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क्या कम्युनिस्ट पार्टी के असंतुष्ट हैं चीनी प्रदर्शनों के पीछे?

क्या कम्युनिस्ट पार्टी के असंतुष्ट हैं चीनी प्रदर्शनों के पीछे?

चीन में प्रदर्शन क्यों हो रहे हैं और ऐसा करने वाले कौन लोग हैं? क्या सख़्त कोविड लॉकडाउन यानी तालाबंदी की वजह से ही नाराज़गी है और और कुछ वजह भी है?

नवंबर 2022 के अंतिम एक सप्ताह में, पश्चिमी मीडिया ने ज़ीरो कोविड नीति को लेकर चीन में छिटपुट विरोध की सूचनाएँ दीं। तीन कारणों से इन ख़बरों की प्रामाणिकता का पता लगाना बहुत मुश्किल है कि वे नक़ली हैं या असली।

सबसे पहले, देश के विभिन्न हिस्सों में सख़्त तालाबंदी ने आवाजाही को प्रतिबंधित कर दिया है। प्रत्येक पर्यटक की आवाजाही पर बहुत प्रभावी ढंग से नज़र रखी जाती है और उन्हें यात्रा की कोई स्वतंत्रता नहीं होती है। दूसरे, भाषा की बाधा और सोशल मीडिया प्लैटफ़ॉर्म जो चीनी भाषा मंदारिन आधारित ऐप बाइडू है और जिसका मुख्य सर्वर देश के भीतर है और उस पर कड़ी निगरानी की जाती है। और तीसरा, अक्टूबर 2022 के पहले सप्ताह को याद करें, पश्चिमी मीडिया ने चीन के राष्ट्रपति  शी जिनपिंग के मीडिया की नज़रों से ग़ायब होने पर संभावित सत्ता परिवर्तन के बारे में बात की थी। उनके हाउस अरेस्ट, सैन्य तख़्तापलट, बीजिंग की ओर सशस्त्र वाहनों की आवाजाही, पीएलए में विद्रोह और बीजिंग में अंतरराष्ट्रीय उड़ानों को रद्द करने सहित कई फ़र्ज़ी वीडियो प्रसारित किए थे। सभी सोशल मीडिया की ख़बरें फ़र्ज़ी और प्रेरित साबित हुए। इसलिए, इन फ़र्ज़ी ख़बरों से भरी मीडिया सामग्री वास्तविक समय में स्थिति का आकलन करना मुश्किल बना दे रही है।

राजनीतिक असंतोष और सार्वजनिक अशांति

16 अक्टूबर से 22 अक्टूबर 2022 तक बीजिंग में आयोजित चीनी कम्युनिस्ट पार्टी यानी सीसीपी की 20वीं राष्ट्रीय कांग्रेस में बैठक स्थल के पास सत्तारूढ़ गुट के विरोध में कुछ पोस्टरों की सूचना मिली थी। सबसे महत्वपूर्ण दृश्य सीसीपी के पूर्व महासचिव (2002 - 2012) और चीन के पूर्व राष्ट्रपति (2003-2013) हू जिनताओ का सभा से निष्कासन था। इसे लाइव दिखाया गया क्योंकि कार्यक्रम स्थल पर विदेशी मीडिया मौजूद था।

हू जिनताओ के बाहर जाने के वास्तविक कारण अभी अस्पष्ट  हैं। कड़ियों को जोड़ते हुए अब तक यह बात सामने आई है कि आर्थिक संकट से जूझ रहा चीन बहुआयामी कारणों से आंतरिक उथल-पुथल का सामना कर रहा है। शी जिनपिंग ने भले ही अपने लिए तीसरा अभूतपूर्व कार्यकाल हासिल कर लिया हो, लेकिन वे कम्युनिस्ट पार्टी के चार प्रमुख समूहों में से केवल एक गुट के नेता हैं।

पहले समूह के नेताओं को शंगहाई समूह के रूप में जाना किया जाता है। यह शहरी इलाक़ों में असर रखने वाले नेताओं का समूह है। कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव (1989-2003) और चीनी राष्ट्रपति (1993-2003) जियांग जेमिन की अध्यक्षता में इस समूह को तंग शियाओपिंग की औद्योगीकरण, सुधारों की नीतियों को आगे बढ़ाने का श्रेय दिया जाता है।

दूसरा समूह चीनी यूथ लीग समूह के रूप में जाना जाता है और यह ग्रामीण क्षेत्रों की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करता है। 'लाल लालटेन' के वाहक इस समूह का प्रतिनिधित्व हू जिनताओ कर रहे थे।

हू जिनताओ कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव (2002 -2012) और चीन के राष्ट्रपति (2003-2013) रह चुके हैं। इस समूह ने ग्रामीण क्षेत्रों की समस्याओं को दूर करने के प्रयासों की दिशा में काम किया। ग्रामीण इलाक़ों में रहने वाले लोगों ने महसूस किया कि पिछले शासन ने उनकी आकांक्षाओं को नज़रअंदाज़ करते हुए सारे राष्ट्रीय प्रयास तटीय शहरी क्षेत्रों के औद्योगीकरण और विकास में झोंक दिए थे। शी जिनपिंग को भी इसी ग्रुप का हिस्सा माना जाता था।

लेकिन 20वीं पार्टी कांग्रेस में, शी जिनपिंग ने यूथ लीग समूह के शीर्षस्थ नेताओं को हटाकर अपने वफ़ादारों का एक नया समूह बना लिया जो अब शीर्ष पर है। तीसरे समूह के रूप में इसका जन्म हुआ है।

और चौथा समूह उन लोगों का है जो इन तीन में से किसी ग्रुप में नहीं हैं यानी तटस्थ हैं और राजनीतिक घटनाओं पर नज़र रखते हुए अपना रुख़ तय करते हैं।

फ़िलहाल ऐसा लग रहा है कि मौजूदा प्रदर्शनों में शी के विरोधी शंगहाई ग्रुप और लाल लालटेन के अनुयायियों का हाथ है। आज के प्रदर्शन तियानमेन चौक प्रदर्शन (15 अप्रैल 1989-04 जून 1989) से काफ़ी अलग हैं। अलग दो मायनों में। पहला, तब का प्रदर्शन केवल एक स्थान -  बीजिंग शहर के पर्यटक स्थल तियानमेन चौक तक सिमटा हुआ था जबकि आज के प्रदर्शन सारे देश में हो रहे हैं। दो, तब के प्रदर्शन का नेतृत्व कुछ परिचित छात्र नेता या असंतुष्ट कर रहे थे किन्तु वर्तमान आंदोलन में कोई स्पष्ट नेतृत्व नहीं नज़र आ रहा। कारण शायद यह कि कोई भी राजनीतिक नेता अपनी जान जोखिम में नहीं डालना चाहता।

कोविड के बहाने असंतुष्टों का सफ़ाया

चीन में सख़्त जीरो कोविड प्रोटोकॉल पर इतना शोर क्यों है?  इसके तीन संभावित कारण हो सकते हैं।

सबसे पहले, चीनी नागरिकों को हर दूसरे दिन कोविड परीक्षण से गुज़रना पड़ता है। हो सकता है कि उन्होंने रोग के ख़िलाफ़ अपने शरीर में प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर ली हो, लेकिन वायरस के बचे-खुचे अंश की उपस्थिति को पॉज़िटिव मानते हुए उस व्यक्ति पर ही नहीं, पूरे आवासीय क्षेत्र में निषेधाज्ञा लागू कर दी जाती है। 

ज़ीरो कोविड नीति के तहत चीनी नागरिकों को बाहर निकलने से रोकने के लिए घरों की घेराबंदी की जा रही है।

दूसरा, चीन में बनी वैक्सीन (जिसे सिनोवैक कहा जाता है) बेअसर रही है। चीन ने विदेशी चिकित्सा कंपनियों को उनका टीका चीन में बेचने की अनुमति नहीं दी है। वैज्ञानिक परीक्षण में जहाँ दुनिया के बाक़ी टीके 70 से 80 प्रतिशत कारगर पाए गए हैं, वहीं सिनोवैक की शक्ति केवल 30 प्रतिशत आँकी गई है। एक तरह से देश महामारी नियंत्रण में विफल सिद्ध हुआ है। यहाँ तक कि चीन के राष्ट्रपति भी शंघाई सहयोग संगठन शिखर सम्मेलन (15 सितंबर 2022) में शारीरिक संपर्क से बचते हुए देखे गए।

नाराज़गी का तीसरा कारण सबसे महत्वपूर्ण है। नागरिकों के लिए अनिवार्य रूप से एक ऐप उपयोग करने का आदेश दिया गया है। किसी भी नागरिक के घर से बाहर निकलने पर, सरकारी कर्मचारी ऐप की मदद से उसकी स्वास्थ्य संबंधी जानकारी का आकलन करते हैं। यह मोबाइल ऐप प्रत्येक नागरिक की गतिविधि को ट्रैक करता है और अब वहाँ कुछ भी व्यक्तिगत नहीं है। सोशल मीडिया पर नागरिकों की बातचीत और गतिविधियों पर भी कड़ी निगरानी रखी जाती है। चीन में सभी पश्चिमी सोशल मीडिया साइटों जैसे ट्विटर, यूट्यूब, फेसबुक और अन्य पर प्रतिबंध हैं, फिर भी, असंतुष्ट वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क (वीपीएन) का सहारा लेकर अपना काम निकाल रहे हैं।

कुछ लोगों को आशंका है कि सख़्त कोविड प्रोटोकॉल को लोगों का जीवन बचाने के लिए नहीं बल्कि अपने नागरिकों की स्वतंत्रता को कम करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।

लोगों की नाराज़गी को देखते हुए प्रशासन ने कोविड प्रतिबंधों में कुछ ढील देना शुरू कर दिया है। यूनिवर्सिटियाँ भी ख़ाली कराई जा रही हैं। सड़कों पर पुलिस आ गई है और विरोध में भाग लेने वाले छात्रों से पूछताछ भी की जा रही है। फलतः कल से नए विरोधों की तस्वीरें या ख़बरें भी नहीं आ रही हैं।

ऐसे में जिन लोगों को लग रहा था कि कोविड प्रतिबंधों का विरोध कर रहे चीनियों ने असंतोष की जो चिनगारी जलाई है, वह देश में लोकतंत्र लाने के लिए मशाल का काम करेगी, वे एक बार फिर निराश होते दिख रहे हैं। 

लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि चीन अब शांत होकर चुप हो जाएगा। पिछले कुछ सालों से चीन में जो आर्थिक गिरावट दिख रही है, उसका असर देश और लोग महसूस कर रहे हैं। जब पेट में आग लगती है तो कमज़ोर-से-कमज़ोर व्यक्ति भी चीख उठता है। ऐसे में विरोध के अगले स्वर कहीं-न-कहीं से उभरेंगे ज़रूर। कब और कहाँ से, कहना मुश्किल है।

(लेखक परिचय: राजीव श्रीवास्तव रक्षा विश्लेषक हैं। रोहित शर्मा अंतरराष्ट्रीय संबंध विश्लेषक हैं।)

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