प्रधानमंत्री अपनी पार्टी के भ्रष्टाचार पर जवाब दें!
आगामी 19 अप्रैल को 2024 लोकसभा चुनाव के लिए पहले चरण का मतदान होना है। सरकार ठप पड़ गई है और प्रधानमंत्री लगातार ‘रैली मोड’ में आ गये हैं।प्रधानमंत्री मोदी जब से केंद्रीय राजनीति में आये हैं वो लगातार कुछ ख़ास बातों को लेकर जनता तक पहुँच बनाने की कोशिश करते रहे हैं। पहला यह कि वह बहुत गरीब परिवार से आते हैं और उन्होंने रेलवे स्टेशन में चाय तक बेची है; दूसरा यह कि वह देश के चौकीदार हैं, प्रधानसेवक हैं और यह उनकी ‘गारंटी’ है कि भ्रष्टाचार नहीं होने दिया जाएगा; तीसरा यह कि ‘देश नहीं झुकने दूँगा’ और चौथा और उनका अंतिम हथियार कि कांग्रेस एक ‘वंशवादी पार्टी’ है और यह भी कि देश की हर समस्या के लिए कांग्रेस ज़िम्मेदार है।
एक नागरिक होने के नाते मेरे लिए उनकी दो बातें बहुत अहम हैं। पहली ये कि वो ‘भ्रष्टाचार नहीं होने देंगे’ मतलब ‘न खाऊँगा ना खाने दूँगा’; और दूसरा यह कि ‘देश नहीं झुकने दूँगा’। अगर प्रधानमंत्री इन दो फ्रंट्स पर ही कामयाबी हासिल कर लेते, या कामयाबी के आस-पास भी पहुँच जाते तो मैं संभवतया एक भारतीय होने के नाते उनके वादों से सहमत हो जाती। लेकिन कहानी बिलकुल उल्टी है, प्रधानमंत्री भ्रष्टाचार और देश की सीमा की सुरक्षा के मुद्दे पर पूरी तरह असफल हो गये हैं।
बीते दिनों पीएम नरेंद्र मोदी द्वारा भ्रष्टाचार पर दिये गये उनके भाषणों पर गौर कीजिए- ‘भ्रष्टाचार पर कार्यवाही से कुछ लोग बौखला गये हैं’, ‘मोदी कहता है भ्रष्टाचार हटाओ, विपक्ष कहता है भ्रष्टाचारी बचाओ’, ‘तीसरे कार्यकाल में भ्रष्टाचार पर प्रहार और तेज होगा’, ‘हम हैं जिसका मिशन है भ्रष्टाचार हटाओ और एक तरफ वे हैं उनका मिशन कहता है भ्रष्टाचारी बचाओ, लेकिन ये मोदी है। पीछे हटने वाला नहीं है…ये मोदी की गारंटी है।’ मोदी जी के भाषणों को सुनकर लगेगा कि वह वास्तव में भ्रष्टाचार पर प्रहार करने वाले हैं और अब किसी भी भ्रष्टाचारी को नहीं बख्शेंगे। लेकिन असलियत में मोदी सरकार के लिए भ्रष्टाचार कोई सैद्धांतिक लड़ाई नहीं है बल्कि एक विपक्ष से जुड़ा हुआ मुद्दा है। यह एक राजनैतिक टूल बनकर रह गया है जिसे चुनावी राजनीति में सिर्फ़ विपक्ष के ख़िलाफ़ इस्तेमाल किए जाने का दृष्टिकोण है। चूँकि भ्रष्टाचार किसी दल तक सीमित नहीं किया जा सकता, लेकिन मोदी सरकार लगातार यह प्रैक्टिस कर रही है जिसमें विपक्ष के नेताओं को ही जनता के सामने भ्रष्टाचारी बनाकर पेश किया जा रहा है।
इन हरकतों से देश की मासूम जनता को तो गुमराह किया जा सकता है लेकिन भ्रष्टाचार पर पैनी नज़र रखने वाली अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों को नहीं। ऐसी ही एक एजेंसी है, ‘ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल’ जो हर साल विभिन्न देशों में भ्रष्टाचार के स्तर की जाँच करने के लिए ‘भ्रष्टाचार बोध सूचकांक’ जारी करती है। जर्मनी स्थित इस बेहद प्रतिष्ठित संस्था द्वारा जनवरी 2024 में जारी आँकड़ों के अनुसार भारत का भ्रष्टाचार में दुनिया में 93वाँ स्थान है जबकि एक साल पहले भारत का स्थान 85वाँ था। मतलब साफ़ है कि भारत मोदी जी के नेतृत्व में लगातार भ्रष्टाचार में डूबता जा रहा है। जबकि भारत के पड़ोसी देशों चीन(42वाँ) और भूटान(68वाँ) की स्थिति भारत से कहीं ज़्यादा बेहतर है।
भारत में बढ़ते भ्रष्टाचार को आसानी से ट्रैक किया जा सकता है। स्वयं पीएम मोदी भी ट्रैक कर सकते हैं। बस उन्हें अपने शुभचिंतकों की बातें ध्यान से सुननी चाहिए। ऐसे ही एक शुभचिंतक हैं भाजपा नेता और पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक। सत्यपाल जी ने पीएम मोदी के ‘भ्रष्टाचार पर प्रहार’ वाली ‘गारंटी’ पर बोलते हुए कहा कि- 'बिल्कुल मोदी जी आपकी बात सही है, परंतु मैंने भ्रष्टाचार में शामिल जिन-जिन व्यक्तियों के बारे में बताया था, वे सभी आपकी पार्टी में ही हैं और उन पर आज तक कोई भी कार्रवाई नहीं हुई।ऐसा क्यों...?' पीएम मोदी चाहें तो किसी आगामी रैली में इस सवाल का जवाब दे सकते हैं। और चाहें तो अपनी पार्टी के भ्रष्टाचार पर हमेशा की तरह चुप्पी भी साध सकते हैं। साथ ही सत्यपाल मलिक सही कह रहे हैं या ग़लत इसकी भी पड़ताल की जा सकती है और जनता को पड़ताल से अवगत भी कराया जा सकता है।
केंद्र सरकार की आँखों में फ़िल्टर लगा हुआ है अन्यथा उसे भ्रष्टाचार की सच्चाई अवश्य दिखती। प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएमजेवाई) जोकि आयुष्मान भारत योजना के दो हिस्सों में से एक है। यह योजना पीएम मोदी द्वारा ढोल-नगाड़ों के साथ लायी गई थी, बड़े-बड़े वादे किए गये थे। लेकिन मोदी जी अपने वादे को पूरा नहीं कर सके, और यह योजना भ्रष्टचार का शिकार हो गई। इस योजना का मूल्यांकन नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) द्वारा किया गया। CAG की रिपोर्ट से पता चला है कि इसमें बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ है। सीएजी ने पाया कि इस योजना के तहत दिये जाने वाले 5 लाख रुपये प्रति परिवार के बीमा दावों के निपटान में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2.25 लाख मामलों में, की गई 'सर्जरी' की तारीख डिस्चार्ज की तारीख के बाद की दिखाई गई थी। एक आँकलन के मुताबिक़ इसमें कम से कम 300 करोड़ का भ्रष्टाचार हुआ है। कैग ने पाया कि ट्रांजेक्शन मैनेजमेंट सिस्टम (टीएमएस) के अनुसार, इलाज के दौरान 88,760 मरीजों की मौत हो गई। फिर भी, इन मृत 'रोगियों' को दिए गए 'ताजा उपचार' के नाम पर इनके 2,14,923 फ़र्जी दावों का भुगतान किया गया। जिस योजना का गुणगान पीएम मोदी पूरे देश में करते रहे उसकी चौकीदारी भी अच्छे से नहीं कर सके। संबंधित मंत्री से इस भ्रष्टाचार के लिए जवाब तलाब नहीं कर सके और न ही इतनी हिम्मत दिखा सके कि जनता के सामने आकर अपनी सरकार के भ्रष्टाचार से ही नाराज़गी दिखा देते। इस भ्रष्टाचार के लिए उनसे कोई उनका इस्तीफ़ा नहीं माँग रहा था।
इलेक्टोरल बॉण्ड के मामले ने तो नरेंद्र मोदी सरकार की संपूर्ण विश्वसनीयता पर ही प्रश्न लगा दिया। यह योजना और इसका खुलासा इस बात की पुष्टि करता है कि इलेक्टोरल बॉण्ड योजना का ग़लत इस्तेमाल किया गया। यह भी कहा जा सकता है कि 2017-18 में आयी यह योजना ग़लत उद्देश्यों के तहत लायी गई थी। खेल समझिए और क्रोनोलॉजी पर ध्यान दीजिए।
जानबूझकर वित्त अधिनियम-2017 लाकर कॉर्पोरेट जगत को खुली छूट दे दी गई कि वो जितना चाहे उतना चंदा राजनैतिक दलों को दे सकते हैं। जबकि कंपनी अधिनियम 2013 में कॉर्पोरेट के लिए पार्टियों को चंदा देने की सीमा 7.5%(कंपनी के पिछले तीन सालों के लाभ का औसत) निर्धारित थी।एक कंपनी जिसे अपनी ‘पहचान’ खुलने का डर नहीं था, एक कंपनी जिसे असीमित धन चंदे के रूप में पार्टी को देने की छूट थी, अब कंपनियाँ यदि सत्तारूढ़ दल के साथ ‘मिलकर’ काम करें तो दोनों का फ़ायदा होना था।भ्रष्टाचार के इसी नेक्सस से परेशान होकर सुप्रीम कोर्ट ने इस इलेक्टोरल बॉण्ड योजना को ही असंवैधानिक करार दे दिया। इसका साफ़ मतलब था कि सुप्रीम कोर्ट नरेंद्र मोदी सरकार के इस योजना को लेकर दिये जा रहे, ‘पारदर्शिता’ के तर्क से सहमत नहीं था। आदेश के बाद जब आँकड़े सामने आने लगे तो न्यायालय का शक सही साबित हुआ। इलेक्टोरल बॉण्ड की आड़ में भीषण भ्रष्टाचार चल रहा था और मोदी सरकार ख़ामोश थी।
द हिंदू, द्वारा इलेक्टोरल बॉण्ड आँकड़ों के किए गये विश्लेषण से पता चला कि कम से कम 33 ऐसी कंपनियाँ हैं जिनका 2017-2023 के बीच शुद्ध लाभ नकारात्मक है इसके बावजूद उनके द्वारा राजनैतिक दलों को 581 करोड़ का चंदा दिया गया।सबसे अहम बात यह है कि इस चंदे का लगभग 75% अकेले बीजेपी के पास गया है। अब जो कंपनियाँ शुद्ध नकारात्मक लाभ में हैं वो करोड़ों का चंदा कैसे दे रही हैं? कोई भी नौसिखिया बता सकता है कि यह स्थिति बिना ‘मनी लाउंड्रिंग’ के नहीं आ सकती। अर्थात् इसमें प्रवर्तन निदेशालय(ED) को जाँच करनी चाहिए थी। लेकिन आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि इसमें जाँच क्यों नहीं हो रही है और अरविंद केजरीवाल की जाँच क्यों हो रही है, उन्हें क्यों जेल में भेजा गया है। सरकार ED का इस्तेमाल करके 70 साल पुराने मज़बूत लोकतंत्र का क़ानूनी तरीक़ों से गला घोंटने का प्रयास कर रही है। ED का जो काम होना चाहिए था, उसे जहां सक्रिय होना चाहिए था, उसे वह करने नहीं दिया जा रहा है।
आज से 56 साल पहले 1967 में बनी ED भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के अन्तर्गत काम करने वाली एजेंसी है। इसकी स्थापना का उद्देश्य था कि भारत में पनप रहे आर्थिक अपराध को रोका जा सके। या दूसरे शब्दों में कहें, तो इसका काम था किसी भी क़िस्म के आर्थिक भ्रष्टाचार पर रोक को सुनिश्चित करना।PMLA-2002 लाकर इस संस्था की ज़िम्मेदारी और कार्य दोनों बढ़ा दिये गये।परंतु ED के काम को अनाधिकारिक रूप से कभी इस स्तर तक नहीं बढ़ाया जाना चाहिए था कि वो लोकतंत्र की हत्या का औज़ार बनकर उभरे। लेकिन मोदी सरकार के अंतर्गत उस एजेंसी के कामों और इसमें सरकारी दखल ने इसे एक असक्षम और ग़ैर-भरोसे वाली एजेंसी के रूप में बदल दिया।
हाल ही में इंडियन एक्सप्रेस द्वारा की गई एक जाँच की मानें तो 2014 में मोदी के सत्ता में आने के बाद से ED जाँच का सामना कर रहे 25 राजनेता अन्य पार्टियों को छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गये हैं। ताज्जुब की बात तो यह है कि इनमें से 23 को ED द्वारा आरोप मुक्त कर दिया गया है। ऐसे में क्या यह कहना ग़लत होगा कि भारतीय जनता पार्टी ने, नेताओं को भ्रष्टाचार से मुक्त करने के बदले उन्हें अपनी पार्टी में शामिल किया है? क्या यह कहना ग़लत होगा कि बीजेपी ने यह तय कर लिया है कि जो विपक्ष में रहेगा उसे लगातार परेशान किया जाएगा जबकि जो बीजेपी में शामिल होंगे उन्हें सभी भ्रष्टाचार के आरोपों से मुक्त कर दिया जाएगा? क्या यह कहना ग़लत होगा कि बीजेपी ED के माध्यम से देश की अन्य पार्टियों को तोड़ने में लगी है? क्या यह कहना ग़लत होगा कि बीजेपी क़ानूनी रास्ते से देश के विपक्ष को समाप्त करने की कोशिश कर रही है? इन सबके उत्तर सभी मतदाताओं को तलाशने हैं, लेकिन यदि मतदाताओं का उत्तर ‘हाँ’ है तो यह संपूर्ण भारत के लिए एक ख़तरा है।
कुछ भी हो, यह सारी घटनाएँ पीएम मोदी की भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ उनकी नीतियों/वादों/भाषणों/गारंटियों पर प्रश्नचिन्ह लगा रही हैं। मुझे व्यक्तिगत तौर पर यह लगता है कि पीएम मोदी को भारत की अपंग मीडिया और ढल चुकी संस्थाओं की अकर्मण्यता पर इतना अधिक भरोसा है कि वो चाहे जितने झूठ अपने भाषणों में बोलें, उनकी पोल खोलने वाला, उन्हें आईना दिखाने वाला कोई नहीं है। जो मीडिया का एक हिस्सा यूट्यूब के माध्यम से उन्हें आईना दिखा भी रहा है उसे सरकार प्रतिबंधित कर दे रही है(बोलता हिंदुस्तान)।
यही हाल पीएम मोदी के दावों/गारंटियों का भारत की सीमाओं को लेकर है। मोदी पहले डोकलाम विवाद(2017) के दौरान भारत की हज़ारों एकड़ ज़मीन चीन के हाथों दे बैठे, और अब चीन अरुणाचल पर भी नज़र गड़ाये हुए है। चीन भारत की सीमा में स्थित गाँवों के नाम बदल रहा है, अपनी अवसंरचना को बढ़ा रहा है और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक शब्द भी चीन के ख़िलाफ़ नहीं बोल रहे हैं। यह कैसी नीति है? कैसे प्रधानमंत्री हैं वो, उनके पास 140 करोड़ भारतीयों की ताक़त है, पूरा राजनीतिक समर्थन है इसके बावजूद चीन को क्लीन चिट देकर कह दिया कि ‘ना कोई भारत की सीमा में घुसा है, ना ही कोई पोस्ट कब्जे में है’? चीन ने पीएम मोदी के इस कथन का खूब फ़ायदा उठाया और बार बार कई मंचों पर भारत के पीएम के इस कथन को उद्धृत किया कि भारत के पीएम ही नहीं मानते कि हमने भारतीय सीमा में घुसपैठ की है।
पीएम मोदी वास्तव में कब भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लड़ाई छेड़ेंगे? आख़िर कब वो भारत के सीमा पार स्थित दुश्मनों को लाल आँखें दिखायेंगे?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आज सबसे बड़ी समस्या यह है कि जिस अट्टहास और गर्व के साथ उन्होंने ‘ना खाऊँगा और ना खाने दूँगा’ का नारा बुलंद किया था, वह आज धूल में मिल चुका है। पीएम मोदी के नेतृत्व में बीजेपी पर जो ‘परफेक्ट डेन्ट’ लगा है वह किसी भी गैराज में ठीक नहीं किया जा सकता है और न ही काँग्रेस के चुनावी घोषणापत्र को ‘मुस्लिम लीग’ जैसा बता देने से।
किसको नेता चुनना है, कौन भारत का प्रधानमंत्री होगा समेत तमाम अन्य सभी सवालों के जवाब जनता स्वयं खोज लेगी। बस पीएम अपनी पार्टी के भ्रष्टाचार पर जवाब दें।