नेहरू से लेकर प्रियंका तक, कांग्रेस में नेहरू-गाँधी परिवार
लोकसभा चुनाव 2019 से पहले कांग्रेस ने प्रियंका गाँधी को बड़ी जिम्मेदारी देते हुए महासचिव बना दिया है। इस तरह नेहरू-गाँधी परिवार के एक और सदस्य की कांग्रेस में एंट्री हो गई है। कांग्रेस में नेहरू-गाँधी परिवार ने कब-कब पार्टी अध्यक्ष की कुर्सी संभाली और इसे लेकर क्या विवाद हुए, आइए जानते हैं।
यूपी में क्या होगा : प्रियंका के आने से बीजेपी और सपा-बसपा गठबंधन को भी होगी मुश्किल
बीजेपी ने कहा : राहुल गाँधी फ़ेल, इसलिए प्रियंका को लाया गया : बीजेपी
आज़ादी से पहले मोती लाल नेहरू 1919 और 1928 में कांग्रेस के अध्यक्ष बने। पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू 1936 में और फिर आज़ादी के बाद 1951 से लेकर 54 तक कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष रहे। नेहरू ने जब 1959 में इंदिरा गाँधी को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया तो कई नेताओं ने उन पर परिवारवाद का भी आरोप लगाया। इंदिरा 1959-60 तक कांग्रेस की अध्यक्ष रहीं।
रैली का इंतज़ार : लखनऊ में 10 फ़रवरी को प्रियंका गाँधी की रैली
राहुल के नये तेवर : बैकफ़ुट नहीं, फ्रंटफ़ुट पर खेलेंगे
सन 1966 में लाल बहादुर शास्त्री की मौत के बाद कांग्रेस के पुराने नेताओं ने इंदिरा गाँधी को यह सोचकर प्रधानमंत्री बनाया था कि वह उनके कहे के मुताबिक़ काम करेंगी। लेकिन इंदिरा ने धीरे-धीरे सरकार और संगठन में अपनी पकड़ को मज़बूत करना शुरू कर दिया। इससे पार्टी में पुराने नेताओं का गुट जिसे कांग्रेस (सिंडिकेट) और इंदिरा गाँधी के समर्थक नेताओं का गुट जिसे कांग्रेस (इंडिकेट) कहा जाता था, बन गए थे। पार्टी में चल रही यह गुटबाज़ी 1969 में राष्ट्रपति के चुनाव के दौरान खुलकर सामने आ गई।
इंदिरा ने बनाई कांग्रेस (आर)
इस चुनाव में कांग्रेस के अधिकृत उम्मीदवार नीलम संजीव रेड्डी थे लेकिन इंदिरा गाँधी ने वी. वी. गिरी को चुनाव लड़ाया और जिता दिया। चुनाव में मुँह की खाने के बाद कांग्रेस (सिंडिकेट) ने 1969 में इंदिरा गाँधी को पार्टी से बर्ख़ास्त कर दिया। तब इंदिरा गाँधी ने अपनी एक अलग पार्टी कांग्रेस (रुलिंग) यानी सत्तारुढ़ कांग्रेस की स्थापना की थी और दूसरे धड़े का नाम कांग्रेस (ऑर्गनाइजेशन) था।
यह भी पढ़ें : यूपी में बीजेपी के लिए आसान नहीं 2019 की राह
फिर टूटी कांग्रेस, बनी कांग्रेस (आई)
1977 के चुनाव में इंदिरा गाँधी की क़रारी हार हुई और जनता पार्टी की सरकार बनी। पार्टी के शीर्ष नेताओं ने हार के लिए इंदिरा की नीतियों को ज़िम्मेदार ठहराया और कांग्रेस (आर) का विभाजन हुआ। इंदिरा गाँधी ने एक बार फिर अलग पार्टी बना ली जिसका नाम कांग्रेस (आई) रखा गया और इसका चुनाव चिन्ह पंजे का निशान था। इंदिरा ने टूट चुकी कांग्रेस को खड़ा किया और 1980 में एक बार फिर कांग्रेस की सरकार बनी। इंदिरा गाँधी 1978-83 और फिर 1983-84 तक कांग्रेस (आई) की अध्यक्ष बनीं रहीं।
यह भी पढ़ें : सपा-बसपा गठजोड़ से बिगड़ेगा बीजेपी का समीकरण, लग सकता है झटका
इंदिरा की मृत्यु के बाद उनके बेटे और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी 1985-91 तक कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। राजीव की मौत होने के बाद लंबे समय तक सोनिया गाँधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने को लेकर अटकलें चलती रहीं। लेकिन शायद सोनिया तब इसके लिए तैयार नहीं थीं। 1992-96 तक पूर्व प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिम्हा राव और 1996-98 तक सीताराम केसरी ने कांग्रेस अध्यक्ष का पदभार संभाला। आख़िरकार 1998 में सोनिया ने कांग्रेस अध्यक्ष का पदभार संभाला और 2017 तक वह इस पद पर रहीं।
यह भी पढ़ें : ‘महागठबंधन के बिना भी बीजेपी को यूपी में 33 सीटों का घाटा’
सोनिया के अध्यक्ष बनने पर कांग्रेस और विपक्षी दलों के कई नेताओं ने उनके विदेशी मूल को बड़ा मुद्दा बनाया। लेकिन सोनिया ने हिम्मत नहीं हारी और उनके अध्यक्ष रहते हुए 2004 और 2009 में कांग्रेस ने यूपीए गठबंधन के नेतृत्व में सरकार बनाई। दिसंबर, 2017 में राहुल गाँधी कांग्रेस के अध्यक्ष बने और वर्तमान में वह इस पद पर काम रहे हैं।