क्या यूपी में क़रीब 27000 स्कूलों को बंद करने की तैयारी है? आख़िर इसको लेकर राज्य की राजनीति में बवाल क्यों मचा हुआ है? विपक्षी दलों ने कहा है कि प्राइमरी और जूनियर स्कूलों को बंद करने का फैसला शिक्षा क्षेत्र के साथ-साथ दलित, पिछड़े, गरीब और वंचित तबक़ों के बच्चों के ख़िलाफ़ है।
विपक्षी दलों के हमले के बाद सरकार ने सफ़ाई जारी की है, लेकिन सरकार की सफ़ाई से पहले यह जान लीजिए कि आख़िर विपक्षी दलों ने आरोप क्या लगाया है। कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने कहा, 'उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार ने 27,764 प्राइमरी और जूनियर स्कूलों को बंद करने का फ़ैसला लिया है। यह क़दम शिक्षा क्षेत्र के साथ-साथ दलित, पिछड़े, गरीब और वंचित तबकों के बच्चों के खिलाफ है। यूपीए सरकार शिक्षा का अधिकार कानून लाई थी जिसके तहत व्यवस्था की गई थी कि हर एक किलोमीटर की परिधि में एक प्राइमरी विद्यालय हो ताकि हर तबके के बच्चों के लिए स्कूल सुलभ हो। कल्याणकारी नीतियों और योजनाओं का मकसद मुनाफा कमाना नहीं बल्कि जनता का कल्याण करना है। भाजपा नहीं चाहती कि कमजोर तबके के बच्चों के लिए शिक्षा सुलभ हो।'
दरअसल, स्कूलों के बंद किए जाने की ख़बर तब चली जब स्कूल शिक्षा विभाग ने राज्य के सभी जिला बेसिक शिक्षा अधिकारियों को ख़त भेजा। सभी जिलों के बीएसए को यह ब्योरा भेजकर स्थिति पर खेद जताया गया था और स्कूलों से इस पर सफ़ाई मांगी गई थी।
जिस स्थिति पर खेद जताई गई थी वह जून में यू-डायस पोर्टल से हर जिले के स्कूलों के ब्योरे से सामने आई थी। इसमें 50 से कम छात्रों वाले स्कूलों की पहचान की गई। ऐसे स्कूलों की संख्या 27 हज़ार से ज़्यादा थी। एनबीटी की एक रिपोर्ट के अनुसार महानिदेशक के निर्देश पर सभी बीएसए ऐसे नजदीकी स्कूल चिह्नित कर रहे हैं, जिनमें 50 से कम बच्चों वाले स्कूलों का मर्जर किया जा सकता है। मीडिया की ऐसी ही रिपोर्टों के बाद विपक्षी दलों ने इस मुद्दे को उठाया।
यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने कहा, 'यूपी सरकार द्वारा 50 से कम छात्रों वाले बदहाल 27,764 परिषदीय प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में ज़रूरी सुधार करके उन्हें बेहतर बनाने के उपाय करने के बजाय उनको बंद करके उनका दूसरे स्कूलों में विलय करने का फैसला उचित नहीं। ऐसे में गरीब बच्चे आखिर कहाँ और कैसे पढ़ेंगे?'
उन्होंने आगे कहा, 'यूपी व देश के अधिकतर राज्यों में खासकर प्राइमरी व सेकण्डरी शिक्षा का बहुत ही बुरा हाल है जिस कारण गरीब परिवार के करोड़ों बच्चे अच्छी शिक्षा तो दूर सही शिक्षा से भी लगातार वंचित हैं। ओडिशा सरकार द्वारा कम छात्रों वाले स्कूलों को बंद करने का भी फैसला अनुचित है।'
उन्होंने कहा, 'सरकारों की इसी प्रकार की गरीब व जनविरोधी नीतियों का परिणाम है कि लोग प्राइवेट स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाने को मजबूर हो रहे हैं, जैसा कि सर्वे से स्पष्ट है, किन्तु सरकार द्वारा शिक्षा पर समुचित धन व ध्यान देकर इनमें जरूरी सुधार करने के बजाय इनको बंद करना ठीक नहीं।'
विपक्षी दलों के इन आरोपों के बाद सोमवार को उत्तर प्रदेश सरकार ने सफाई जारी की है। डिपार्टमेंट ऑफ बेसिक एजुकेशन उत्तर प्रदेश ने बयान जारी कर कहा है, 'कतिपय समाचार माध्यमों में प्रकाशित ख़बर जिसमें 27000 प्राथमिक विद्यालयों को निकटवर्ती विद्यालयों में विलय करते हुए बंद करने की बात की गई है जो बिल्कुल भ्रामक एवं निराधार है। किसी भी विद्यालय को बंद किए जाने की कोई प्रक्रिया नहीं चल रही है।'
बयान में आगे कहा गया है कि 'प्रदेश का प्राथमिक शिक्षा विभाग विद्यालयों में मानव संसाधन और आधारभूत सुविधाओं के विकास, शिक्षा की गुणवत्ता को बेहतर करने तथा छात्रों, विशेषकर बालिकाओं, के ड्रॉप आउट दर को कम करने के लिए सतत प्रयत्नशील है। इस दृष्टि से समय-समय पर विभिन्न अध्ययन किए जाते हैं।'
इसने यह भी कहा है कि विगत वर्षों में प्रदेश के विद्यालयों में कायाकल्प, निपुण, प्रेरणा आदि योजनाओं के माध्यम से शिक्षा क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति एवं सुधार हुए हैं। इसने कहा कि विभाग के लिए प्रदेश के छात्रों का हित सर्वोपरि है।