राजस्थान की मुसीबत ख़त्म हुई नहीं अब पंजाब में बवाल; क्या करे कांग्रेस आलाकमान
कांग्रेस आलाकमान की मुसीबतें सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती जा रही हैं। एक मुसीबत से पिंड छूटता नहीं कि दूसरी खड़ी हो जाती है। राजस्थान में पायलट और गहलोत के बीच एक महीने तक चले सियासी झगड़े की आग अभी ठंडी भी नहीं हुई है कि पंजाब में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के ख़िलाफ़ राज्य कांग्रेस के दूसरे बड़े नेता प्रताप सिंह बाजवा ने पहले से जारी अपनी मुखालफ़त को और तेज़ कर दिया है।
आलाकमान तक पहुंचा मामला
पंजाब में शराब कांड को लेकर इन दिनों कांग्रेस के भीतर ही राजनीति चरम पर है। इस कांड में अब तक 121 लोगों की मौत हो चुकी है और इसकी जिम्मेदारी किसकी है, इसे लेकर पंजाब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद प्रताप सिंह बाजवा ने अमरिंदर के ख़िलाफ़ मोर्चा खोला हुआ है।
कांग्रेस के एक और राज्यसभा सांसद शमशेर सिंह दूलों भी बाजवा के सुर में सुर मिला रहे हैं। अब यह मामला आलाकमान तक पहुंच गया है और उसकी सांसें फूली हुई हैं कि कैसे इस रार को ख़त्म किया जाए।
बाजवा का कहना है कि पंजाब में कांग्रेस को लोगों ने इसलिए वोट दिया था कि उसने नशा मुक्त पंजाब बनाने का वादा किया था। बाजवा के मुताबिक़, अमरिंदर सिह ने 4 हफ़्ते का समय मांगा था लेकिन अब तो 4 साल हो रहे हैं।
बाजवा ने कहा, ‘कुंभकरण 5 महीने बाद अपने घर से निकलकर तरनतारन गया। दूसरा, इनके साथ सुनील जाखड़ हैं जो शकुनि मामा हैं।’ सुनील जाखड़ पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष हैं। कुंभकरण से बाजवा का इशारा अमरिंदर की ओर था और यह शराब कांड अमृतसर के तरनतारन में हुआ है।
सीबीआई, ईडी करे जांच
बाजवा चाहते हैं कि इस मामले में सीबीआई और ईडी के द्वारा जांच कराई जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि आख़िर अमरिंदर सिंह को सीबीआई और ईडी से जांच करवाने में क्या दिक्कत है। बाजवा ने कहा, ‘कैप्टन अमरिंदर सिंह और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जाखड़ को तुरंत उनके पदों से हटाया जाना चाहिए। मैंने आलाकमान से कहा है कि अगर आप कांग्रेस को यहां जिंदा रखना चाहते हैं तो लीडरशिप बदलिए।’
बाजवा और शमशेर सिंह दूलों जैसे ही शराब कांड की सीबीआई जांच की मांग को लेकर राज्यपाल के पास पहुंचे तो यह मामला और बढ़ गया। इस बीच, अमरिंदर सिंह ने पलटवार करते हुए बाजवा को राज्य पुलिस की ओर से मिली सुरक्षा को वापस ले लिया।
बाजवा ने इसके लिए राज्य के डीजीपी दिनकर गुप्ता को पत्र लिखा लेकिन इसका जवाब कैप्टन अमरिंदर सिंह ने दिया। कैप्टन ने जवाब में कहा कि बाजवा का यह पत्र दिखाता है कि वह पूरी तरह हताश और निराश हैं।
अमरिंदर ने कहा कि बाजवा से सुरक्षा वापस लिए जाने का फ़ैसला उन्होंने पंजाब पुलिस के इनपुट्स के आधार पर लिया है। उन्होंने कहा कि बाजवा का डीजीपी पर व्यक्तिगत हमला करना कांग्रेस की संस्कृति के ख़िलाफ़ है।
अमरिंदर ने कहा, ‘अगर बाजवा को मुझ पर या मेरी सरकार पर भरोसा नहीं है तो वह इन बातों को लेकर पार्टी आलाकमान के पास क्यों नहीं जाते। क्या उन्हें आलाकमान पर भी भरोसा नहीं है।’
पंजाब में अमरिंदर सिंह के ख़िलाफ़ बाजवा या शमशेर सिंह दूलों ही नहीं, पूर्व कैबिनेट मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू भी पूरी ताक़त के साथ बग़ावत का झंडा उठाए खड़े हैं।
इन तीनों नेताओं का भी राज्य में अच्छा सियासी आधार है क्योंकि बाजवा के अलावा दूलों भी प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके हैं और सिद्धू पंजाब के हिंदू और सिख मतदाताओं के बीच जाना-पहचाना चेहरा हैं।
बाजवा, दूलों और सिद्धू के समर्थक मंत्रियों व विधायकों ने भी अमरिंदर सिंह की मुसीबतें बढ़ाई हुई हैं। पंजाब में फ़रवरी, 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले यह लड़ाई आगे ही बढ़ेगी क्योंकि ये तीनों ही नेता अमरिंदर सिंह के मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटने तक शांत नहीं बैठने वाले।
बाजवा की सियासी ख़्वाहिश
2017 के विधानसभा चुनाव से पहले बाजवा ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए पार्टी को सत्ता में लाने के लिए बहुत मेहनत की थी और राज्य का मुख्यमंत्री बनने की उनकी सियासी ख़्वाहिश उस वक्त अधूरी रह गई थी, जब आलाकमान ने कैप्टन के हठ के आगे झुकते हुए उनके नाम पर मुहर लगा दी थी। इससे नाराज बाजवा को पार्टी ने राज्यसभा भेज दिया था। लेकिन बाजवा अमरिंदर के ख़िलाफ़ आए दिन मोर्चा खोलते रहे।
कांग्रेस की मुसीबत
कांग्रेस आलाकमान के सामने पंजाब के मामले में भी मुसीबतों का अंबार लगा हुआ है। उसके पास राज्य में अमरिंदर सिंह से बड़े क़द का नेता नहीं है। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 117 में से 77 सीटों पर जीत मिली थी और दस साल से सरकार चला रही अकाली-बीजेपी गठबंधन को सिर्फ़ 18 सीटें हासिल हुई थी। जबकि पहली बार राज्य के सियासी समर में कूदी आम आदमी पार्टी को 22 सीटें हासिल हुई थीं। इस जीत का श्रेय लेने में कैप्टन सफल रहे थे।
हाल ही में नवजोत सिंह सिद्धू की पत्नी के इस बयान से कि अगर बीजेपी अकालियों से नाता तोड़ ले तो पार्टी में वापस जाने को लेकर विचार किया जा सकता है, इससे लग रहा है कि बीजेपी अगर ऐसा करती है तो सिद्धू कांग्रेस छोड़ देंगे। बाजवा व दूलों पार्टी में होते हुए भी पार्टी के साथ नहीं हैं, ऐसे में कांग्रेस आलाकमान करे तो क्या करे। पंजाब का झगड़ा सुलझाना उसके लिए बहुत मुश्किल दिख रहा है।