राजीव गाँधी को 'भ्रष्टाचारी नंबर 1' कहने पर भी मोदी को क्लीन चिट
चुनाव आयोग ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तीन और मामलों में क्लीन चिट दे दी है। ताज़ा मामला मोदी की ओर से पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी को 'भ्रष्टाचारी नंबर 1' कहने का है। राजीव को 'भ्रष्टाचारी नंबर 1' कहने पर कांग्रेस ने कड़ा रुख अपनाया है। लेकिन चुनाव आयोग ने मोदी को इस मामले में क्लीन चिट दे दी है। कांग्रेस सांसद सुष्मिता देव ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में मोदी की इस टिप्पणी के ख़िलाफ़ अपील दायर की है। देव का आरोप है कि चुनाव आयोग ने अन्य मामलों में भी प्रधानमंत्री को पक्षपाती तौर पर क्लीन चिट दी है। देव की अपील पर सुप्रीम कोर्ट आज सुनवाई करेगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले हफ़्ते एक चुनावी रैली में बोफ़ोर्स मामले की तरफ़ इशारा करते हुए कहा था, 'आपके (राहुल गाँधी) पिताजी को आपके राज दरबारियों ने गाजे-बाजे के साथ मिस्टर क्लीन बना दिया था लेकिन देखते ही देखते भ्रष्टाचारी नंबर वन के रूप में उनका जीवनकाल समाप्त हो गया।' प्रधानमंत्री के इस बयान पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी और महासचिव प्रियंका गाँधी वाड्रा ने पलटवार किया था।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने ट्वीट किया था, 'मोदीजी, लड़ाई ख़त्म हो चुकी है। आपके कर्म आपका इंतजार कर रहे हैं। ख़ुद के बारे में अपनी आंतरिक सोच को मेरे पिता पर थोपना भी आपको नहीं बचा पाएगा। प्यार और झप्पी के साथ- राहुल।' दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के 200 से अधिक अध्यापकों ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी पर मोदी की टिप्पणी को बेहद अपमानजनक एवँ झूठ बताया है।
इसके अलावा दो अन्य मामलों में से एक मामला 23 अप्रैल को अहमदाबाद में मतदान के बाद नरेंद्र मोदी के कथित रोड शो को लेकर और दूसरा कर्नाटक के चित्रदुर्ग में दिए गए एक भाषण को लेकर है। चुनाव आयोग अब तक कई मामलों में नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दे चुका है। लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में 23 अप्रैल को गुजरात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वोट डाला था। इसके बाद उन्होंने खुली जीप में चलते हुए लोगों के साथ मुलाक़ात की थी। विपक्ष ने कहा था कि यह रोड शो की तरह है और आचार संहिता का खुला उल्लंघन है। लेकिन मामले में चुनाव आयोग ने प्रधानमंत्री को क्लीन चिट दी है।
चित्रदुर्ग में प्रधानमंत्री ने अपने चुनावी भाषण में पुलवामा आतंकवादी हमले और बालाकोट हवाई हमले का उल्लेख करते हुए पहली बार वोट डालने वालों से इस मुद्दे पर मतदान करने की अपील की थी। लेकिन शिकायत करने के बाद चुनाव आयोग ने इस मामले में भी मोदी को क्लीन चिट दे दी।
महाराष्ट्र के लातूर में भी मोदी ने अपने भाषण में इन्हीं बातों का ज़िक्र किया था। इसे लेकर जब शिकायत हुई तो इस मामले में चुनाव आयोग ने मोदी को क्लीन चिट दे दी थी। तब आयोग के फ़ैसले पर कई सवाल उठे थे क्योंकि महाराष्ट्र के मुख्य चुनाव अधिकारी और उस्मानाबाद के ज़िला निर्वाचन अधिकारी ने प्रधानमंत्री के भाषण को आयोग के दिशा-निर्देशों के अनुकूल नहीं माना था। पर, चुनाव आयोग ने इन दोनों अफ़सरों की रिपोर्टों को दरकिनार करते हुए मोदी को दोषमुक्त क़रार दिया था।
चुनाव आयोग ने चेताया था कि चुनाव प्रचार में सेना या सैनिकों का किसी तरह इस्तेमाल न हो। आयोग ने कहा था कि तसवीरों, दूसरी प्रचार सामग्रियों या भाषणों में किसी भी रूप में सेना या सैनिकों का प्रयोग न किया जाए। लेकिन चुनाव आयोग की चेतावनी के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी ने सेना के नाम पर वोट माँगे थे। यह पूरी तरह आचार संहिता का उल्लंघन था। चुनाव आयोग के रवैये को लेकर 66 पूर्व प्रशासनिक अधिकारियों के एक समूह ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखा था। उन्होंने पत्र में लिखा था कि कई बार आचार संहिता का उल्लंघन हुआ और शिकायतें दर्ज कराने के बाद भी आयोग ने कोई ठोस कार्रवाई नहीं की। अधिकारियों ने पत्र में लिखा था कि चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और निष्पक्षता से समझौता किया जा रहा है।
1 अप्रैल, 2019 को महाराष्ट्र के वर्धा में भी प्रधानमंत्री मोदी के भाषण के ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज कराई गई थी। प्रधानमंत्री मोदी ने इस रैली में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी के बारे में कहा था कि कांग्रेस के नेता ऐसी सीट से चुनाव लड़ने से डर रहे हैं, जहाँ हिंदू अधिक संख्या में हैं और वह ऐसी सीटों से चुनाव लड़ने जा रहे हैं, जहाँ अल्पसंख्यक मतदाता अधिक हैं। नियमों के मुताबिक़, कोई भी नेता जातीय, धार्मिक, सांप्रदायिक आधार पर वोट नहीं माँग सकता लेकिन चुनाव आयोग ने इस मामले में भी आचार संहिता का उल्लंघन नहीं पाया है और उन्हें क्लीन चिट दे दी। इसके बाद 6 अप्रैल को महाराष्ट्र के नांदेड़ में मोदी ने चुनावी रैली में वायनाड सीट का ज़िक्र किया और वर्धा की रैली में कही गई बातों को दोहराया। लेकिन इस मामले में भी मोदी को क्लीन चिट मिली।
इससे पहले 'मिशन शक्ति’ पर प्रधानमंत्री मोदी के संबोधन को लेकर भी कई विपक्षी दलों ने सवाल उठाए थे लेकिन तब भी चुनाव आयोग को इसमें कुछ ‘ग़लत’ नहीं लगा था और आयोग ने प्रधानमंत्री को क्लीन चिट दे दी थी।
किताब पर क्यों लगाई रोक
इसी तरह एक अन्य मामले में चुनाव आयोग ने रफ़ाल डील से जुड़ी एक किताब को रिलीज़ किये जाने पर रोक लगा दी थी। किताब को प्रकाशित करने वाले भारती प्रकाशन के संपादक पीके राजन ने इस पर ख़ासी नाराज़गी जताते हुए चुनाव आयोग की कार्रवाई पर सवाल उठाया था। इस किताब का विमोचन वरिष्ठ पत्रकार और ‘द हिंदू’ अख़बार समूह के प्रमुख एन. राम के द्वारा किया जाना था लेकिन उससे पहले ही चुनाव आयोग ने इस पर रोक लगा दी थी। बता दें कि एन. राम ख़ुद इस सौदे पर कई रिपोर्ट लिख चुके हैं। मंगलवार 2 अप्रैल को जब किताब रिलीज़ होने वाली थी तो चुनाव आयोग ने पुलिस बल के साथ जाकर किताब की प्रतियों को जब्त कर लिया था। क्या आयोग की इस कार्रवाई से उसके निष्पक्ष होने के दावे पर सवाल नहीं खड़े होते हैंमोदी को लगातार मिल रही क्लीन चिट से लगता तो यह है कि चुनाव आयोग जानबूझ कर सारी बातों से आँखें मूंदे रहा। लेकिन जब विपक्षी दलों ने जब शिकायतें कीं तो आयोग ने उन्हें क्लीन चिट दे दी और यहाँ तक कि उसमें अपने ही अफ़सरों की रिपोर्टों को ग़लत बताया। इससे आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठने स्वाभाविक हैं।