किसान आंदोलन: हरियाणा जैसा संकट पंजाब बीजेपी में भी!
किसान आंदोलन के बीच जिस तरह की बेचैनी हरियाणा बीजेपी में थी वैसी ही बेचैनी अब पंजाब बीजेपी में भी है। यह बेचैनी कई नेताओं के पार्टी छोड़ने में भी दिखती है और नेताओं के बयानों में भी। सामान्य कार्यकर्ता से लेकर वरिष्ठ नेताओं तक में। बीजेपी के पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष लक्ष्मी कांता चावला के बयान को ही पढ़ लीजिए। उन्होंने शनिवार को कहा कि आंदोलन को इतने लंबे समय तक जारी रखने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए और यदि प्रधानमंत्री चाहते तो एक दिन में समाधान कर सकते हैं। पंजाब बीजेपी से पहले हरियाणा में भी ऐसी हलचल थी और इस मामले में अमित शाह को बैठक करनी पड़ी थी।
किसान आंदोलन के दरमियान ही हरियाणा में बीजेपी-जेजेपी गठबंधन सरकार पर संकट की आशंकाओं के बीच मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर और उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने कहा था कि सरकार पर कोई ख़तरा नहीं है और यह पाँच साल पूरा करेगी। दोनों नेताओं ने यह बात तब कही थी जब वे गृह मंत्री अमित शाह से मिलकर आए थे।
अमित शाह के साथ खट्टर और चौटाला की वह बैठक कृषि क़ानूनों पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद हुई थी। तब सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसले में कृषि क़ानूनों पर तात्कालिक तौर पर रोक लगा दी थी और कमेटी गठित की थी। किसान इन कृषि क़ानूनों को रद्द करने की माँग कर रहे हैं और किसानों के इसी प्रदर्शन के कारण खट्टर सरकार के संकट में होना बताया जा रहा है।
खट्टर सरकार पर संकट के कयास इसलिए लगाए जा रहे थे क्योंकि किसान आंदोलन के बाद हाल में घटनाएँ ही कुछ ऐसी घटीं। अमित शाह की खट्टर और दुष्यंत चौटाला के साथ बैठक हुई थी। दुष्यंत चौटाला भी अपने दल के विधायकों से मिले थे। खट्टर ने भी निर्दलीय विधायकों से मुलाक़ात की। मुख्यमंत्री खट्टर की करनाल में किसान महापंचायत का ज़बरदस्त विरोध हुआ और उनको अपना कार्यक्रम रद्द करना पड़ा था।
अब पंजाब में भी कुछ ऐसी ही हलचल दिख रही है। बीजेपी की वरिष्ठ नेता लक्ष्मी कांता चावला के साथ ही पार्टी के कई नेताओं ने कहा कि किसान आंदोलन को जल्द से जल्द ख़त्म होना चाहिए।
लक्ष्मी कांता चावला ने 'द इंडियन एक्सप्रेस' से कहा, 'एक बीजेपी नेता के रूप में नहीं बल्कि भारत के एक नागरिक के रूप में मुझे लगता है कि कोई भी विरोध इतना लंबा नहीं चलना चाहिए। इसका हल जल्द से जल्द ढूंढा जाना चाहिए था। दिसंबर के मध्य में ठंड या आत्महत्या के कारण मरने वाले किसानों की संख्या 30 तक पहुँच जाने के बाद मैंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी लिखा कि अगर कृषि मंत्री इस मुद्दे को हल करने में सक्षम नहीं हैं तो पीएम को इस मामले को अपने हाथ में लेना चाहिए।'
उन्होंने कहा कि इतने लंबे समय तक आंदोलन के बावजूद शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर किसानों ने दुनिया के सामने एक उदाहरण पेश किया है। उन्होंने कहा, 'किसान 100 प्रतिशत ग़लत नहीं हैं और न ही कृषि क़ानून। ख़ुद प्रधानमंत्री को किसानों के साथ बैठकर इसका हल निकालना चाहिए। मुझे लगता है कि अगर पीएम चाहें तो एक दिन में इसका समाधान निकाला जा सकता है।'
रिपोर्ट के अनुसार, मालवा के एक नेता ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि ऐसी स्थिति के लिए पार्टी की राज्य ईकाई ज़िम्मेदार है। उन्होंने कहा कि राज्य के नेताओं ने दिल्ली में केंद्रीय नेतृत्व को सही तसवीर नहीं बताई। उन्होंने कहा कि जब अध्यादेश लाया गया था तभी किसान विरोध कर रहे थे, अकाली दल टूटा, रेल रोको प्रदर्शन चला लेकिन इस पर ध्यान नहीं दिया गया।
'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार, 15 अक्टूबर को पार्टी से इस्तीफ़ा देने वाले बीजेपी के पूर्व राज्य सचिव मनजिंदर सिंह कांग का कहना है कि राज्य के वरिष्ठ नेतृत्व ने कभी भी आंदोलन को गंभीरता से नहीं लिया। पिछले 10 दिनों में 15 से अधिक बीजेपी नेताओं ने पार्टी छोड़ दी है और वे अकाली दल में शामिल हो गए हैं। उन्होंने कहा, 'मैं कहता रहा कि नेतृत्व आलाकमान को सही फीडबैक नहीं दे रहा है।'
अकाली दल नेता सुखबिर सिंह बादल दावा करते हैं कि आने वाले दिनों में बीजेपी के और नेता उनकी पार्टी में शामिल होंगे।
एक अन्य नेता ने कहा कि यदि कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर किसानों से तब वार्ता की होती जब वे पंजाब में प्रदर्शन कर रहे थे तो किसान संशोधनों तक से संतुष्ट भी हो गए होते।
बीजेपी में बड़ी बेचैनी की एक और वजह है। वह यह कि अगले महीने 15 तारीख़ को ही निकाय चुनाव होने वाले हैं। रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि किसानों के ग़ुस्से के कारण कई बीजेपी नेता चुनाव लड़ने को अनिच्छुक हैं। हाल में राज्य में बीजेपी के कई नेताओं के घरों के बाहर प्रदर्शन हुए हैं। जब कभी वे घरों से बाहर निकले और उन्होंने सार्वजनिक सभाएँ कीं उन्हें प्रदर्शन का सामना करना पड़ा।
पंजाब बीजेपी के सचिव दिनेश कुमार ने पार्टी में असंतोष की ख़बरों को खारिज किया। उन्होंने कहा कि पार्टी की राज्य ईकाई ने कोई भी ग़लती नहीं की है और वह वैसा ही कर रही है जैसा केंद्रीय नेतृत्व कर रहा है। उन्होंने कहा कि हम केंद्रीय नेतृत्व को लगातार फीडबैक देते रहे। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि शुरुआत में विरोध को कांग्रेस ने फंड मुहैया कराया। अब वह इसमें नक्सल व खालिस्तानी लिंक का आरोप लगाते हैं।