क्या अडानी समूह को ध्यान में रख भाजपा शासित राज्यों ने निकाले बिजली टेंडर?
बीजेपी शासित दो राज्यों में बिजली के दो ऐसे टेंडर निकले हैं कि इसपर सवाल खड़े होने लगे हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार बिजली आपूर्तिकर्ताओं की तलाश कर रहे दो भाजपा शासित राज्यों ने एक जैसे बोली मानदंड तैयार किए हैं। ये मानदंड अडानी समूह की बिजली उत्पादन क्षमताओं और योजनाओं के लिए बिल्कुल उपयुक्त हैं। वैसे, यहाँ तक तो ज़्यादा गड़बड़ी नज़र नहीं आती है, लेकिन मानदंडों में टेंडर के लिए जो नियम तय किए गए हैं उसको लेकर सवाल उठ रहे हैं। सवाल उठ रहे हैं कि क्या टेंडर में प्रतियोगिता को हतोत्साहित करने वाले नियम बनाए गए?
दरअसल, महाराष्ट्र और राजस्थान ने एक के बाद एक टेंडर जारी किए हैं। द रिपोर्टर्स कलेक्टिव की रिपोर्ट के अनुसार इसमें ऐसे बिजली उत्पादकों को बुलाया गया है जो 25 साल तक बिजली की आपूर्ति कर सकें। दोनों टेंडरों में एक मुख्य मानदंड यह था कि उत्पादक के पास सौर और ताप बिजली संयंत्रों से बिजली उत्पादन करने की क्षमता होनी चाहिए। टेंडर में कहा गया कि केवल वही बिजली उत्पादक प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं जो एक साथ विशाल ताप और सौर क्षमता रखते हैं। टेंडर में बिजली उत्पादन क्षमता भी इतनी ज़्यादा रखी गयी है कि छोटे और नये खिलाड़ी टेंडर प्रक्रिया से ही बाहर हो गए। रिपोर्ट में कहा गया है कि टेंडर के ऐसे नियमों से राज्य सरकारों ने अडानी समूह के लिए प्रतिस्पर्धा को कम कर दिया।
अंग्रेजी न्यूज़ वेबसाइट के अनुसार महाराष्ट्र ने 6,600 मेगावाट के लिए टेंडर निकाला जिसमें से 5,000 मेगावाट सौर और बाकी कोयले वाले ताप संयंत्र से आएगा। इसके बाद राजस्थान ने 11,200 मेगावाट के लिए टेंडर निकाला है जिसमें से 8,000 मेगावाट सौर और बाकी कोयले से उत्पन्न होगा। इतने बड़े पैमाने ऊर्जा उत्पादन क्षमता बहुत कम कंपनियों की है। अडानी समूह के अलावा केवल कुछ ही कंपनियाँ सौर और ताप बिजली उत्पादन दोनों में उस पैमाने पर काम करती हैं।
अडानी समूह ने महाराष्ट्र में बिजली आपूर्ति का ठेका जीता है, जिसे कंपनी खुद ही 'विश्व स्तर पर सौर क्षमता का सबसे बड़ा पुरस्कार' बताया है। हालांकि राजस्थान में निविदा को अभी अंतिम रूप नहीं दिया गया है, लेकिन टेंडर में दिए गए नियम और बिजली उत्पादन के लिए अडानी समूह की जमीनी योजना एक दूसरे से बिल्कुल मेल खाती हैं, जैसा कि महाराष्ट्र के टेंडर दस्तावेजों में था।
रिपोर्ट में कहा गया है कि बीजेपी शासित दो राज्यों द्वारा बोली प्रक्रिया में दोहरे स्रोत मानदंड को पेश करने के फ़ैसले ने रिन्यूएबल एनर्जी क्षेत्र में तेजी से उभरे छोटे खिलाड़ियों को नुक़सान पहुंचाया है। इसने प्रतिस्पर्धा को कुछ फर्मों तक सीमित कर दिया है, जिनके पास थर्मल और सौर ऊर्जा दोनों की क्षमता है। अडानी समूह संयुक्त क्षमता के मामले में सबसे बड़ा निजी खिलाड़ी है।
अब जाहिर तौर पर बिजली क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा को सीमित करने से लोगों के लिए बिजली की लागत में वृद्धि हो सकती है।
इसके अलावा, राज्य सरकारों द्वारा केवल उन बिजली उत्पादकों को बढ़ावा देने का प्रयास जो थर्मल और सौर ऊर्जा दोनों की आपूर्ति कर सकते हैं, अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा को रोक देगा और कम ऊर्जा कीमतों की संभावना को कम करेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दिया जाए
किसी भी सरकारी अनुबंध को देने में नियम यह है कि प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। कोयला घोटाले के ऐतिहासिक 2014 के फैसले में भी यह साफ़ किया गया था। कोयला खदानों को नीलामी मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों ने भी यह स्पष्ट कर दिया था कि सरकार को किसी भी संपत्ति के लिए सर्वोत्तम संभव मूल्य पर पहुंचने के लिए अधिकतम प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करनी चाहिए जिसे खरीदा या नीलाम किया जा रहा है।
द रिपोर्टर्स कलेक्टिव की रिपोर्ट में कहा गया है कि लेकिन इस मामले में राज्य सरकारों ने जानबूझकर प्रतिस्पर्धा को कुछ प्रमुख खिलाड़ियों तक सीमित कर दिया है। न्यूज़ वेबसाइट के अनुसार विशेषज्ञों ने अक्षय ऊर्जा के हिस्से को बढ़ावा देने और कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के लिए कथित तौर पर दोहरे ऊर्जा स्रोतों वाले एकल आपूर्तिकर्ता की तलाश करने के राज्यों के फैसले को गलत ठहराया है। उनका तर्क है कि सरकारों को अलग-अलग ऊर्जा स्रोतों से अलग-अलग बिजली खरीदनी चाहिए, न कि अलग-अलग आपूर्तिकर्ताओं की तलाश करनी चाहिए। पिछले एक दशक से ऊर्जा क्षेत्र पर शोध कर रहे डॉ. प्रियांशु गुप्ता ने द रिपोर्टर्स कलेक्टिव से कहा, 'सरकारों को सौर ऊर्जा के लिए अलग से नीलामी करनी चाहिए।'
द कलेक्टिव की रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान की निविदा के लिए ज़रूरी है कि विजेता बोलीदाता एक बंडल में 3,200 मेगावाट थर्मल पावर और 8,000 मेगावाट सौर बिजली उत्पादन करे। और, बिजली संयंत्र राज्य की सीमा के भीतर स्थापित किए जाने चाहिए। लेकिन टेंडर जारी होने से ठीक पहले, अडानी समूह ने राजस्थान के बारां जिले के कवाई गांव में अपने मौजूदा थर्मल पावर प्लांट को 3,200 मेगावाट तक बढ़ाने के लिए हरित मंजूरी हासिल करने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी। इसी तरह, इसने राज्य में एक सोलर पार्क विकसित करने के लिए सरकार के साथ एक समझौता ज्ञापन पर भी हस्ताक्षर किए थे।
महाराष्ट्र टेंडर के समूह की विस्तार योजनाओं के बारे में द कलेक्टिव के सवालों के जवाब में अडानी पावर के प्रवक्ता ने कहा, 'इन सवालों का जवाब केवल निविदा प्राधिकरण ही दे सकता है।' उन्होंने राजस्थान में अपने प्लांट और राज्य के बिजली वितरक द्वारा जारी टेंडर का जिक्र करते हुए कहा, 'हमारे कवाई प्लांट में चल रही विस्तार योजना आरयूवीआईटीएसएल टेंडर से स्वतंत्र है, जिसे अभी तक प्रदान नहीं किया गया है।' कलेक्टिव ने दोनों राज्य बिजली वितरकों को विस्तृत प्रश्न भेजे, लेकिन बार-बार याद दिलाने के बावजूद किसी ने कोई जवाब नहीं दिया।
अडानी समूह भारत की सबसे बड़ी अक्षय ऊर्जा कंपनी होने का दावा करता है, और इस साल की शुरुआत में 10,000 मेगावाट परिचालन पोर्टफोलियो को पार करने वाली पहली भारतीय कंपनी बन गई, जिसमें से 7,393 मेगावाट अकेले सौर ऊर्जा से आती है। यह 15,000 मेगावाट से अधिक की स्थापित क्षमता के साथ भारत की सबसे बड़ी निजी ताप विद्युत कंपनी भी है।