दो विवादास्पद कानून- दिल्ली सेवा एक्ट, डेटा प्रोटेक्शन लॉ लागू, राष्ट्रपति की मंजूरी
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शनिवार को संसद के हंगामेदार मॉनसून सत्र के दौरान पारित कुछ विधेयकों को मंजूरी दे दी। इनमें डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) विधेयक प्रमुख हैं।
राष्ट्रीय राजधानी में सेवाओं के नियंत्रण पर केंद्र के कानून से अब दिल्ली राज्य सरकार की नौकरशाही पर उसका पूरा नियंत्रण मिल गया है। आम आदमी पार्टी इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में ले गई। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया था कि सेवाओं पर नियंत्रण दिल्ली सरकार का ही होना चाहिए था, पुलिस और जमीन का नियंत्रण केंद्र के पास रहेगा। लेकिन केंद्र की मोदी सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले की भावना के खिलाफ दिल्ली सेवा अधिसूचना जारी करके नौकरशाही पर अपना नियंत्रण हासिल कर लिया। बहरहाल, विपक्ष ने लोकसभा और राज्यसभा में इसका विरोध किया। लेकिन दोनों सदनों में पर्याप्त संख्या बल होने के कारण मोदी सरकार इस कानून को पास करा ले गई।
केंद्र और अरविंद केजरीवाल सरकार के बीच आठ साल तक चली खींचतान के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि चुनी हुई सरकार दिल्ली की बॉस है। लेकिन शनिवार 12 अगस्त से यह स्थिति बदल गई है। अमित शाह ने कहा है कि "यह अध्यादेश सुप्रीम कोर्ट के आदेश को संदर्भित करता है जो कहता है कि संसद को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली से संबंधित किसी भी मुद्दे पर कानून बनाने का अधिकार है। संविधान में ऐसे प्रावधान हैं जो केंद्र को दिल्ली के लिए कानून बनाने की अनुमति देते हैं।"
विधेयक पारित होने से पहले, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट किया था कि विधेयक केवल दिल्ली के लोगों को "गुलाम" बनाने की कोशिश है।
डेटा प्रोटेक्शन कानून
विपक्ष जब मणिपुर मुद्दे पर नारे लगा रहा था, उसी दौरान सरकार ने डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन (डीपीडीपी) विधेयक ध्वनि मत से पारित करा लिया। विपक्ष ने कुछ संशोधन रखे लेकिन वे सत्तारूढ़ सरकार ने नकार दिए। बहरहाल, राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद देश में डेटा प्रोटेक्शन कानून लागू हो चुका है। इस कानून में डेटा उल्लंघनों के लिए ₹ 250 करोड़ तक का जुर्माना लगाने का प्रावधान शामिल है क्योंकि यह ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म द्वारा व्यक्तियों के डेटा के दुरुपयोग को रोकने की कोशिश है। विपक्ष ने आरोप लगाया था कि यह कानून देश को सर्विलांस स्टेट ( लोगों पर निगरानी करने वाली सरकार) में बदल देगा।
इस कानून के आलोचकों को डर है कि नौ व्यापक मामलों में सहमति के बिना व्यक्तिगत डेटा को एक्सेस देने की अनुमति देने से नागरिकों की निजता के मौलिक अधिकार पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। इसी में राज्य को छूट और कुछ कंपनियों को व्यापक छूट देने वाले एक विवादास्पद खंड ने भी चिंताएं पैदा कर दी हैं। केंद्र ने पहले 2019 में व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक पेश किया था लेकिन संसदीय समिति द्वारा जांच के बाद इसे पिछले साल वापस ले लिया गया था। एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने प्रस्तावित कानून के कुछ प्रावधानों पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा था कि ये प्रेस की स्वतंत्रता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं। एक बयान में, गिल्ड ने कहा कि यह पत्रकारों और उनके स्रोतों सहित नागरिकों की निगरानी के लिए एक सक्षम ढांचा तैयार करता है।
गिल्ड ने हर किसी को सावधान करते हुए कहा था कि कानून की धारा 36 के तहत, सरकार किसी भी सार्वजनिक या निजी संस्था ( जहां भी डेटा मौजूद हो) से पत्रकारों और उनके स्रोतों सहित नागरिकों की व्यक्तिगत जानकारी पेश करने के लिए कह सकती है। यही इस कानून का सबसे खतरनाक पहलू है। बहरहाल, कानून लागू हो चुका है। अब जब सरकार इसका इस्तेमाल करेगी, तभी इसकी सही तस्वीर लोग समझ पाएंगे।
इन दो बिलों के अलावा राष्ट्रपति ने दो अन्य बिल जन्म और मृत्यु का पंजीकरण (संशोधन) अधिनियम और जन विश्वास (प्रावधानों का संशोधन) अधिनियम को भी मंजूरी दी है। जन्म मृत्यु पंजीकरण संशोधन विधेयक डिजिटल जन्म प्रमाण पत्र को सक्षम करने का रास्ता साफ करता है। इसे कई उद्देश्यों के लिए एकल दस्तावेज़ के रूप में उपयोग किया जा सकता है। इसमें शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश, ड्राइविंग लाइसेंस जारी करने, विवाह पंजीकरण, सरकारी नौकरी में नियुक्ति और खाद्य कल्याण योजनाओं का लाभ उठाने के लिए जन्म प्रमाण पत्र का उपयोग करने की अनुमति देने का भी प्रावधान है। जन विश्वास (प्रावधानों का संशोधन) अधिनियम का मकसद 42 अधिनियमों के 183 प्रावधानों में संशोधन के जरिए छोटे अपराधों को अपराधमुक्त करके व्यापार में आसानी को बढ़ावा देना है।