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क्या एक-दूसरे की ज़रूरत बन गए हैं कांग्रेस और पीके?

क्या एक-दूसरे की ज़रूरत बन गए हैं कांग्रेस और पीके?

चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर का कांग्रेस में शामिल होना लगभग तय माना जा रहा है। बेहद खराब दौर से गुजर रही कांग्रेस को क्या प्रशांत किशोर के पार्टी में आने से कोई फायदा मिलेगा?

प्रसिद्ध चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर बहुत जल्द बतौर कांग्रेस नेता देश के राजनीतिक पटल पर सामने आ सकते हैं। एक हफ्ते में तीसरी बार हुई कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के साथ प्रशांत किशोर की बैठक के बाद कांग्रेस खेमे से इस तरह के संकेत मिले हैं कि प्रशांत किशोर बहुत जल्द कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं। उन्हें महासचिव जैसे बड़े पद के साथ बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है।

इस मुद्दे पर सोनिया गांधी ने सोमवार को ही पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से विचार-विमर्श किया था। पार्टी नेताओं ने अंतिम फैसला सोनिया गांधी पर छोड़ दिया था। अब वो राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा से सलाह मशविरा करके अंतिम फैसले करेंगी। 

बुधवार को सोनिया गांधी के घर दस जनपथ पर हुई बैठक में चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के प्रस्ताव का मूल्यांकन करने वाली टीम के अलावा दो और नेताओं को बुलाया गया था। ये हैं देशभर में बचे कांग्रेस दो मुख्यमंत्री। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल। इनके अलावा बैठक में जयराम रमेश, अंबिका सोनी, केसी वेणुगोपाल और सोनिया गांधी ने भाग लिया। इस हफ्ते के आख़िर तक प्रशांत के प्रस्ताव पर कांग्रेस नेता अपनी रिपोर्ट सोनिया गांधी को सौंप देंगे। बैठक के बाद पार्टी प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने बताया कि पार्टी प्रशांत किशोर के प्रस्तावों का 'मूल्यांकन' कर रही है। उन्होंने कहा, "कई अन्य लोगों के इनपुट पर भी विचार किया जा रहा है और अगले 72 घंटों के भीतर कांग्रेस अध्यक्ष को अंतिम रिपोर्ट सौंपी जाएगी।" 

कांग्रेस का चिंतन शिविर

बताया जा रहा है कि प्रशांत किशोर के इस प्रस्ताव पर अगले महीने राजस्थान के उदयपुर में होने वाले कांग्रेस के चिंतन शिविर में खुला विचार-विमर्श होगा। इससे पहले 2013 में जयपुर में कांग्रेस का चिंतन शिविर हुआ था। लेकिन इसमें चुनावी रणनीति पर कोई खास चर्चा नहीं हुई थी। कई दिनों की माथापच्ची के बाद राहुल गांधी को पार्टी का उपाध्यक्ष बनाने का फैसला हुआ था। इससे पहले वो बतौर महासचिव युवक कांग्रेस और छात्र कांग्रेस का प्रभार संभाल रहे थे।

बताया जा रहा है कि इस चिंतन शिविर में कांग्रेस 2014 के बाद से लगातार हारने के कारणों पर खुले दिल और दिमाग़ से चिंतन करके आने वाले विधानसभा चुनावों के साथ ही 2024 के लोकसभा चुनाव में जीत का रास्ता खोजेगी। इसके लिए प्रशांत किशोर ने एक व्यापक रिपोर्ट सौंपी है। चिंतन शिविर में इस पर खुली चर्चा होगी।

दरअसल प्रशांत किशोर (पीके) चुनाव में विजय दिलाने वाले के रूप में जाने जाते हैं। कांग्रेस के लिए उनका मक़सद 137 साल पुरानी पार्टी का पूरी तरह कायाकल्प करने का है। कांग्रेस का व्यावहारिक रूप से सफाया हो रहा है। 2014 और 2019 को लोकसभा चुनाव बुरी तरह हारने के अलावा कांग्रेस ने अपनी कई राज्य सरकारें बीजेपी के हाथों हारी हैं। इन्हें वो दोबारा चुनाव में भी बीजेपी से नहीं छीन पाई है।

कांग्रेस जीत को तरस गई है। लगातार हार की हताशा और निराशा में डूबी कांग्रेस अब इस स्थिति से बाहर निकलना चाहती है। डूबती कांग्रेस का प्रंशात किशोर जैसे तिनके का सहारा दिख रहा है।

लिहाज़ा कांग्रेस उन पर दांव लगाना चाहती है लेकिन इस मामले में वो सामूहिक निर्णय लेना चाहती है, भले ही अंतिम निर्णय सोनिया गांधी ही लेंगी।

हालांकि शुरू में कांग्रेस के ज़्यादातर नेताओं ने प्रशांत किशोर के प्रस्तावों को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि यह गुजरात के लिए केवल एक बार का प्रस्ताव है। बाद में प्रशांत किशोर के संगठन आईपैक ने कहा कि इसमें कांग्रेस का कायाकल्प और 2024 के आम चुनावों की रणनीति शामिल है। प्रशांत किशोर के पार्टी में शामिल होने पर कांग्रेस नेताओं के बीच आम राय नहीं बन पा रही है। इस पर बातचीत पिछले साल से चल रही है। बीच में बातचीत टूट गई थी।

दस महीने बाद ये बातचीत फिर शुरू हुई है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक़ प्रशांत किशोर पार्टी में अहमद पटेल की तरह बड़ा पद और सहयोगी दलों से बातचीत की खुली छूट चाहते थे। लेकिन पार्टी में बड़े नेताओं को ये गवारा नहीं था। लेकिन अब कोई बीच का रास्ता निकालने की कोशिश हो रही है।

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आम राय बन जाएगी?

माना जा रहा है कि प्रशांत किशोर को पार्टी में महासचिव बनाया जा सकता है। लेकिन पार्टी में नेताओं का एक धड़ा इससे नाराज हो सकता है। अभी भी कई वरिष्ठ नेता प्रशांत किशोर को अपने साथ रखने के लिए उत्सुक नहीं है। ये मानते हैं प्रशांत किशोर पार्टी में शामिल होने पर गांधी परिवार के लिए एक अतिरिक्त बोझ ही साबित होंगे। इसी लिए पार्टी में प्रशांत किशोर को शामिल होने को लेकर आम राय नहीं बन पा रही। 

कुछ नेताओं का तर्क है कि प्रशांत किशोर ममता बनर्जी के लिए 2026 तक काम करने का करार चुके हैं। उनका ऐसा ही करार कुछ और पार्टियों के साथ भी हो सकता है। ऐसे में प्रशांत किशोर कांग्रेस के प्रति पूरी निष्ठा से कैसे काम कर सकते हैं?

जी-23 गुट नाराज 

बता दें कि कांग्रेस में पहले से ही जी-23 नाम का गुट गांधी परिवार के कामकाज से खुश नहीं है। पिछले क़रीब दो साल से कांग्रेस आलाकमान इस गुट की नाराजगी झेल रहा है। हालांकि आलाकमान से नाराज़ इस गुट के कई नेता कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन थाम चुके हैं। प्रशांत किशोर के पार्टी में शामिल होने की स्थिति में भी कुछ नेता ऐसा क़दम उठा सकते हैं।

पिछले साल जब प्रशांत किशोर की ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस में शामिल होने की बात उठी थी तो पार्टी के कई नेताओं ने विरोध किया था। इनमें ममता बनर्जी के तात्कालीन क़रीबी सुवेंदु अधिकारी भी शामिल थे। हालांकि वो ममता का साथ छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए थे।

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कांग्रेस समिति के ज़्यादातर सदस्यों का कहना है कि प्रशांत किशोर की ताक़त डेटा विश्लेषण है। लिहाज़ा पार्टी के लाभ के लिए इसका उपयोग करना बहुत फायदेमंद साबित हो सकता है। बुधवार की बैठक के बाद राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि प्रशांत किशोर नरेंद्र मोदी, नीतीश कुमार, जगनमोहन रेड्डी, ममता बनर्जी और अमरिंदर सिंह के साथ काम कर चुके हैं। उनसे सेवा लेने में कोई हर्ज नहीं है। 

यहां ये बात ग़ौर करने वाली है कि अशोक गहलोत प्रशांत किशोर की सेवाएं लेने की बात कर रहे हैं उनके पार्टी में शामिल होने के बाद में उन्होंने कुछ नहीं कहा। इसलिए उनके पार्टी में शामिल होने पर सस्पेंस बना हुआ है।

हालांकि जानकारों का मानना है कि प्रशांत किशोर का सबसे ज़्यादा फोकस गुजरात और हिमाचल विधानसभा चुनावों पर है। इन दोनों राज्यों के चुनाव कांग्रेस के लिए बेहद अहम हैं।

दोनों ही राज्यों में आम आदमी पार्टी कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा रही हैं। हालांकि पिछली बार कांग्रेस ने गुजरात में बीजेपी को अच्छी टक्कर दी थी। तभी से माना जा रही है कि कांग्रेस थोड़ा ज्यादा मेहनत कर तो गुजरात में बीजेपी को हरा सकती है।

पिछले महीने पांच राज्यों वे विधानसभा चुनावों के नतीजे आने के बाद हुई कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में कुछ नेताओं ने कही भी था कि पार्टी गुजरात में जीत सकती है। माना जा रहा है कि प्रशांत किशोर की रणनीति का साथ मिलने पर शायद गुजरात में कांग्रेस जीत जाए। प्रशांत किशोर कांग्रेस को यही भरोसा दिलाने की कोशिश कर रहे हैं।

बहरहाल सोनिया गांधी और कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के साथ प्रशांत किशोर के साथ होने वाली मैराथन बैठकों से कांग्रेस में हलचल बढ़ी है। एक अदद जीत के लिए तरस रही कांग्रेस हताशा और निराशा से बाहर निकलती दिख रही है। इसलिए राजनीतिक हलकों में माना जा रही है कि मौजूदा राजनीति हालात में कांग्रेस और प्रशांत किशोर एक दूसरे की ज़रूरत बन गए हैं।

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