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प्रियंका के आने से बीजेपी और सपा-बसपा गठबंधन को भी होगी मुश्किल

प्रियंका के आने से बीजेपी और सपा-बसपा गठबंधन को भी होगी मुश्किल

चुनाव से ठीक पहले राहुल गाँधी ने प्रियंका गाँधी को महासचिव बनाकर 'मास्टर स्ट्रोक' खेला है। अगले कुछ दिनों में दूसरे दलों के नेताओं के कांग्रेस में शामिल होने की उम्मीद है।

तीन राज्यों में जीत के बाद पहली बार यूपी पहुँचे कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने स्वागत के लिए उमड़े नेताओं से कहा, सरप्राइज आने वाला है। अगले कुछ ही मिनटों में प्रियंका गाँधी को पार्टी संगठन में औपचारिक प्रवेश देते हुए उन्हें राष्ट्रीय महासचिव के साथ पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी नियुक्त करने का आदेश जारी कर दिया गया। प्रियंका के साथ ही मध्य प्रदेश में जीत के नायकों में से एक ज्योतिरादित्य सिंधिया को पश्चिमी उत्तर प्रदेश का प्रभार दिया गया है। 

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कांग्रेस अध्यक्ष के इस फ़ैसले पर जहाँ बीजेपी ने इसे पार्टी के भीतर का मामला बताया, वहीं गठबंधन से उत्साहित सपा-बसपा नेताओं के माथे पर लकीरें साफ़ दिखीं। हालाँकि आज ही राहुल ने कहा कि जहाँ भी संभावना होगी, वह सपा-बसपा के साथ सहयोग करने के लिए तैयार हैं। उन्होंने साफ़ किया कि प्रियंका और ज्योतिरादित्य को उत्तर प्रदेश केवल लोकसभा चुनावों में दो महीने के लिए नहीं भेजा गया है बल्कि उन्हें यहाँ लंबे समय तक टिक कर पार्टी को मजबूत करने का जिम्मा दिया गया है।

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बड़ी घोषणाएँ करेंगे राहुल 

सपा-बसपा गठबंधन में मामूली कोना दिए जाने लायक भी न समझी गई कांग्रेस के लिए यह 'मास्टर स्ट्रोक' से कम नहीं है कि जहाँ प्रियंका पूर्वी यूपी की 34 सीटों पर टिक कर विजय की राह तलाशेंगी, वहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 18 लोकसभा सीटों पर जोर-आजमाइश करेंगे। कांग्रेस नेताओं की मानें तो अगले महीने न केवल राहुल गाँधी कई महत्वपूर्ण घोषणाएँ कर सकते हैं बल्कि उत्तर प्रदेश को लेकर कुछ नायाब चालें भी चल सकते हैं।

राहुल की नज़र उत्तर प्रदेश की उन 38 सीटों पर है जहाँ 2009 के लोकसभा चुनाव में या तो कांग्रस जीती थी या दूसरे नंबर पर रही थी।

बड़े नेता होंगे कांग्रेस में शामिल

कांग्रेस नेताओं के मुताबिक़, अब सरप्राइज पैकेज के अगले हिस्से में फरवरी के पहले हफ़्ते से प्रदेश के कद्दावर नेताओं की पार्टी में ज्वाइनिंग शुरू होगी। आने वाले दिनों में पूर्व मंत्री अंबिका चौधरी, पूर्व सांसद कैसर जहाँ, पूर्व विधायक जासमीर अंसारी, शब्बीर वाल्मीकि, राकेश सिंह राना, पूर्व मंत्री रामहेत भारती, पूर्व केंद्रीय कैबिनेट मंत्री रामलाल राही, यूपी के मंत्री रहे आर.के. चौधरी सहित बड़ी संख्या में अन्य दलों के नेता कांग्रेस का हाथ थाम सकते हैं।

दरअसल, गठबंधन के बाद समाजवादी और बहुजन समाज पार्टी (सपा-बसपा) में नो पोचिंग एग्रीमेंट यानी एक-दूसरे के नेता न तोड़ने का क़रार हो जाने के बाद चुनाव लड़ने के इच्छुक नेताओं का कांग्रेस मुफ़ीद ठिकाना बन सकती है।

सपा-बसपा गठबंधन से बेचैन तमाम नेताओं के साथ ही भारतीय जनता पार्टी के असंतुष्टों सहित आगामी चुनाव में टिकट कटने की भनक पा चुके कुछ वर्तमान सांसद कांग्रेस में जाने की राह पर हैं।

बीते कई सालों से लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे सपा-बसपा के कद्दावर नेता अपने टिकट को लेकर उहापोह में हैं। गठबंधन के बाद साफ़ है कि बड़ी तादाद में इन दोनों पार्टियों के नेताओं को या तो चुप बैठना होगा या कहीं और ठिकाना तलाशना होगा।

जल्द कांग्रेसी बनेंगे अंबिका चौधरी

सपा के कद्दावर नेता रहे और पिछले विधानसभा चुनावों से ठीक पहले बसपा में जाने वाले पूर्व मंत्री अंबिका चौधरी की बात क़रीब-क़रीब कांग्रेस में फ़ाइनल हो चुकी है। अंबिका चौधरी पिछला विधानसभा चुनाव बलिया जिले की फेफना सीट से बसपा के टिकट पर लड़े थे। 

बीते काफ़ी समय से चौधरी, बसपा की बैठकों से नदारद हैं। उन्होंने पहले तो सपा में वापसी की भी जुगत भिड़ाई थी पर सपा-बसपा गठबंधन के बाद यह रास्ता भी बंद हो गया है। कांग्रेस के कुछ नेताओं का मानना है कि अब उनकी औपचारिक ज्वाइनिंग किसी भी दिन हो सकती है। अंबिका चौधरी को कांग्रेस बलिया लोकसभा सीट से प्रत्याशी के तौर पर उतार सकती है।

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सपा से विधान परिषद के सदस्य रहे और पूर्व में लखनऊ विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे राकेश सिंह राणा की भी कांग्रेस में जाने की बात तय हो चुकी है। सूत्रों के मुताबिक़, राना की राहुल गाँधी से जल्दी मुलाक़ात होगी जिसके बाद उनकी औपचारिक एंट्री होगी। राणा ने हालाँकि लोकसभा चुनाव लड़ने की इच्छा नहीं जताई है।

असहज महसूस कर रहे नरेश 

रामविलास पासवान की तरह उत्तर प्रदेश में 'मौसम वैज्ञानिक' का खिताब पा चुके नरेश अग्रवाल भी बीजेपी में असहज महसूस कर रहे हैं। नरेश का रुख भी इन दिनों कांग्रेस को लेकर नरम पड़ा है। कांग्रेस से अपनी राजनीति की शुरुआत करने वाले नरेश बाद में अपनी पार्टी लोकतांत्रिक कांग्रेस बनाकर अलग हुए थे और अब तक सपा-बसपा का सफ़र तय कर फ़िलवक़्त बीजेपी में हैं।

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नरेश अपने गृह ज़िले में बीजेपी में तवज्जो न मिलने से नाराज़ हैं। ऊपर से उनके विधायक पुत्र नितिन अग्रवाल को अब तक मंत्री भी नहीं बनाया गया है। नरेश के गृह जिले में उनके प्रतिद्वंदी रहे अशोक बाजपेयी के बीजेपी में आकर विधान परिषद पहुँचने के बाद वह और ज़्यादा परेशान हैं। हाल ही में हरदोई के बीजेपी सांसद अंशुल वर्मा ने पासी सम्मेलन में नरेश अग्रवाल पर मंदिर परिसर में शराब बँटवाने का आरोप लगाकर सनसनी मचा दी थी।

बहराइच से सपा विधायक रहे शब्बीर वाल्मीकि भी वहाँ से बीजेपी सांसद सावित्रीबाई फुले की पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव से बढ़ती नजदीकियों को लेकर नाराज़ हैं। बीते लोकसभा चुनाव में बहराइच से दूसरे स्थान पर रहे शब्बीर वाल्मीकि भी इस बार टिकट के लिए कांग्रेस का दामन थाम सकते हैं।

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इसी ज़िले की कैसरगंज लोकसभा सीट पर पिछले लोकसभा चुनाव में तीन लाख वोट पाकर बीजेपी के ब्रजभूषण शरण सिंह से हारने वाले सपा के पूर्व विधायक व मंत्री पंडित सिंह भी कांग्रेस के पाले में आ सकते हैं। पंडित सिंह कैसरगंज से सपा के टिकट के दावेदार हैं पर इस सीट के बसपा के खाते में जाने की संभावना जताई जा रही है।

फ़रवरी में होंगी रैलियाँ 

उत्तर प्रदेश कांग्रेस के एक प्रमुख नेता का कहना है कि फ़रवरी के पहले हफ़्ते में राहुल गाँधी की रैलियों के सिलसिले के साथ कई बड़े और कद्दावर नेताओं के भी शामिल होने की शुरुआत होगी। उनका कहना है कि लोकसभा चुनाव लड़ने के इच्छुक कई बड़े सपा-बसपा नेता कांग्रेस का दामन थामे दिख सकते हैं।

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