प्रधानमंत्री मोदी के 'वंदे मातरम' पर नीतीश की चुप्पी क्यों?
प्रधानमंत्री मोदी 'वंदे मातरम' के नारे लगाते रहे, लेकिन नीतीश कुमार बगल में ही चुप बैठे रहे। हालाँकि यह मामला दरभंगा में 25 अप्रैल की प्रधानमंत्री मोदी की चुनावी रैली का है। लेकिन इसका वीडियो सोशल मीडिया पर अब वायरल हुआ है। इसमें दिख रहा है कि मोदी मुट्ठी बंद कर हाथ ऊपर उठाते हुए 'वंदे मातरम', 'वंदे मातरम' के नारे लगाते रहे। राम विलास पासवान सहित मंच पर मौजूद दूसरे सभी नेता मोदी के पीछे-पीछे 'वंदे मातरम' के जयकारे लगाते रहे। रैली की पूरी भीड़ भी जयकारे लगाती रही। लेकिन मोदी की पार्टी के गठबंधन के साथी नीतीश कुमार एकदम चुप बैठे रहे। जयकारे लगाते हुए आख़िर में सभी खड़े हो गये। काफ़ी असहज दिख रहे नीतीश भी आख़िर में खड़े हुए, लेकिन तब भी वह जयकारे लगाते नहीं दिखे।
सिर्फ नीतीश जी पर फोकस बनाए रखें । :) pic.twitter.com/lVxgDaoM2D
— Narendra nath mishra (@iamnarendranath) April 30, 2019
नीतीश कुमार की चुप्पी का क्या मतलब है उन्हें नरेंद्र मोदी के नेतृत्व से इतनी दिक्कत तो नहीं होनी चाहिए जितना कि वोट बैंक के खिसकने के डर से। नीतीश की मुसलिम वोटरों पर पहले अच्छी पकड़ थी और अधिकतर मुसलिम ‘वंदे मातरम’ गीत को अपने धर्म से टकराव मानते हैं।
मुसलिमों और ‘वंदे मातरम’ पर नीतीश की दुविधा को आरजेडी के वरिष्ठ नेता और बिहार के पूर्व मंत्री अब्दुल बारी सिद्दीकी के बयान से भी समझा ज सकता है। सिद्दीकी ने 22 अप्रैल को यह कहकर विवाद खड़ा कर दिया था कि उन्हें ‘भारत माता की जय' बोलने में कोई परेशानी नहीं है, लेकिन राष्ट्रगीत वंदे मातरम गाना उनकी आस्था के ख़िलाफ़ है। दरभंगा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रहे सिद्दीकी ने कहा, ‘जो एकेश्वर में विश्वास रखता है वह कभी भी ‘वंदे मातरम' नहीं गाएगा'।
‘वंदे मातरम' से मुसलिमों को क्या है दिक्कत
बंकिम चंद्र चटर्जी रचित ‘वंदे मातरम' पर अधिकतर मुसलिमों को आपत्ति इसी बात को लेकर जिस एकेश्वरवाद का ज़िक्र आरजेडी नेता सिद्दीकी ने किया है। यह विवाद आज से नहीं है।
बंकिम चंद्र चटर्जी ने यह गीत 1875 में लिखा जो बांग्ला और संस्कृत में था। भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, रामप्रसाद बिस्मिल और अशफ़ाक़ुल्लाह ख़ान जैसे स्वतंत्रता सेनानी वंदे-मातरम गाते हुए फाँसी के फंदों पर झूल गए थे। इससे घबराकर अंग्रेज़ शासकों ने हिन्दू राष्ट्रवाद बनाम मुसलमान राष्ट्रवाद का बीज बो दिया और इसी रस्साकशी में वंदे-मातरम पर भी विवाद हो गया। विकिपीडिया के अनुसार, जवाहरलाल नेहरू, अबुल कलाम आज़ाद और सुभाष चंद्र बोस, आचार्य देव और रबिंद्रनाथ टैगोर को लेकर 1937 में एक समिति बनाई गई जिसने वंदे-मातरम गीत पर आपत्तियों पर विचार किया।
इस पर सबसे बड़ी आपत्ति यह थी कि यह गीत एक धर्म विशेष के हिसाब से भारतीय राष्ट्रवाद को परिभाषित करता है। यह सवाल केवल मुसलमान संगठनों ने ही नहीं बल्कि सिख, जैन, ईसाई और बौद्ध संगठनों ने भी उठाया। इस पर इसलिये भी आपत्ति थी कि इस गीत में देवी दुर्गा को राष्ट्र के रूप में देखा गया है।
समिति ने पाया कि इस गीत के शुरुआती दो पद तो मातृभूमि की प्रशंसा में कहे गये हैं, लेकिन बाद के पदों में हिन्दू देवी-देवताओं का ज़िक्र होने लगता है। इसलिये यह निर्णय लिया गया कि इस गीत के शुरुआती दो पदों को ही राष्ट्रगीत के रूप में रखा जाएगा।
इसके बाद दो पदों को इस रूप में राष्ट्रगीत के रूप में स्वीकार किया गया।
वन्दे मातरम्सुजलां सुफलाम्मलयजशीतलाम्शस्यश्यामलाम्मातरम्।शुभ्रज्योत्स्नापुलकितयामिनीम्फुल्लकुसुमितद्रुमदलशोभिनीम्सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीम्सुखदां वरदां मातरम्।।
लेकिन इससे हिन्दू और मुसलमान सांप्रदायिक तत्व संतुष्ट नहीं हुए। आरएसएस और हिन्दू महासभा दोनों का ही यह कहना था कि भारत एक हिन्दू राष्ट्र है और यह पूरा गीत गाना चाहिए। कट्टर मुसलिमों ने भी इसको ख़ूब भुनाया।
आरएसएस वंदे मातरम के पूरे गाने की वकालत करता है और इसे राष्ट्रगान से भी उत्तम और ऊँचा बताता है। वह इसे अपने हिन्दू राष्ट्र के प्रोजेक्ट के अनुकूल पाता है। हालाँकि आज़ादी के समय संघ के कितने लोगों ने इस नारे को लगाया वह यह नहीं बताता है।
इस गीत पर हर बार का विवाद इस बहस को ताज़ा कर देता है कि देश के मुसलमान इस देशभक्ति के गीत को गाना नहीं चाहते हैं और इस तरह उनकी देशभक्ति संदिग्ध है।
क्या है सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला
दो साल पहले ही यानी 2017 में जब राष्ट्रगान की तरह ही राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम’ को बजाने के लिए न्यायिक निर्देश जारी करने की गुहार लगाई गई तो सुप्रीम कोर्ट ने इस माँग को ठुकरा दिया। सुप्रीम कोर्ट ने वंदे मातरम संबंधी उस याचिका पर फ़ैसला दिया था कि यदि कोई व्यक्ति राष्ट्रगान का सम्मान करता है पर उसे गाता नहीं तो इसका मतलब यह नहीं कि वह इसका अपमान कर रहा है। इसलिए इसे नहीं गाने के लिये उस व्यक्ति को दंडित या प्रताड़ित नहीं किया जा सकता है। चूँकि वंदे मातरम इस देश का राष्ट्रगीत है तो इसको जबरदस्ती गाने के लिये मजबूर करने पर भी यही क़ानून व नियम लागू होगा।