ानूनी दर्जा कॉरपोरेट मुनाफे के ख़िलाफ़ है और यही वजह है कि इसे कुचलने की कोशिश हो रही है।'
एसकेएम ने संयुक्त किसान मोर्चा-गैर राजनीतिक के साथ मिलकर संयुक्त विरोध का ऐलान किया है।
संयुक्त किसान मोर्चा-गैर राजनीतिक और किसान मजदूर मोर्चा ने संयुक्त बयान में पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान पर तीखा हमला बोला। बयान में कहा गया है कि बैठक के लिए बुलाए गए नेताओं को गिरफ्तार करना सरकार के विश्वासघात का सबूत है।
दोनों संगठनों ने पंजाब की जनता से किसान आंदोलन का समर्थन करने और न्याय की इस लड़ाई में शामिल होने की अपील की।
एसकेएम ने अपने बयान में आप सरकार की कड़ी निंदा करते हुए कहा कि यह कदम कॉरपोरेट और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के ढांचे को कृषि में थोपने की उसकी मंशा को दिखाता है। इसने कहा, 'यह संदिग्ध है कि आप के शीर्ष नेताओं की उद्योगपतियों के साथ बैठक के ठीक बाद यह कार्रवाई हुई। आप राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बीजेपी के साथ मिलकर यह साजिश रच रही है।'
किसान नेताओं का मानना है कि यह घटना सिर्फ़ गिरफ्तारी की कहानी नहीं, बल्कि सत्ता और कॉरपोरेट ताकतों के बीच गहरे गठजोड़ को उजागर करती है। एमएसपी को क़ानूनी दर्जा किसानों की आजीविका की गारंटी है, लेकिन यह कॉरपोरेट मुनाफे के लिए ख़तरा बनता है। सियासी मंचों पर एक-दूसरे के ख़िलाफ़ नज़र आने वाले बीजेपी और आप इस मुद्दे पर एक ही पाले में खड़े दिखते हैं। शंभू बॉर्डर पर प्रदर्शन स्थल को ख़त्म करना और नेताओं का अनशन सत्ता के उस चेहरे को सामने लाता है, जो लोकतंत्र के नाम पर कॉरपोरेट को बढ़ावा दे रहा है। सवाल यह है कि क्या यह दमन किसानों को चुप करा पाएगा, या यह उनकी लड़ाई को नई ताक़त देगा?
(इस रिपोर्ट का संपादन अमित कुमार सिंह ने किया है)