प्रियंका की राजनीति क्या कांग्रेस को सत्ता में लायेगी?
क्या प्रियंका गांधी ने यूपी चुनाव में खेला करने का मन बना लिया है? क्या प्रियंका गांधी यूपी की सियासत में 32 साल से सत्ता से बाहर कांग्रेस के सूखे को ख़त्म कर सकती हैं? तीन दशक में पार्टी का जनाधार लगभग ख़त्म हो चुका है। कुल 21 में से 11 मुख्यमंत्री देने वाली कांग्रेस पार्टी को पिछले लोकसभा चुनाव में केवल 6 फ़ीसदी वोट और केवल एक सीट प्राप्त हुई थी।
आज़ादी के बाद 1989 तक लगभग एकछत्र राज करने वाली पार्टी के पास दलित, मुसलिम और ब्राह्मण वोटों का मज़बूत जनाधार होता था। लेकिन सपा, बसपा और बीजेपी की राजनीति ने उसके जनाधार को छीन लिया है। आज कांग्रेस के पास किसी जाति या अल्पसंख्यक समुदाय का स्थाई जनाधार नहीं है। ऐसे में सवाल उठता है कि जाति और धर्म की प्रयोगशाला माने जाने वाले देश के सबसे बड़े सूबे में कांग्रेस कैसे खड़ी हो सकती है? क्या प्रियंका के एक्टिविज़्म और जुझारुपन से कांग्रेस को संजीवनी मिल सकती है?
जाहिर है प्रियंका की लड़ाका छवि और नेहरू गाँधी परिवार का वारिस होने के कारण उन्हें मीडिया में ख़ूब प्रचार मिलता है। उनके संघर्षशील व्यक्तित्व पर इंदिरा गाँधी की छवि और अभिजात सौंदर्य ख़ूब फबता है। लेकिन टीआरपी जुगाड़ू मीडिया में प्रियंका गांधी के दिखने मात्र से कांग्रेस मज़बूत नहीं हो सकती। प्रियंका के प्रति लोगों की हमदर्दी कांग्रेस के लिए वोट की गारंटी नहीं हो सकती। ऐसे में सवाल उठता है कि कांग्रेस आलाकमान प्रियंका गांधी को यूपी की कमान सौंपकर, क्या जोखिम उठा रहा है? प्रियंका गांधी को सबसे मुश्किल प्रदेश की प्रभारी क्यों बनाया गया है? क्या प्रियंका के पास कांग्रेस को मज़बूत बनाने का कोई ब्लूप्रिंट है?
प्रियंका गांधी ने 40 फ़ीसदी महिलाओं को टिकट देने के एलान के साथ नारा दिया, 'मैं लड़की हूँ, लड़ सकती हूँ।' यह नारा तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। इसके बाद एक नारा और आया। 'वादे ही नहीं, इरादे भी हैं।' ये इरादे क्या हैं?
प्रियंका ने एलान किया है कि कांग्रेस की सरकार बनने पर इंटर पास लड़कियों को स्मार्ट फोन और स्नातक लड़कियों को स्कूटी दी जाएगी। प्रियंका इन नारों और वादों के मार्फ़त अपनी पार्टी का और आने वाले चुनाव का एजेंडा सेट कर रही हैं।
दरअसल, 15 करोड़ मतदाताओं वाले प्रदेश में 7 करोड़ महिलाएँ हैं। प्रियंका गांधी की नज़र इसी आबादी पर है। प्रियंका जाति और धर्म से परे लैंगिक सवाल को बुलंद करना चाहती हैं। यूपी में पिछले दो दशक में जाति और धर्म की राजनीति परवान चढ़ चुकी है।
वह जानती हैं कि इन क्षेत्रों पर उनका दावा नहीं हो सकता। जातिगत उत्पीड़न पर प्रियंका लगातार सक्रिय हैं लेकिन उन्हें मालूम है कि दलितों की राजनीति पर मायावती का दावा है। इसी तरह सपा के बरक्स पिछड़ों की राजनीति की स्वाभाविक दावेदार कांग्रेस नहीं हो सकती। कांग्रेस पार्टी बीजेपी की हिंदुत्व की पिच पर भी बैटिंग नहीं कर सकती। इस समय अल्पसंख्यक राजनीति के अपने जोखिम हैं। इसलिए प्रियंका स्त्री उत्पीड़न, असमानता और भेदभाव के मुद्दों पर अधिक मुखर हैं।
एक स्त्री होने के नाते इन मुद्दों पर उनकी नाराज़गी और जुझारुपन जाहिर तौर पर आधी आबादी को बहुत आकर्षित करता है। इसकी बानगी भी देखने को मिल रही है। बनारस में एक महिला पुलिसकर्मी से उनके मिलने की तसवीरें ख़ूब वायरल हुई हैं। अरुण वाल्मीकि की पुलिस हिरासत में हुई मौत के बाद उसके परिवार से मिलने आगरा जाते हुए रास्ते में कुछ महिला पुलिसकर्मियों की सेल्फी की तसवीरें चर्चे में हैं। महिला पुलिसकर्मियों के प्रियंका के साथ सेल्फी लेने से भयभीत योगी सरकार ने उनके ख़िलाफ़ जाँच बैठा दी है। ठीक उसी दिन लखनऊ के 1090 चौराहे पर दुर्घटना में घायल एक लड़की की मलहम पट्टी करते हुए प्रियंका का वीडियो वायरल हुआ।
The Compassion &
— Srinivas BV (@srinivasiyc) October 20, 2021
Sensitivity can heal
any wound❤️. pic.twitter.com/wg1SJCKjTR
ऐसा लगता है कि प्रियंका ने यूपी की सियासत का रंग बदलने की ठान ली है। प्रियंका भगवा राजनीति को पिंक यानी गुलाबी रंग में रंगना चाहती हैं। गुलाबी लड़कियों का रंग माना जाता है। क्या यह रंग यूपी की सियासत पर चढ़ेगा? यह रंग जितना ही चटख होगा, भगवा उतना ही फीका होगा। यद्यपि भगवा त्याग और तप का प्रतीक है लेकिन इन दिनों यह भय और आतंक का प्रतीक बन गया है। गुलाबी रंग प्रेम का प्रतीक है। प्रेम यानी सौहार्द। यह रंग 'जितनो चोखो होएगो, उतनो ही मन को भायगो!'
भाजपाई प्रवक्ता प्रियंका की राजनीति को 'पर्यटन की राजनीति' कहते हैं। लेकिन प्रियंका स्त्री उत्पीड़न के मुद्दों पर हमेशा संघर्ष करती रही हैं। उन्नाव बलात्कार पीड़िता से लेकर हाथरस में दलित लड़की के बलात्कार और हत्या पर उन्होंने मोदी-योगी सरकार को घेरा। इसी तरह सोनभद्र के उंभा में लड़की की हत्या के ख़िलाफ़ उन्होंने संघर्ष किया। खेतों की पगडंडियों पर चलते और गलियों- नालियों को फांदते हुए प्रियंका महिलाओं को न्याय के लिए लड़ने का भरोसा देती हैं। उन्हें ढाढस बंधाती हैं।
पिछले दिनों पंचायत अध्यक्ष चुनाव में भाजपाइयों द्वारा समाजवादी पार्टी की एक महिला सदस्य की साड़ी खींचने का वीडियो वायरल हुआ था। लखीमपुर की इस महिला से मिलने प्रियंका जाती हैं। उसके साथ खड़ी होती हैं।
इलाहाबाद में निषादों की नावें तोड़ने से लेकर लखीमपुर खीरी में किसानों को कुचलने और आगरा में अरुण वाल्मीकि की पुलिस हिरासत में हुई मौत के मामले में प्रियंका ने विपक्ष की उल्लेखनीय भूमिका अदा की है। इन तमाम घटनाओं में प्रियंका पीड़ित परिवारों के घर जाकर महिलाओं से बेहद सहज और आत्मीय भाव से मिलती हैं। उनका दुख दर्द बाँटती हैं, न्याय दिलाने का वादा करती हैं। इसके लिए वह सड़क पर जूझती नज़र आती हैं, हिरासत में रहती हैं।
उनकी यह राजनीति बेहद सराहनीय है। दरअसल, यह बहनापे की राजनीति है। इस मर्दवादी नफ़रत और हिंसक राजनीति के दौर में प्रियंका प्रेम, सौहार्द और आत्मीयता को पोसने वाली राजनीति कर रही हैं।