
नितिन गडकरी जाति आधारित राजनीति के विरोध में; जानें क्या बोले
खरी-खरी बोलने के लिए चर्चा में रहने वाले नितिन गडकरी ने अब जाति आधारित राजनीति के ख़िलाफ़ बोला है। उन्होंने कहा है कि किसी व्यक्ति की महानता उसकी जाति, धर्म या लिंग से नहीं, बल्कि उसके गुणों से तय होती है। नागपुर में सेंट्रल इंडिया ग्रुप ऑफ़ इंस्टीट्यूशंस के दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए गडकरी ने साफ़ किया कि वह इस सिद्धांत से समझौता नहीं करेंगे, भले ही इससे उन्हें चुनाव में नुक़सान हो। उन्होंने एक सभा में अपनी बात को दोहराते हुए कहा, 'जो करेगा जाति की बात, उसे कस के मारूंगा लात।'
नागपुर से तीन बार के सांसद और बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष रह चुके केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री गडकरी ने कहा कि वह राजनीति में हैं और जाति आधारित नेता उनसे मिलने आते हैं, लेकिन वह अपने उसूलों पर कायम रहेंगे। उन्होंने कहा, 'मैं अपनी शर्तों पर जिऊंगा, वोट मिले या न मिले। मैंने 50,000 लोगों की सभा में कहा था कि जो जाति की बात करेगा, उसे कस के लात मारूंगा।'
गडकरी ने कहा कि उनके दोस्तों ने चेताया कि यह रुख उनके लिए नुक़सानदेह हो सकता है, लेकिन वह बोले, 'मुझे इसकी चिंता नहीं। क्या चुनाव हारने से कोई मर जाता है? मैं अपने सिद्धांतों पर अडिग रहूंगा और उन्हें अपने जीवन में लागू करूंगा।'
गडकरी का यह बयान भारतीय राजनीति में जाति के प्रभाव को देखते हुए अहम है, जहां वोट बैंक की राजनीति अक्सर जाति और धर्म पर आधारित होती है। उनका यह रुख न केवल उनकी व्यक्तिगत निष्ठा को दिखाता है, बल्कि बीजेपी के भीतर भी एक वैचारिक बहस को जन्म दे सकता है। बीजेपी एक दक्षिणपंथी पार्टी है और इसपर वोट के लिए धार्मिक ध्रुवीकरण करने का आरोप लगता रहा है। अमित शाह को राजनीति में जोड़तोड़ करने, जातिगत समीकरणों के आधार पर गठबंधन की रणनीति बनाने की वजह से उनके समर्थक उन्हें 'चाणक्य' भी कहते हैं।
गडकरी का यह बयान न केवल उनके व्यक्तिगत सिद्धांतों को दिखाता है, बल्कि भारतीय राजनीति में जाति आधारित वोटबैंक की रणनीति पर सवाल उठाता है। अक्सर हिंदुत्व और विकास के मुद्दों पर जोर देने वाली बीजेपी के लिए गडकरी का यह रुख एक नई दिशा हो सकता है। हालांकि, यह उनके राजनीतिक करियर के लिए जोखिम भरा भी हो सकता है, क्योंकि जाति आधारित समीकरण अभी भी कई क्षेत्रों में मतदाताओं को प्रभावित करते हैं और अधिकतर राजनीतिक दल जाति आधारित राजनीति ही करते हैं।
नितिन गडकरी का जाति आधारित राजनीति के ख़िलाफ़ खुला विरोध सैद्धांतिक रूप से आकर्षक दिखता है, लेकिन क्या इसे वह व्यावहारिक तौर पर भी मानते हैं? उनके बयान का चुनावी नतीजों पर असर क्या होगा, एक बड़ा सवाल बना रहेगा।
बहरहाल, गडकरी ने डॉ. अब्दुल कलाम का उदाहरण देते हुए कहा कि एक व्यक्ति की उपलब्धियाँ उसके गुणों से तय होती हैं, न कि उसकी जाति या धर्म से। उन्होंने कहा, 'जब डॉ. कलाम परमाणु वैज्ञानिक बने तो उनकी उपलब्धियों ने उन्हें विश्व भर में पहचान दिलाई। मैं मानता हूं कि व्यक्ति जाति, संप्रदाय, धर्म, भाषा या लिंग से महान नहीं बनता, बल्कि गुणों से बनता है। इसलिए हम किसी के साथ जाति, धर्म या लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं करेंगे।'
गडकरी ने शिक्षा के महत्व पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा, 'शिक्षा सिर्फ़ आपको और आपके परिवार को लाभ नहीं देती, यह समाज और राष्ट्र को विकसित करती है। ज्ञान शक्ति है और इस शक्ति को आत्मसात करना आपका मिशन होना चाहिए।' छात्रों को सलाह देते हुए उन्होंने कहा, 'नौकरी तलाशने वाले मत बनो, नौकरी देने वाले बनो।'
गडकरी ने अपनी शैक्षिक यात्रा का ज़िक्र करते हुए बताया कि वह इंजीनियर नहीं हैं, जैसा कि लोग ग़लतफहमी में मानते हैं। उन्होंने कहा, '1975 में आपातकाल शुरू हुआ, जब मैं 11वीं कक्षा में था। मैंने आपातकाल के ख़िलाफ़ काम किया, जिससे मेरी पढ़ाई प्रभावित हुई और मैं इंजीनियरिंग के लिए क्वालिफाई नहीं कर सका। मेरे पास 12 डी.लिट डिग्रियां हैं, लेकिन मैं डॉ. का टाइटल इस्तेमाल नहीं करता।' उन्होंने कॉमर्स और बिजनेस मैनेजमेंट की पढ़ाई की और सिविल इंजीनियरिंग में रिकॉर्ड बनाए।
उनके मंत्रालय ने देश के दूर-दराज तक सड़क के बुनियादी ढाँचे का विस्तार किया है, जिसकी व्यापक सराहना हुई है। गडकरी ने कहा, 'डिग्री और सफलता के बीच संबंध को समझें। उद्यमिता के साथ ज्ञान बहुत जरूरी है।'
(इस रिपोर्ट का संपादन अमित कुमार सिंह ने किया है)