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किसान आंदोलन: बीजेपी को राजनीतिक नुक़सान का डर!

किसान आंदोलन: बीजेपी को राजनीतिक नुक़सान का डर!

पंजाब के किसानों ने मोदी सरकार को उसके द्वारा लाए गए कृषि क़ानूनों को लेकर सिर के बल खड़ा कर दिया है।

पंजाब के किसानों ने मोदी सरकार को उसके द्वारा लाए गए कृषि क़ानूनों को लेकर सिर के बल खड़ा कर दिया है। इससे जुड़े अध्यादेश आने के बाद से ही उबल रहे पंजाब में कृषि क़ानून बनने के बाद किसान संगठन सड़क पर आ गए। शुरुआत में तो उन्होंने पंजाब तक ही आंदोलन सीमित रखा लेकिन जब मरकज़ी सरकार ने उनकी बात नहीं सुनी तो उन्होंने इसका रूख़ दिल्ली की ओर मोड़ दिया है। 

दिल्ली की हुक़ूमत में बैठी मोदी सरकार को अंदाजा था कि पुलिस की सख़्ती से डरकर किसान वापस लौट जाएंगे लेकिन सारी ताक़त का इस्तेमाल करने, सड़कों को खोदने, आंसू गैस से लेकर पानी की बौछार छोड़ना तक काम नहीं आया और डेढ़ दिन में ही खट्टर सरकार और दिल्ली पुलिस हार मान गई। 

केंद्र सरकार के मंत्रियों की सांसें किसानों के उन बयानों से फूली हुई हैं, जिनमें उन्होंने कहा है कि वे छह महीने का राशन साथ लेकर आए हैं। या तो मोदी सरकार क़ानून वापस ले, वरना वे दिल्ली में ही डेरा डाले रहेंगे।

किसानों के इस जबरदस्त आंदोलन के बाद पंजाब बीजेपी बुरी तरह फंस गई है। राज्य में विधानसभा चुनाव होने में महज सवा साल का वक़्त बचा है। कृषि क़ानूनों को लेकर किसानों के विरोध को देखते हुए बीजेपी की जोड़ीदार शिरोमणि अकाली दल उससे नाता तोड़ चुकी है। 

अकेले चुनाव लड़ने के दावे 

2019 के लोकसभा चुनाव में प्रचंड मोदी लहर के बाद से ही पंजाब बीजेपी ने आसमान के बराबर ऊंचे दावे करने शुरू कर दिए थे कि वह अपने दम पर 2022 का चुनाव लड़ेगी। 2017 के विधानसभा चुनाव में बुरी तरह पस्त हो चुके अकाली दल को उसके नेता छोटे भाई के रोल में आने के लिए भी कहते थे, वरना धमकी दोहराते थे कि उनकी पार्टी अकेले चुनाव लड़ेगी। 

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2017 में बुरी हार 

अकाली दल को इसका अंदाजा था और सुखबीर सिंह बादल इस पर नज़र गड़ाए थे कि बीजेपी और आरएसएस किस तरह हिंदू और शहरी मतदाताओं के बीच घुसपैठ कर रहे हैं। 2017 के चुनाव में अकाली दल को उसके परंपरागत ग्रामीण मतदाताओं का भी भरपूर साथ नहीं मिला था और पहली बार लड़ी आम आदमी पार्टी को 20 सीटें मिली थीं। जबकि अकाली दल-बीजेपी गठबंधन मात्र 18 सीटों पर सिमट गया था। इसमें भी अकाली दल को सिर्फ़ 15 सीट मिली थीं। 

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आलाकमान ने दी अहमियत

अकाली दल के अलग होने के बाद बीजेपी को लगा कि यह सुनहरा मौक़ा है और उसने संगठन के विस्तार का काम शुरू किया। पंजाब में अपनी सरकार बनाने का सपना देखने वाले बीजेपी आलाकमान ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी का विस्तार किया तो पंजाब को पूरी तवज्जो दी। ऐसे राज्य में जहां बीजेपी का बहुत जनाधार नहीं है, वहां राष्ट्रीय महामंत्री और राष्ट्रीय प्रवक्ता जैसे बड़े दायित्व दिए गए। क्रमश: तरूण चुघ और इक़बाल सिंह लालपुरा को इन पदों से नवाज़ा गया। 

लेकिन किसान आंदोलन ने पंजाब बीजेपी के बढ़ते क़दमों को रोक दिया है। पार्टी के लिए ख़ुद का बचाव करना बेहद मुश्किल हो गया है। अकाली दल उसके साथ होता तो भी वह थोड़ा बहुत सामना कर लेती लेकिन अब हालात उसके ख़िलाफ़ जा रहे हैं। 

पंजाब के मुद्दों का असर बाक़ी देश में इसलिए भी होता है क्योंकि ये सूबा अन्न उपजाने, विदेशों तक अपनी धमक होने, किसानों के ताक़तवर होने के लिए भी जाना जाता है।

पंजाब संग सौतेले व्यवहार का आरोप

कृषि क़ानूनों के विरोध में जब पंजाब के किसान सड़क और रेल पटरियों पर बैठे तो मरकज़ी सरकार ने वहां ट्रेनें भेजनी बंद कर दीं। दो महीने तक रेलगाड़ियां और मालगाड़ियां पंजाब नहीं गईं। इस वजह से वहां कोयला नहीं पहुंचा, व्यापार से जुड़ा सामान नहीं पहुंचा और पंजाब सरकार ने कहा कि मोदी सरकार इस सूबे से बदला ले रही है। पंजाब में घंटों के पावर कट लगने लगे और इससे आम बाशिंदों-व्यापारियों को खासी परेशानी हुई। अमरिंदर सरकार ने इसका सीधा जिम्मेदार मोदी सरकार को बताया। 

पंजाब में मजदूरी और उद्योगों में काम करने के लिए हिंदी भाषी राज्यों से बड़ी संख्या में लोग आते हैं। ऐसे में उन्हें भी यह मैसेज दिया जा रहा है कि मोदी सरकार पंजाब के लोगों पर जुल्म कर रही है और इससे बाहर से आकर काम करने वाले लोगों की रोजी-रोटी पर भी असर पड़ रहा है। वे यह मैसेज आगे पहुंचा रहे हैं।

बीजेपी नेता मुश्किल में

अब जब किसानों ने कह दिया है कि इन क़ानूनों के वापस होने तक किसी तरह का कोई समझौता नहीं होगा तो पंजाब बीजेपी के लिए बड़ी मुश्किल खड़ी हो गई है। पंजाब बीजेपी के नेताओं के पास बस गिना-चुना यही जवाब है कि अकाली दल और कांग्रेस किसानों को गुमराह कर रहे हैं और अपनी राजनीति चमका रहे हैं। लेकिन बीजेपी के नेताओं को यह बात समझनी चाहिए कि किसान उनकी इन दलीलों को नहीं सुनना चाहते। 

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बीजेपी के नेता अपने बचाव में कहते हैं कि अमरिंदर सिंह किसानों को भड़का रहे हैं। अगर उनकी बात को माना जाए तो इसका मतलब यह हुआ कि अमरिंदर राज्य में बहुत बड़े जनाधार वाले नेता हैं क्योंकि उनके कहने पर लाखों किसान दिल्ली की ओर बढ़ चले हैं और वह भी तब जब कांग्रेस या अकाली दल इस आंदोलन में शामिल नहीं है और यह विशुद्ध रूप से किसानों का ही आंदोलन है। 

किसानों के आंदोलन में जिस तरह अन्नदाताओं पर लाठियां चली हैं, उससे बीजेपी को पंजाब में खाता खोलना भारी पड़ जाएगा क्योंकि 2017 में भी वह गठबंधन में रहकर 23 सीटों पर लड़कर सिर्फ़ 3 सीटें जीती थी, जबकि मोदी ने बीजेपी की जीत के लिए पूरा जोर लगाया था।

पंजाब बीजेपी भी इस बात को समझती है कि किसान उसके पूरी तरह ख़िलाफ़ हो चुके हैं और जिस तरह का पुलिसिया जुल्म हरियाणा की बीजेपी सरकार ने पंजाब के किसानों पर किया है, उससे राज्य के लोग बेहद नाराज़ हैं क्योंकि पंजाब के हिंदू और सिख समाज में अन्नदाता की बहुत इज्जत है और उस पर लाठियां चलाने वाले अगर लोगों से वोट मांगने जाएंगे तो लोग अपने घरों के दरवाज़े बंद कर लेंगे। 

फिलहाल, ये इतनी बड़ी मुसीबत पंजाब बीजेपी ही नहीं मोदी सरकार के लिए भी हो गई है कि उसे समझ नहीं आता कि इसका हल कैसे निकलेगा। 

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