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जनता को राजनीतिक दलों के धन का स्रोत जानने का अधिकार नहीं: SC में मोदी सरकार

जनता को राजनीतिक दलों के धन का स्रोत जानने का अधिकार नहीं: SC में मोदी सरकार

सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने कहा है कि जनता को राजनीतिक दलों को ंमिलने वाले फंड के स्रोत जानने का अधिकार नहीं है। हालांकि जनता भी राजनीतिक दलों को चंदा देती है लेकिन उसी जनता को राजनीतिक दलों को मिलने वाले डोनेशन के बारे में जानने का अधिकार नहीं ैहै। सरकार का यह बयान ऐसे समय आया है, जब सुप्रीम कोर्ट मंगलवार से चुनावी बांड की सुनवाई करने जा रहा है। लेकिन सरकार के इस रुख ने उसकी नीयत साफ कर दी है कि वो क्या चाहती है।

भारत के नागरिकों को किसी भी राजनीतिक दल की फंडिंग के संबंध में संविधान के अनुच्छेद 19(1) (ए) के तहत जानकारी का अधिकार नहीं है। भारत सरकार के अटॉर्नी जनरल, आर वेंकटरमणी ने चुनावी बांड मामले में सुप्रीम कोर्ट में दायर बयान में यह बात कही है। अटॉर्नी जनरल के इस बयान का सीधा अर्थ यह है कि केंद्र की मोदी सरकार का चुनावी बांड पर यही रुख है।

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक अटॉर्नी जनरल ने चुनावी बांड योजना को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं के इस तर्क को खारिज कर दिया कि नागरिकों को किसी राजनीतिक दल की फंडिंग के स्रोत के बारे में जानने का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार से चुनावी बांड मामले की सुनवाई शुरू होने जा रही है।

अटॉर्नी जनरल ने कहा-  उम्मीदवारों के आपराधिक इतिहास के बारे में जानने के नागरिकों के अधिकार को बरकरार रखने वाले निर्णयों का यह अर्थ नहीं लगाया जा सकता है कि उन्हें पार्टियों की फंडिंग के बारे में जानकारी का भी अधिकार है। वे फैसले चुनावी उम्मीदवारों के बारे में सूचित करने और जानने के संदर्भ में थे। वो फैसले नागरिकों के "दोषमुक्त उम्मीदवारों को चुनने की पसंद के खास मकसद" को पूरा करते हैं। अटॉर्नी जनरल ने फरमाया-.

जानने के अधिकार की कल्पना खास और सही जानकारी के लिए की गई थी। इसका मतलब यह नहीं है कि व्यापक उद्देश्यों के लिए जानने का अधिकार आवश्यक है। इसलिए, इन निर्णयों को इस रूप में नहीं पढ़ा जा सकता है कि किसी नागरिक को राजनीतिक दल की फंडिंग के संबंध में अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत जानकारी का अधिकार है। यदि अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत कोई अधिकार नहीं है, तो अनुच्छेद 19(2) के तहत उचित प्रतिबंध लगाने का सवाल ही नहीं उठता।


-आर वेंकटरमणी, अटॉर्नी जनरल, भारत सरकार सोर्सः लाइव लॉ

अटॉर्नी जनरल ने अपने बयान में कहा कि चुनावी बांड योजना किसी भी व्यक्ति के मौजूदा अधिकार का उल्लंघन नहीं करती है और इसे संविधान के भाग III के तहत किसी भी अधिकार के प्रतिकूल नहीं कहा जा सकता है। उन्होंने कहा  "जो कानून इतना प्रतिकूल नहीं है उसे किसी अन्य कारण से रद्द नहीं किया जा सकता है। न्यायिक समीक्षा बेहतर या अलग नुस्खे सुझाने के मकसद से राज्य की नीतियों को स्कैन करने के बारे में नहीं है।" 

क्या है चुनावी बांडः केंद्र की मोदी सरकार ने जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 (आरपीए) की धारा 29 सी में 2017 में बदलाव किया और इस योजना को लागू किया। इसके तहत दानकर्ता भुगतान के इलेक्ट्रॉनिक तरीकों का इस्तेमाल करके और केवाईसी करने के बाद चुनिंदा बैंकों से चुनावी बांड खरीद सकता है। राजनीतिक दलों को भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) को इन बांडों के स्रोत का खुलासा करने की जरूरत नहीं है। ये बांड 1,000 रुपये, 10,000 रुपये, 1 लाख रुपये, 10 लाख रुपये या 1 करोड़ रुपये के गुणकों में किसी भी मूल्य पर खरीदा जा सकता है। बांड में दानकर्ता का नाम नहीं होगा। बांड जारी होने की तारीख से 15 दिनों के लिए वैध होगा, जिसके भीतर राजनीतिक दल को इसे भुनाना होगा। आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 13ए के तहत आयकर से छूट के तहत बांड के अंकित मूल्य को एक पात्र राजनीतिक दल द्वारा प्राप्त स्वैच्छिक योगदान के माध्यम से आय के रूप में गिना जाएगा।

बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ 31 अक्टूबर को चुनावी बांड योजना को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई शुरू करेगी। बेंच में भारत के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, बीआर गवई, जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा शामिल हैं। 16 अक्टूबर को, सीजेआई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की 3-जजों की पीठ ने "उठाए गए मुद्दे के महत्व को देखते हुए" मामले को 5-जजों की पीठ के पास भेज दिया था। इससे पहले, CJI चंद्रचूड़ उन याचिकाओं पर सुनवाई करने के लिए सहमत हुए थे - जो 2017 में दायर की गई थीं। याचिकाकर्ताओं ने आग्रह किया था कि मामले की सुनवाई आगामी आम चुनाव से पहले की जाए। आम चुनाव 2024 में होंगे।

सीपीएम और देश के प्रमुख संगठनों ने इलेक्ट्रोल बांड को चुनावी रिश्वत कहा है। सुप्रीम कोर्ट में इस योजना को चुनौती देने वालों में सीपीएम, कॉमन कॉज, एडीआर आदि शामिल है। इसका विरोध करने वालों का कहना है कि यह पूरे चुनावी तंत्र को भ्रष्ट करेगा। दूसरी सबसे आपत्तिजनक बात ये है कि आखिर इसमें सूचनाएं पारदर्शी क्यों नहीं रखी जा रही है। मसलन जनता को यह जानने का अधिकार क्यों नहीं है कि किस उद्योगपति ने या व्यक्ति विशेष ने किस दल को कितना पैसा दिया है। यह नाम क्यों छिपाया जा रहा है।


भारत की सबसे अमीर पार्टी कौन

भारत के चुनाव आयोग द्वारा जारी वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार, भाजपा ने वित्त वर्ष 2021-22 में 1917.12 करोड़ रुपये कमाए, जबकि पिछले वर्ष 752.33 करोड़ रुपये कमाए थे। टेलीग्राफ ने बताया कि यह 155% की वृद्धि है। वित्त वर्ष 2021-22 में टीएमसी ने 545.75 करोड़ रुपये कमाए, जबकि उससे पिछले वर्ष में 74.42 करोड़ रुपये की बहुत छोटी राशि उसे मिली थी। टीएमसी की कमाई देश की सबसे पुरानी कांग्रेस पार्टी से ज्यादा हो गई है। आयोग ने वित्त वर्ष 2021-22 में कांग्रेस की कमाई 541.27 करोड़ रुपये की कमाई दर्ज की है। हालांकि कांग्रेस की कमाई पिछले वित्तीय वर्ष में 285.76 करोड़ रुपये थी।

आठ राष्ट्रीय दलों के पास 2021-22 में कुल मिलाकर 8,829.15 करोड़ रुपये की संपत्ति थी, जो पिछले वित्त वर्ष से 20.98 फीसदी अधिक है। इसमें भाजपा के पास अकेले सबसे अधिक 6,046.81 करोड़ रुपये या कुल का 69 प्रतिशत हिस्सा और फंड है। यह रिपोर्ट एडीआर (Association for Democratic Reforms) की है। 

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