कांग्रेस पर प्रशांत किशोर का तीखा हमला, विपक्ष की अगुआई पर सवाल
जिस प्रशांत किशोर के कांग्रेस में शामिल होने की चर्चा ज़ोरों पर थी, उसी ने एक बार फिर पार्टी की नीतियों की आलोचना की है और केंद्रीय नेतृत्व पर सवाल उठाया है।
चुनाव प्रचार मैनेजर के रूप में मशहूर हो चुके किशोर ने विपक्ष का नेतृत्व किस दल या नेता के पास हो, इस पर कांग्रेस पर सवालिया निशान लगाया है। उन्होंने गुरुवार को ट्वीट कर कहा, 'कांग्रेस जिस विचार और स्थान (स्पेस) का प्रतिनिधित्व करती है, वह एक मज़बूत विपक्ष के लिए काफ़ी अहम है।" प्रशांत किशोर ने इसके आगे तीखे स्वर में कहा,
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इस मामले में कांग्रेस नेतृत्व को व्यक्तिगत तौर पर किसी का दैवीय अधिकार नहीं है, वह भी तब जब पार्टी पिछले 10 सालों में 90 फ़ीसदी चुनावों में हारी है। विपक्ष के नेतृत्व का फ़ैसला लोकतांत्रिक तरीक़े से होने दें।
प्रशांत किशोर, चुनाव रणनीतिकार
प्रशांत किशोर पर सवाल
उन्होंने यह बात ऐसे समय कही है जब तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी अपने दल और खुद को पश्चिम बंगाल से बाहर निकाल कर राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने की कोशिश कर रही हैं। वह विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश कर रही हैं और अलग-अलग दलों के नेताओं से मिल रही हैं।प्रशांत किशोर का यह बयान इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि पश्चिम बंगाल में इस साल हुए विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी का चुनावी अभियान उन्होंने ही संभाला था। ममता बनर्जी को कामयाबी मिली थी।
बीते दिनों तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस में कटुता बढ़ी जब मेघालय में 12 कांग्रेस विधायकों ने टीएमसी का दामन थाम लिया और वहाँ टीएमसी मुख्य विपक्षी पार्टी बन गई है। इसके अलावा कई कांग्रेस नेता भी टीएमसी में शामिल हुए हैं।
कांग्रेस का जवाब
इस पर कांग्रेस का चिढ़ना स्वाभाविक है क्योंकि यूपीए कांग्रेस की अगुआई वाला गठबंधन था, जिसमें कई दल शामिल थे।
ममता की इस टिप्पणी पर कांग्रेस ने कहा था कि बीजेपी को बिना कांग्रेस के हराना किसी सपने की तरह है।
टीएमसी के तीखे तेवर
तृणमूल प्रमुख ने जिस अंदाज़ में आज कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए को लेकर बात कही, उसी अंदाज़ में उन्होंने दिल्ली में कांग्रेस को लेकर बयान दिया था। दिल्ली में प्रधानमंत्री मोदी से मिलने वाली ममता बनर्जी ने सोनिया गांधी से मुलाक़ात को लेकर एक सवाल के जवाब में पहले तो कहा था कि 'वे पंजाब चुनाव में व्यस्त हैं', लेकिन बाद में उन्होंने कहा कि 'हमें हर बार सोनिया से क्यों मिलना चाहिए? क्या यह संवैधानिक बाध्यता है?' ममता बनर्जी के इस बयान में बेहद तल्खी थी।
इस बयान को उस संदर्भ में आसानी से समझा जा सकता है जिसमें ममता अपनी पार्टी तृणमूल कांग्रेस का पूरे देश में विस्तार करने में जुटी हैं और उसमें कई नेता कांग्रेस छोड़कर शामिल हो चुके हैं।