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पेगासस- फ्रांस में जाँच शुरू; भारत में जासूसी के आरोप खारिज क्यों?

पेगासस- फ्रांस में जाँच शुरू; भारत में जासूसी के आरोप खारिज क्यों?

जिस पेगासस स्पाइवेयर से भारत में नेताओं, पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, जजों की जासूसी कराए जाने के आरोपों को सिरे से खारिज किया जा रहा है उसी पेगासस से कई फ्रांसिसी पत्रकारों की जासूसी के आरोपों पर फ्रांस में जाँच शुरू की गई है। 

जिस पेगासस स्पाइवेयर से भारत में नेताओं, पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, जजों की जासूसी कराए जाने के आरोपों को सिरे से खारिज किया जा रहा है उसी पेगासस से कई फ्रांसिसी पत्रकारों की जासूसी के आरोपों पर फ्रांस में जाँच शुरू की गई है। न्यूज़ एजेंसी एएफ़पी की रिपोर्ट के अनुसार पेरिस में अभियोजकों ने मंगलवार को कहा कि उन्होंने आरोपों की जाँच शुरू कर दी है कि मोरक्को की खुफिया सेवाओं ने कई फ्रांसीसी पत्रकारों की जासूसी करने के लिए इजरायली पेगासस का इस्तेमाल किया था। खोजी पत्रकारिता करने वाली वेबसाइट मीडियापार्ट ने सोमवार को क़ानूनी शिकायत दर्ज कराई थी। मीडियापार्ट का भी एक पत्रकार उन पत्रकारों में शामिल है जिन्हें फ़्रांस में निशाना बनाया गया है। 

फ़्रांस से ऐसी ख़बर तब आई है जब भारत में सरकार यह मानने को बिल्कुल भी तैयार नहीं है कि पेगासस से कोई निगरानी की गई है, किसी जाँच के आदेश देने की तो बात ही दूर है। बीजेपी के प्रवक्ता तो टीवी डिबेट में विपक्ष को चुनौती दे रहे हैं कि यदि किसी को गड़बड़ लगता है तो एफ़आईआर दर्ज क्यों नहीं करा रहे हैं। ख़ुद गृह मंत्री अमित शाह क्रोनोलॉजी समझा रहे हैं। उन्होंने सोमवार को कहा था कि इसकी 'क्रोनोलॉजी समझिए'।

अमित शाह ने कहा कि उस रिपोर्ट के लीक होने का समय और संसद में व्यवधान को जोड़कर देखने की ज़रूरत है। उन्होंने कहा, 'यह एक विघटनकारी वैश्विक संगठन है जो भारत की प्रगति को पसंद नहीं करता है। वे नहीं चाहते कि भारत प्रगति करे।'

केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने सोमवार को सरकार का पक्ष रखते हुए लोकसभा में कहा था कि डाटा का जासूसी से कोई संबंध नहीं है। उन्होंने कहा था कि केवल देशहित व सुरक्षा के मामलों में ही टैपिंग होती है, जो रिपोर्ट मीडिया में आई है, वो तथ्यों से परे और गुमराह करने वाले हैं। 

सरकार की ओर से यह सफ़ाई तब आ रही है जब 'द गार्डियन', 'वाशिंगटन पोस्ट' और 'द वायर' जैसे मीडिया संस्थानों ने दुनिया भर में क़रीब 50 हज़ार फ़ोन को पेगासस से निशाना बनाए जाने की ख़बर दी है।

'द वायर' ने एक रिपोर्ट में कहा है कि क़रीब 300 भारतीयों को निशाना बनाया गया है। इनमें पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, वकीलों, विपक्षी दलों के नेताओं, जजों आदि को निशाना बनाया गया है। इसी को लेकर पूरा विपक्ष संसद के मानसून सत्र में हंगामा कर रहा है। 

कांग्रेस ने तो इस मामले में संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी से जाँच कराए जाने की मांग की। कांग्रेस प्रवक्ता शक्तिसिंह गोहिल ने कहा कि सरकार को स्पष्ट रूप से बताना चाहिए कि उसने पेगासस स्पाइवेयर खरीदा है या नहीं और इस संबंध में संयुक्त संसदीय जांच करानी चाहिए। उन्होंने कहा कि हमने फोन टैपिंग के मुद्दे पर राष्ट्रीय सुरक्षा और संविधान के तहत मौलिक अधिकारों के उल्लंघन पर चर्चा करने के लिए राज्यसभा और लोकसभा दोनों में कार्यस्थगन नोटिस दिया था। कांग्रेस के अलावा टीएमसी, शिवसेना, सपा और बसपा जैसी पार्टियों ने भी जेपीसी की मांग की। 

ख़ुद बीजेपी सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने भी पेगासस की निगरानी को लेकर सचेत किया है। स्वामी ने ट्वीट किया, 'यह समझदारी होगी यदि गृह मंत्री संसद को बताएँ कि मोदी सरकार का उस इजराइली कंपनी से कोई लेना-देना नहीं है, जिसने हमारे टेलीफोन टैप और टेप किए हैं। ऐसा नहीं हुआ तो वाटरगेट की तरह सच सामने आएगा और यह हलाल जैसा बीजेपी को नुक़सान करेगा।'

कांग्रेस ने एक दिन पहले ही एनएसओ के स्पाइवेयर पेगासस को लेकर खुलासे के बाद आरोप लगाया था कि मोदी सरकार लोगों के बेडरूम में झांक रही है और जासूसी कर रही है। उसने सीधे-सीधे आरोप लगाया कि मोदी सरकार ने देशद्रोह किया है और उसने राष्ट्रीय सुरक्षा से खिलवाड़ किया है।अब तो इस मामले ने इतना तूल पकड़ लिया है कि संसद का सत्र शुरू हुए दो दिन हो गए हैं, लेकिन लगातार हंगामा जारी है और इस वजह से बार-बार दोनों सदनों को स्थगित करना पड़ रहा है। विपक्ष संतुष्ट नहीं है। वह जाँच की मांग कर रहा है। ऐसे हालात के बीच सरकार की ओर से विपक्ष को ठोस आश्वासन मिलता नहीं दिख रहा है। क्या जाँच की मांग सरकार मानेगी?

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