किसानों के विरोध के बीच राष्ट्रपति कोविंद ने कृषि विधेयकों पर दस्तख़त किए
एनडीए छोड़ने के बाद बीजेपी के ख़िलाफ़ मोर्चा बनाने की शिरोमणि अकाली दल की अपील और पंजाब में किसानों के विरोध प्रदर्शन के बीच रविवार को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कृषि विधेयकों पर दस्तख़त कर दिए। इसके सााथ ही इन विधेयकों के वापस किए जाने की तमाम संभावनाएं ख़त्म हो गईं।
ध्वनि मत से पारित हुए थे ये विधेयक
इन कृषि विधेयकों को राज्यसभा में 20 सितंबर को पारित कर दिया गया था, जिस पर बहुत ही विवाद हुआ था। ये विधेयक ध्वनिमत से पारित किए गए थे, जबकि विपक्ष का कहना था कि उसने इस पर मत विभाजन की माँग की थी, जिसे उप सभापति हरिवंश ने अनुसना कर दिया था। उस दौरान विपक्षी पार्टी के सांसदों ने 'तानाशाही बंद करो' के नारे भी लगाए थे। तृषणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओ ब्रायन पर आरोप लगा था कि उन्होंने उप सभापति के आसन के पास पहुंचकर रूल बुक फाड़ दिया था।
18 विपक्षी दलों ने सोमवार की शाम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को एक चिट्ठी लिख कर उनसे गुजारिश की कि वह इन विधेयकों पर दस्तख़त न करें। इस ख़त में कहा गया था, “हम अलग-अलग पार्टियों के लोग जो देश की अलग-अलग राजनीतिक विचारधाराओं और भौगोलिक इलाक़ों से आते हैं, बहुत ही सम्मान से आपका ध्यान इस ओर खींचना चाहते हैं कि लोकतंत्र की पूर्ण रूप से हत्या की गई है और विडंबना यह है कि हत्या लोकतंत्र के सबसे सम्मानित मंदिर संसद में ही की गई है।”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सफाई दी थी कि न्यूनतम समर्थन मूल्य बरक़रार रहेगा। उन्होंने कहा था, ‘मैं देश के प्रत्येक किसान को इस बात का भरोसा देता हूं कि एमएसपी की व्यवस्था जैसे पहले चली आ रही थी, वैसे ही चलती रहेगी। इसी तरह हर सीजन में सरकारी खरीद के लिए जिस तरह अभियान चलाया जाता है, वो भी पहले की तरह चलता रहेगा।’