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यूपी में ही क्यों चलते हैं बुलडोजर, कश्मीर में आतंकियों से डरती है सरकार?

यूपी में ही क्यों चलते हैं बुलडोजर, कश्मीर में आतंकियों से डरती है सरकार?

उत्तर प्रदेश सरकार ने एक बार फिर बुलडोजर चलाया है। लेकिन कश्मीर के आतंकियों पर बीजेपी की सरकार के ये बुलडोजर क्यों नहीं चलते? क्या उसकी नज़र बहुसंख्यकवाद पर है। 

कश्मीरी पंडितों की हत्या करने वालों और उन्हें पलायन को मजबूर करने वालों के घर बुलडोजर क्यों नहीं चला पाती है सरकार? क्यों उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश में ही चलते हैं बुलडोजर? क्या चुनिंदा तरीके से चंद लोगों को उनके मकान ध्वस्त करके प्रदर्शनकारी होने की सज़ा दे रही है सरकार? ये प्रश्न बुलडोजर नहीं चलाने और चलाने दोनों ही स्थितियों में सरकार को ही सवालों के कठघरे में खड़े करते हैं। सरकार इनमें से किसी भी प्रश्न का उत्तर देने को तैयार नहीं है।

पैगंबर के खिलाफ अपमानजक बातें नूपुर शर्मा ने 26 मई को जिस डिबेट में की, उसमें चर्चा ज्ञानवापी मस्जिद में शिवलिंग-फव्वारे पर हो रही थी। यह मुद्दा अदालत में पहुंच चुका था और इस पर चर्चा को बहुत खींचना मुश्किल हो रहा था। वास्तव में तब मुद्दा कश्मीरी पंडितों के पलायन का था और खास किस्म की मीडिया उस पर बहस से बच रही थी ताकि बीजेपी को असहज स्थिति में जाने से रोका जा सके। ऐसी मीडिया को बोलचाल की भाषा में ‘गोदी मीडिया’ नाम दिया जा चुका है।

नूपुर ने दिलायी सरकार को राहत

चूकि कश्मीरी पंडित मौजूदा सरकार के खिलाफ अपने गुस्से का इजहार कर रहे थे, लगातार हत्याओं पर गुस्से में थे और रातों-रात पलायन को वे मजबूर हो रहे थे तो ऐसे में कोई ऐसा मुद्दा जरूरी था जिससे बीजेपी सरकार की चुप्पी से ध्यान हट जाए। यह इसलिए भी जरूरी था क्योंकि फ़िल्म कश्मीर फाइल्स के बाद जिन कश्मीरी पंडितों के बहाने बीजेपी पूरे देश में पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार पर निशाने साध रही थी, वह मुद्दा मिसफायर होने लगा था। मतलब यह कि पूरे किए कराए पर पानी फिरने वाला था।

तभी नूपुर शर्मा ने पैगंबर की निन्दा कर एक नया मोर्चा खोल दिया। हफ्ते भर के भीतर जब यह मुद्दा परवान चढ़ता नहीं दिख रहा था तो दिल्ली मीडिया प्रभारी नवीन जिन्दल ने भी बहती गंगा में हाथ धो लिए। अब पैगंबर के अपमान का मुद्दा सुलगने लगा। देश के भीतर विरोध की आवाज़ को बदनाम करने और उल्टे सवाल पूछते हुए सवालों को खारिज करने की आदी हो चुकी बीजेपी इस बार भी निश्चित थी। इस बीच इस्लामिक देशों में पैगंबर की निंदा को लेकर नाराज़गी बढ़ने लगी। भारतीय उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू का रात्रि भोज कतर के अमीर ने रद्द कर दिया। भारतीय राजदूत तलब किए जाने लगे। मतलब यह कि नूपुर शर्मा का बयान पूरे देश के लिए आपदा बन गया।

बीजेपी के लिए ‘कुर्बान’ हुए नूपुर-नवीन

मोदी सरकार ने तत्काल कूटनीतिक पहल करते हुए बीजेपी से अपने राष्ट्रीय प्रवक्ता नूपुर शर्मा और दिल्ली मीडिया प्रभारी नवीन जिन्दल पर कार्रवाई करने को कहा। उनके बयानों से पार्टी ने पूरी तरह किनारा कर लिया। उन्हें फ्रिंज एलिमेंट यानी हाशिए के तत्व घोषित कर दिया गया। एक तरह से नूपुर-नवीन की ‘शहादत’ ली गयी। ऐसा करते हुए दुनिया में मुंह दिखाने लायक माहौल मोदी सरकार ने बनाया। बीजेपी के भीतर भी इसकी तीखी और कड़ी प्रतिक्रिया हुई। नूपुर शर्मा के साथ और बीजेपी नेतृत्व के फैसले के खिलाफ आवाज़ उठने लगी। स्थिति से निबटने के लिए वक्त का इंतज़ार किया जाने लगा। 

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कानपुर में दंगा भड़कने के बाद मानो बीजेपी को आपदा में अवसर मिल गया। योगी आदित्यानाथ ने इस अवसर का नेतृत्व किया। बुलडोजर एक्शन के साथ प्रदर्शनकारियों से बदला लेने के स्तर पर सरकार आ गयी ताकि सारी बहस इसी विषय पर आ जाए। मगर, नूपुर शर्मा को लेकर अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाओँ के बीच घरेलू प्रतिक्रियाएं भी मजबूत होने लगीं। तभी बीते शुक्रवार को नमाज पढ़ने के बाद निकले जनसमहू ने प्रदर्शन के दौरान जगह-जगह उत्पात मचाना शुरू कर दिया। इसे रोकने की कतई कोशिश नहीं की गयी। बल्कि हिंसा को भड़कने दिया गया। आम लोगों में इस हिंसा की प्रतिक्रिया होने लगी। अब योगी सरकार जोश में आ गयी। बुलडोजर हमले और बचाव दोने के लिहाज से योगी सरकार का अस्त्र-शस्त्र बन गये।

हिंसा से बीजेपी की सियासी जरूरत पूरी 

मस्जिद में जुमे की नमाज के बाद भड़की हिंसा के मायने अलग निकले। ऐसा लगा मानो नूपुर शर्मा ने बीजेपी की राष्ट्रीय प्रवक्ता के तौर पर पैगंबर का अपमान न किया हो, बल्कि उसने एक हिन्दू होकर ऐसा किया हो। मुसलमानों का प्रदर्शन पैगंबर के अपमान के खिलाफ था लेकिन वह बीजेपी या बीजेपी सरकार के खिलाफ न होकर हिन्दू समुदाय के खिलाफ नज़र आने लगा। 

बीजेपी यही चाहती थी। 80-20 का नारा वह बहुत पहले से दे रही थी मगर वह परवान नहीं चढ़ रहा था। अब खुद दोनों पक्ष 80-20 के रूप में इकट्ठे होकर एक-दूसरे के खिलाफ खड़े होते नज़र आने लगे थे। इसे स्पष्ट रूप से दो हिस्सों में बांट देने के लिए बुलडोजर सही हथियार बन गया।

बुलडोजर का उपयोग अब योगी सरकार रोकने नहीं जा रही है। पश्चिम बंगाल, झारखण्ड, महाराष्ट्र, राजस्थान जैसे गैर बीजेपी शासित राज्यों में बुलडोजर का उपयोग नहीं होना अब अगला सवाल बनने वाला है। इन प्रदेशों में उपद्रव के लिए चाहे जितना बीजेपी पर आरोप लगा लिए जाएं, लेकिन स्थानीय सरकार की नाकामी का ठीकरा गैर बीजेपी दलों पर फूटना तय लगता है। ममता बनर्जी ने जब कहा कि गलती बीजेपी ने की, गलत नूपुर शर्मा ने बोला और भुगत जनता रही है तो वह इस आशंका को भांपती हुई दिख रही हैं। वहीं झारखण्ड में फायरिंग में दो छात्रों की मौत के कारण हेमंत सरकार को जवाब देते नहीं बन रहा है।

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कश्मीर: फिट नहीं बैठता 80-20 का नारा

कश्मीर में 80-20 का नारा फिट नहीं बैठता। इसलिए वहां बुलडोजर भी फिट नहीं बैठता। वहां सरकार को निहत्थे या अधिक से अधिक पत्थरबाज प्रदर्शनकारियों से नहीं निपटना है बल्कि आतंकियों से भी निपटना है जिनके पास अत्याधुनिक हथियार हैं। बुलडोजर उन हथियारों के सामने कुछ भी नहीं हैं। यही कारण है कि कश्मीर की स्थानीय सरकार की इतनी हिम्मत नहीं है कि वह बुलडोजर के साथ आतंकी तत्वों का सामना करने या फिर कश्मीरी पंडितों का पलायन रोकने को निकल सके।

उत्तर प्रदेश में एक चार मंजिला इमारत ध्वस्त करने के लिए 10 हजार पुलिसकर्मियों को इकट्ठा कर लिया गया। इस कार्रवाई का सीधा प्रसारण कराया गया ताकि साफ-साफ संदेश दिया जा सके कि हिन्दुओं को डरने की जरूरत नहीं है और मुसलमान उपद्रव करेंगे तो उनके मकान गिरा दिए जाएंगे। ‘दंगाइयों के मकान गिराने’ के नाम पर योगी सरकार समर्थन भी जुटा रही है और गोदी मीडिया इस काम में उसका सहयोग कर रही है। 

बीजेपी सरकार की प्राथमिकता में अब संविधान की परवाह करना नहीं रह गया लगता है। उसकी नज़र बहुसंख्यकवाद पर है जो संविधान में अल्पसंख्यकों को दिए गये विशेष अधिकारों पर भी उंगली उठा रही है। बीजेपी की सरकार को इस बात की परवाह नहीं है कि अदालत में दोषसिद्ध हुए बगैर किसी को दोषी नहीं माना जाना चाहिए।

उसे सिर्फ इस बात की परवाह है कि जब वह दंगाई बोलकर अल्पसंख्यकों के घर तोड़े तो बहुसंख्यक वर्ग उसके लिए तालियां बजाए। ऐसे में उन सवालो का जवाब देने की क्या जरूरत कि कश्मीर में आतंकियों पर बुलडोजर क्यो नहीं चलते और यूपी-एमपी में ही दंगाई बताकर आम लोगों पर बुलडोजर क्यों चल रहे हैं?

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